यादें ...
भुलाने को तो, भुला सकता था, तुझे मैं मगर,
वो बीते पल सुहाने साथ तेरे, याद न रखता अगर....
---अकेला
जब यादों का ...सैलाब उठता है, तो दिल में बहुत
हलचल मचाता है... उस सैलाब को थामना मुश्किल
हो जाता है ..और बयाँ करना उससे भी ज्यादा
मुश्किल .....
कभी-कभी बयाँ करने के काबिल लफ्ज़ नही मिलते
और यादों का दौड़ता कारवाँ भी रुकने से रुकता नही...
तब याद आती है ...कोई प्यारी सी गज़ल के वो अल्फाज़ !!!
और वो हस्ती जो उन अल्फाजों को अपनी प्यारी ,दिलकश,
मदमस्त और दर्द के एहसास से बक्षी भरपूर आवाज़ से
बयाँ कर दे .....आपके मनमाफिक !!!
आपकी यादों का सैलाब रुक जाये और
सुनने वालों को सुकून मिल जाये !!!
तो फिर ज़नाब गुलाम अली साहब से बड़कर
कौन हो सकता है .....
तो आएं...मिल के सुनते हैं हम सब ,,,और अपने लिए
ढूंढते है दिल का सुकून और में शांत करता हूँ
अपने यादों के सैलाब को.......
जब तेरी राह... से होकर गुज़रे
आँख से कितने... ही मंज़र गुज़रे
जब तेरी राह... से होकर गुज़रे ......
तेरी तपती हुई... साँसों की तरह
कितने झोंके मुझे... छू कर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे .....
उम्र यूँ गुजरी है... जैसे सर से
सनसनाता हुआ... पत्थर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ....
जानते हैं कि... वहाँ कोई नही
फिर भी उस राह... से अक्सर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ....
अब कोई गम... न कोई याद बशर
वक्त गुज़रे भी... तो क्यों कर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ......
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
जब यादों का ...सैलाब उठता है, तो दिल में बहुत
ReplyDeleteहलचल मचाता है... उस सैलाब को थामना मुश्किल
हो जाता है ..और बयाँ करना उससे भी ज्यादा मुश्किल ,,,,
आपने बिलकुल सही कहा,,,,,,अशोक भाई,,,
गुलाम अली जी की बेहतरीन गजल सुनवाने के लिए आभार,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 22/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
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ReplyDeleteसुबह सुबह एक मीठी रागिनी सी गजल आँख से कितने मंजर गुज़रे ,जब तेरी राह से होकर गुज़रे ,सेक्सो -फोन की माधुरी लिए आपने सुनवाई .शुक्रिया अशोक भाई .
अहा, मन छूती..
ReplyDeleteवाह...वाह......
ReplyDeleteपढ़ना और सुनना...दोनों ही सुखद अनुभूति....
सुखद अनुभूति..पढ़ना और सुनना दोनों ही.मन को छू गई...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteयादें अगर याद रहें तभी तो याद आती हैं
यादें जो ना रही याद वो यादें हो जाती हैं !
मन के गहरे भाव..... खूब कहा
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल सुनवाई और पढ़वाई है ....आभार
ReplyDeleteLovely ghazal
ReplyDeleteवाह .. हसीन यादों के मंज़र पे लौटने के लिए इससे बहतर गज़ल और क्या होगी ...
ReplyDeleteकमाल की दिलकश आवाज़ और यादों का सैलाब ...
आशा है आपकी तबीयत ठीक होगी ...
क्या बात है! जस्ट अमेंजिंग!
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल सुनवाई और पढ़वाई है
खूबसूरत आवाज़ में खूबसूरत ग़ज़ल .
ReplyDeleteइसे सुनाने के लिए आभार .
भुलाने को तो, भुला सकता था, तुझे मैं मगर,
ReplyDeleteवो बीते पल सुहाने साथ तेरे, याद न रखता अगर....
क्या बात है .....!!
भुलाने को तो, भुला सकता था, तुझे मैं मगर,
ReplyDeleteवो बीते पल सुहाने साथ तेरे, याद न रखता अगर....
bauhat khoob!!
गुलाम अली साहब की तो एक खास जगह है हमारे जीवन में ....वे हर ख़ुशी ...हर गम में हमारे हम शरीक रहे हैं ....उन्हें सुनाने के लिए बहुत बहुत आभार ..
ReplyDeleteसुनी तो नहीं पर शब्दों को जिया है...ऐसा लगा!
ReplyDeleteकुँवर जी,
कभी-कभी बयाँ करने के काबिल लफ्ज़ नही मिलते .. बिल्कुल सही
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
आभार
wah ! behad khubsoorat
ReplyDeleteभुलाने को तो मै सबको भुलाकर के ही आया था ,
ReplyDeleteमगर जाने क्यूँ लगता है किसी की याद है बाकि.
बहुत अच्छी प्रस्तुती.
बेहद खुबसूरत गजल...
ReplyDeleteमन को छु लेनेवाले भाव..
पड़ना और सुनना बहुत अच्छा लगा...
आभार सर जी..
:-)
उम्दा ग़ज़ल.
ReplyDeleteअरसे बाद सुनी यह ग़ज़ल.
आभार.
भुलाने को तो, भुला सकता था, तुझे मैं मगर,
ReplyDeleteवो बीते पल सुहाने साथ तेरे, याद न रखता अगर....वाह: बहुत सुन्दर..आभार