गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला
ये वक्त भी क्या-क्या रंग दिखाता है
सपने दिखला मन को बहलाता है
क्यों ये आज गीत पुराना
बार-बार मेरे लबो पर आता है
"आज ऊँगली थाम ले मेरी
तुझे मैं चलना सिखलाऊँ
कल हाथ पकड़ना मेरा
जब मैं बुढा हो जाऊं "
क्या देख लिया तुने जग में
जो ये गीत तुझे न भाता है
कहाँ छूट गए वो रिश्ते-नाते
था जिनसे पुराना नाता है
कहाँ गए वो भाई-बंधू
अब पास कोई न आता है
जिसने दिखाए ये सपने सारे
वो समय अब दूर खड़ा मुस्काता है
ये सब वक्त की बाते है
चंद सांसों की मुलाकाते हैं
कुछ दिन अच्छे,कुछ अच्छी रातें हैं
बाकि तो सब झूठी बातें हैं
अब कुछ भी मेरे पास नहीं
न कोई मन को भाता है
आए 'अकेला' जाये 'अकेला'
बाकि सब यहीं रह जाता है ......
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अशोक'अकेला\ |