आइये ....आज एक बार फिर से...मैं अपनी यादों के झरोखे से आप सब को
अपनी मनपसंद गज़ल सुनवाता हूँ |
ये ज़नाब गुलाम अली साहब की दिलकश आवाज़ में ....मेरे दिल की बात है !!!
ये भी हो सकता है ! कि हम सब में से भी... ये आवाज़ किसी के दिल की बात कहती हो ......
तो फिर देर किस बात की......कह डालें अपने दिल की बात को.....
ज़नाब गुलाम अली साहब की आवाज़ का सहारा लेकर!!!
हम तेरे शहर में हैं अनजाने
बिन तेरे कौन हम को पहचाने
मेरा चेहरा किताब है ग़म की
कौन पढता है ग़म के अफ़साने
बिन तेरे कौन .....
जिसने सौ बार दिल को तोड़ा है
हम अभी तक हैं उसके दीवाने
बिन तेरे कौन .....
उनसे कोई भी कुछ नही कहता
लोग आते हैं मुझको समझाने
बिन तेरे कौन हमको पहचाने
हम तेरे शहर में है अनजाने .........
Bahut Umda...Aabhar
ReplyDeleteबहुत खूब |
ReplyDeleteआभार सर जी ||
शनिवार 28/07/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteऐसे ही अपनी यादों के झरोखे से कुछ न कुछ देते रहा करें |
ReplyDeletewaah ..bahut sundar ...abhar ..!!
ReplyDeleteबहुत खूब, सलूजा साहब !
ReplyDeletekhoobsurat kavita ...
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteकभी सुनी नहीं थी . परन्तु अच्छी लगी . आभार .
ReplyDeleteबहुत सुंदर कलाम....
ReplyDeleteसादर आभार।
अशोक जी, उम्दा प्रस्तुति के लिए बधाई,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
badhiyaa hai sirji .
ReplyDeletebadhiyaa hai sirji .
ReplyDeleteअशोक भाई शुक्रिया गुलाम अली साहब को आपने सुनवाया .
ReplyDeleteआप भी मेरी तरह उर्दू गजलों के दीवाने हैं.बहुत खूब प्रस्तुती.
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
गुलाम अली साहब को सुनाने के लिए आपका शुक्रिया ..
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteअशोक जी ,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
ReplyDeleteगुलाम अली साहब की आवाज़ में ग़ज़ल सुन कर दिल खुश हो गया...शुक्रिया
नीरज
नीरज जी ,
Deleteये आपका अपने से बढ़ो के प्रति स्नेह और मान है ....
शुक्रिया!
खुश रहें!
bhaut hi sundar....
ReplyDeleteशुक्रिया भाई साहब .
ReplyDeleteमेरा चेहरा किताब है ग़म की
ReplyDeleteकौन पढता है ग़म के अफ़साने
वाह ...!!
आनंद आ गया .....
@ अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
नीरज जी सभी के लिए एक ही जवाब ....))
पढ़ें तो जानू ...:))
;-)) पढे तो जानू !
ReplyDeleteशुक्रिया!
वाह ... मखमली आवाज़ का जादू ... शुक्रिया इस गज़ल के लिए ..
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