क्या आप पढ़ेगें..?? "बुढ़ापे की सौगातें " जवानी तो अभी मदहोश है |
(पंजाबी पोस्ट से हिन्दी पोस्ट)
घुटने चलते नही ,कन्धे हिलते नही
आँख से दिखाई नही देता
कानों से सुनाई नही देता
और नाक से सुंघाई नही देता |
माथे में दर्द है ,शरीर सारा सर्द है |
मुहँ में दांत नही ,पेट में आंत नही |
कुछ अच्छा हाल नही , सिर पे रहे बाल नही |
न रहा कोई आनन्द,न रही कोई बहार हैं
शरीर से पेट भी आ गया अब बाहर है
पीठ का दर्द भी करता अब बेहाल है
बैठ के उठना भी ,अब बना जी का जंजाल है
अब तो रात को सोना भी लगे इक फांसी है
तमाम रात उठती जोरों से खांसी है ||
नब्ज की धडकन भी ,अब कुछ देर बाद मिलती है
स्प्रिंग की तरह अब गर्दन भी, कुछ-कुछ हिलती है |
अब तो अपने चलने के लिये भी, चाहिए इक लठिया
ये अलग बात है, सारे शरीर के अंगों; में दौड़ता है गठिया |
अब रहा न किसी पे भी कोई जोर है
अब दिल भी अपना हो गया कमजोर है |
न रहा अब कोई आदर ,न रहा सत्कार भी
अब लाठी समेत,अपनी चारपाई भी बाहर ही ||
गोली खाते हैं ,बैठ जाते हैं
असर ढलता है ,ऐंठ जाते हैं
अब कभी न की हुई भूलों ,की भी
माफ़ी मांगते नजर आते है |
डर के मारे अपनी बीवी से भी
अब भागते नजर आते हैं |
अब तो हमारी यादाश्त का भी
हुआ बुरा हाल है
राह चलते को भी, हम मनाते है
हद्द तो तब हो जाती है !
जब अपना घर भूल ,पडौसी के घर
घुस जाते हैं |
जब कोई पूछता है ,बाबा जी क्या हाल है..?
पहचाना नही ! कौन है ..? ,होता मेरा ये सवाल है |
किसी को अच्छा सिखाते है ,तो सब हँसते हैं
इक-दूजे को देख, पूछते है ;बाबा जी कौन सदी में बसते हैं|
हर माँ-बाप की रूह, अपने बच्चों के सुख में बसती है
जिनको हमने हंसना सिखाया ,वो औलाद आज हम पे हँसती है |
ऐसा लगता है ,अब आ गया बुढ़ापा जी
जल्द खत्म हो जाएँ गे अब ये बाबा जी |
ये बुढ़ापा सुना कर ,न तो मैंने आप को डराया है
और न ही भरमाया है |
पर ये जीवन का कढवा सच है ,कि बुढ़ापे का बस ये
ही सरमाया है |
सो, एक-एक करके मौत का इकठ्ठा हो गया सारा सामान ,
बस थोड़ी... दूर रेह गया अब शमशान ||
अब एक बार ,सारे बंधू मिल के बोलो ,
जय श्री राम ,जय श्री राम ,जय श्री राम ||
अशोक'अकेला' |
अगर आप इस को पंजाबी
आडियो में सुनना पसंद करें...
तो अपने दायें ,उपर मेरे
आडियो पर चटका लगाएं |
गीत गूँजते मेरे मन में
ReplyDeleteतनिक न कोलाहल है.
बाह्य जगत और अंतर्मन का
हर षड़यंत्र विफल है
रंग में डूबूँ औरों को भी
सराबोर कर डालूँ
कैसी चिंता ? कैसा भय है ?
मृत्यु सदा अटल है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबुढ़ापे का वर्णन suna रहे हो
ReplyDeleteया हमको यूँ डरा रहे हो ।
jiwan के सब upwan jab murjha जाते हैं
tab pati patni ही बस संग रह जाते हैं ।
khush rahiye ।
जीवन यात्रा के विभिन्न पड़ाव
ReplyDeleteऔर बुढ़ापे के अनजाने मोड़ से
रु ब रु करवाती हुई
एक समझने-समझाने वाली नज़्म .... !
