तुम ख्वाबों में बहते हो
मैं हकीक़त में रहता हूँ ,
तुम आसमां पे उड़ते हो
मैं जमीं पे रहता हूँ ||
---अकेला
इक ख्वाबो की दुनियां
इक हकीक़त की दुनियां
इक आसमां पे उड़ाती है
इक जमीं से उठाती है
इक खुशियाँ बरसाती है
इक आग सी लगाती है
इक सपने दिखाती है
इक सपने दफनाती है
इक महल बनाती है
इक झोंपड़ा गिराती है
इक उम्मीद जगाती है
इक ना-उम्मीद कराती है
इक चाँद-तारे सजाती है
इक रातों को रुलाती है
इक बस्ती बसाती है
इक हस्ती मिटाती है
लो सपने ने मारा झटका
मुझे जमीं पे ला के पटका
वो इक सपना था
यह इक हकीक़त है ......
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अशोक'अकेला' |
आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 03/04/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह बहुत लाजवाब और सशक्त रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खून सलूजा साहब !
ReplyDeleteऔर मेरी दुनिया है सिमटी सिर्फ दो लहमा में
कभी एक लहमा हसाता है, कभी एक रुलाता है
और इन्ही दो लह्मों के बीच हम जीने की कोशिश करते रहे है !
दिलचस्प। क्या ही खूब फर्क किया है सपने और हकीकत की दुनिया का।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
लो सपने ने मारा झटका
मुझे जमीं पे ला के पटका
वो इक सपना था
यह इक हकीक़त है ......
सपनों के संसार से जुड़े सुख भी दुःख भी.....
ReplyDeleteअच्छी संवेदनशील कविता बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर संवेदनशील अभिव्यक्ति,,
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बेहद खूबसूरत है ये हकीकत का जहान....
ReplyDeleteजहाँ ख्याब अधूरे और हकीकत का कठोर धरातल है
बहुत सुंदर.एक खूबसूरत हकीकत
ReplyDeleteशुभकामनायें-
ReplyDeleteसपनों की दुनिया का नशा अजीब सा होता है हम सचमुच उड़ते रहते हैं लेकिन जब नशा काफूर होता है तो कठोर यथार्थ से सामना होता है। इन दो विरोधी बिन्दुओं पर नट की तरह संतुलन बनाती चलती जिंदगी पर सुंदर कविता रच दी आपने
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना सर!
ReplyDeleteख्वाब और हक़ीक़त का इतना सा फसाना है...
आँख से मोती चुन... फूलों पे सजाना है....
~सादर!!!
जाने कितने ख्वाब हमारे बादल बन कर तैर रहे हैं,
ReplyDeleteजिधर चल रही हवा जगत की, दौड़ रहे हैं, फैल रहे हैं।
सपने हैं सपने, कब हुए अपने...
ReplyDeleteवह न सपना था न हक़ीक़त थी, वह तो केवल सपनों में बसी ज़िंदगी की असलियत थी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना , लाजवाब
ReplyDeleteतुम ख्वाबों में बहते हो
ReplyDeleteमैं हकीक़त में रहता हूँ ,
तुम आसमां पे उड़ते हो
मैं जमीं पे रहता हूँ ..
बहुत खूब ... ओर ऐसे ही मिलन हो नहीं पाता ... जीवन यूं ही चलता रहता है समानांतर उनके साथ ...
दो पहलू जीवन के ,दो ठहराव जीवन की .सुन्दर रचना .
ReplyDeleteसपना और हकीकत का बहुत बढ़िया चित्रण ...
ReplyDeleteapki kawita to jandar ban pada hai....abhar
ReplyDeleteखूबसूरत सपना .....:))
ReplyDeleteअब तो काफी नज्में हो गईं एक किताब हो जानी चाहिए ......
इक ख्वाबो की दुनियां
ReplyDeleteइक हकीक़त की दुनियां
इक आसमां पे उड़ाती है
इक जमीं से उठाती है
ख़्वाबों से हकीकत का सफर जीवन के विभिन्न आयामों में संतुलन एक खूबसूरत कविता में अतुलनीय है.
bahut hi khoobsoorat aur shandaar
ReplyDeleteसपने तो बस सपने ही हैं ... हकीकत कुछ और ही होती है
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