अपने साधारण और सिमित शब्द ज्ञान से .....
विन्रम श्रद्धांजलि !!!
विन्रम श्रद्धांजलि !!!
क्या "दामिनी" का क़र्ज़ चुकाओगे ...???
मैं कौन थी ,सपना थी या कामिनी
नाम रख दिया आपने मेरा दामिनी
दरिंदों ने किया मेरी अस्मत पे वार
कर के रख दिया दामन तार-तार
सदियों से लुटती रही, हूँ मैं बार-बार
देख कर तुमे ,कर लेती थी मैं एतबार
क्या अब भी गफ़लत में सोते रहोगे
नारी लुटती रहेगी और तुम रोते रहोगे
क्यों करते हो रक्षा का वादा बार-बार
क्यों मनाते हो रक्षा बंधन का त्यौहार
अब तो उठो,जागो, कुछ कर के दिखा दो
मुझको मिटाने वालों दरिंदों की हस्ती मिटा दो
माँ के दूध का वास्ता है ,अब तुम को
अब मेरे बलिदान का ये कर्ज़ चुका दो
नारी जाति को कलंकित करने वालों को
अब उन का जड़ से तुम नाश मिटा दो
क़र्ज़ चुकाओगे न जब तक ,न मैं
तुम को कभी भी माफ़ कर पाउंगी
मेरे बगैर नर जाति का वजूद क्या ,
ग़र जो कभी मैं वापस न आउंगी .......
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अशोक सलूजा 'अकेला' |