अब सताता है बुढ़ापे का ख़याल
हो गया , दौर-ए-जवानी , हो गया
डॉ दाराल जी कहना मान लेने में ही
भलाई है हुज़ूर !!
'सपरिंग ' ??? समझ नही आया.कहीं यह स्प्रिंग शब्द तो नही.
ReplyDeleteऔर ये आप डरा क्यों रहे हैं.अजी जैसे बचपन और जवानी को इंजॉय किया है वैसे बुढापे को भी इंजॉय करेंगे. अब तो वो समय है जब हमारे अधूरे रह गए सपनों को पूरा करेंगे .अब तक सबके लिए जिए अब खुद के लिए जियेंगे और...बहुत कुछ है न् करने के लिए.कुछ ऐसा कर जायेंगे कि अगर कहीं आपका इश्वर हुआ तो जरूर पास बुला कर पीठ थपथपाएगा.कोई याद रखे ऐसा तो सोचती ही नही.हा हा हा इसलिए आपकी यह कविता मुझे नही डरा सकती.सच्ची.ऐसीच हूँ मैं तो.
तो शम्मी कपूर जी ,
ReplyDeleteइसे आपने हिंदी में भी अनुवाद कर लिया.....?
पर पंजाबी में वह भी आपकी आवाज़ में सुन जो मजा आया इसमें उतना नहीं आ पाया ....
बहरहाल रचना तो उत्कृष्ट है ही ....
बुढापे से कोई डरता नहीं इंदु जी ...
अगर गिट्टे रगड़ने सी कोई बिमारी न लग जाय .....
जब कोई बिस्तर से उठ न पाए और बेटे बहु पास से गुजर जायें ..
और आप दयनीय नज़रों से तकते रहे ....
:))
बहुत ही बढ़िया,
ReplyDeleteसादर विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
@ निगम जी ,धन्यावाद! अपनी सुंदर कविता का रूप दिखाने का |
ReplyDelete@ मनप्रीत जी .आप का भी शुक्रिया ,ब्लॉग पर आने का |
@ शास्त्री जी, नमस्कार !
ReplyDeleteआप की टिप्पणी पा कर दिल को सकूं मिला | आप से बहुत कुछ सीखना है |
धन्यावाद|
डाँ टी.एस.दराल जी , उफ़,ये लेख जवानों के लिये तो था ही नही .
ReplyDeleteसलामत रहे जवानी आपकी ,आप को डराने की हिम्मत ..मेरी तो नही ...:):):)
@ दानिश जी , शुक्रिया ! आप की बात मान ली
@ इंदु जी,
ReplyDeleteटीचर दीदी ,आप का डांटना काम आ जाता है|'स्प्रिंग' ठीक है ..?
मैं क्यों डराउंगा आप को ,आप को तो 'हरकीरत' डरा रही है |
पर कभी-कभी बड़े भाई का लिहाज भी कर लिया करो |
खुश रहो!
@ हरकीरत 'हीर'
ReplyDeleteशम्मी कपूर जी.....वाह! काम न सही ,नाम ही सही | जो अच्छा लगे...
हरकीरत, पंजाबी बुढ़ापा कोई पढता ही नही ....|
हमेशा खुश रहो !
ये जीवन का कढवा सच है .....
ReplyDeleteमार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......आपकी आवाज़ में सुनना अच्छा लगा.
उम्र का सबसे कठिन पड़ाव है ये।
ReplyDeleteपंजाबी वाली सुनने में ज्यादा मजा आया.. भले ही समझ न आयी ठीक से :) मुझे तो बुजुर्गों के साथ समय बिताने में बड़ा आनंद आता है.. अपने आप में वे एक एन्साईक्लोपीडीया होते हैं वे.. चलती फिरती लाइब्रेरी.. उनके साथ बीते वक्त की गलियों से गुजरने का आनंद गज़ब होता है... लेकिन उनके कष्टों को देखकर बड़ी तकलीफ होती है.. पर वह तो सबको सहना ही है..
ReplyDelete@ वर्षा जी ,
ReplyDeleteसच्चाई से तो मुहँ मोड़ा नही जा सकता न ..? सरल-सीधा सा हूँ..
जैसा देखता हूँ ,वैसा लिखता हूँ | हम भी तो राहों में हैं....
अच्छी सेहत के लिये !
शुभकामनाएँ !
@ दिव्या जी , आप तो एहसासों से भरी खान हैं|
ReplyDeleteबस खुश और स्वस्थ रहें |
@ सतीश सत्यार्थी जी , आप की सलामत रहे जवानी ,बुढ़ापा कोसों दूर है |
खुश रहें,मस्त रहें |
आशीर्वाद |
हर एक बुढापे का सच कह डाला सलूजा साहब. अच्छी कृति है !
ReplyDeleteसच्चाई से रूबरू कराती हुइ् एक प्या्रीसी रचना ...
ReplyDeleteजीवन का एक पहलू यह भी है.... सुंदर शब्द सहेजे हैं....
ReplyDelete@ गोदियाल भाई जी ,
ReplyDelete@ स्वाति जी,
@ मोनिका जी ,
न तो ये अच्छी कृति,न ये प्यारी रचना ,न सहेजे सुंदर शब्द ...
सुबह-सुबह पार्क में अपने हम-उम्र साथियों से जो सुनता हूँ ,जो देखता हूँ और जो खुद महसूस करता हूँ | बस उनको अपने सरल शब्दों में आगे-पीछे कर के आप के सामने रख दिया है |बस यही सच्चाई है ,और मेरा तजुर्बा भी !
आप को अच्छा लगा ,आप के मन को छुआ !
आप सब का आभार !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें !
बुढापे का सच
ReplyDeleteसच्चाई से रूबरू कराती रचना
कोई गुस्ताखी हुई मुझसे? माफ़ी मांगती हूँ कान पकड़ के.वीरजी ! हीर कितना ही डराए मैं नही डरने वाली.जो 'उसने' लिख दिया उसे तो भोगना ही है 'वो' सुख दे चाहे दुःख सब मंजूर.बुढापे में क्या होगा इसकी चिंता मैं अभी से नही करती हा हा हा ऐसिच हूँ मैं तो
ReplyDeleteकाम में जोहरा सहगल और रहन सहन में महारानी गायत्री देवी मेरी रोल मोडल है हा हा हा
@ संजय जी ,
ReplyDeleteआप के आने का स्वागत !
@ टीचर दीदी, आप से, और गुस्ताखी ...और उसपे माफ़ी भी ,
न,बाबा न ! आप एसिच ही ठीक हो ...:-):-):-)
खुश और स्वस्थ रहो !
अरे वाह ! यार चाचू हरकीरत हीरजी को आप 'शम्मी कपूर' नजर आते हैं.
ReplyDeleteपर हमें तो आप 'राज कपूर' ही ज्यादा नजर आते हैं.
जो बुढ़ापे के सपनें बेच 'सपनों का सौदागर' बने जाते हैं.
यार बनकर अब यह मत कह देना 'दोस्त दोस्त न रहा,प्यार प्यार न रहा'.
जितना ये पढ़कर मजा आया ,उससे कई गुना ज्यादा इसे पंजाबी में आपकी आवाज़ में सुनकर अच्छा लगा। बुढ़ापे के सरमाये का आपने जो नक्षा खिंचा है ,ये ही एक हकीकत है। हमे इससे भागना नही चाहिए ,बल्कि प्यार करना चाहिए। ये आखरी मंजिल है। वैसे मै तो आपसे ये फरमाइश करना चाहूँगा की जिस तरह आपने इस एक सरमाये की नज्म को अपनी आवाज़ में रिकोर्ड किया ,उसी तरह दूसरी इस तरह की नज्मे जो आपने लिखी हैं उन्हें भी रिकोर्ड करके यू ट्यूब पर उपलोड कीजिये। और उन्हें भी अपनी पंजाबी में। उम्मीद है की आप मेरी इस फरमाइश को जरुर पूरा करेंगे।
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