मेरी जिन्दगी थी बेआसरा
तेरे आसरे से पहले .....
--अशोक'अकेला'
तेरे आसरे से पहले .....
--अशोक'अकेला'
उफ़! न कर
तू अब लब सी ले ...
मिले ग़र ज़हर का प्याला
आँख मूंद उसे पी ले ...
जिन्दगी में आयेगे
वो मंज़र भी
जिसे तू देखना न चाहे
याद कर बीते
सुहाने पलों को
उन पलों में जी ले ...
कट जायेगा दिन
ढल जाएगी रात
आयें आँख में आंसू
कोर होने दे गीले...
कर बिछोना धरती पर
ओढ़ बादल आसमानी नीले ...
बरसेंगी सुहानी बारिश की बुँदे
फूल खिलेंगे सरसों के पीले ...
बस उफ़ न कर ,तू अब लब सी ले ........
अशोक'अकेला' |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (03-08-2013) के गगन चूमती मीनारें होंगी में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
परिस्थितियां जीवन में हर रंग दिखाती है.....
ReplyDeleteआये जो आँख में आंसू, कोर गीला होने दिया...
ReplyDeleteमान ली इन शब्दों की गरिमा, उफ़! नहीं किया...
सुप्रभात एवं सादर प्रणाम!
बहुत ही सुंदर रंग बिखेरे हैं आपने.
ReplyDeleteरामराम.
आपकी कविताओं का सुकून यादों में हैं उन्हें हम आगे की यात्रा में ओढ़ते बिछाते हैं और नव जीवन की शक्ति प्राप्त करते हैं।
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteजीवन को रंगों में बाँध दिया है आपने ..बहुत खूब
ReplyDeleteसराहनीय अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !बहुत ही सुंदर ....बहुत खूब
ReplyDeleteआभार..
अति सुन्दर-
ReplyDeleteआभार-
उफ़! न कर
ReplyDeleteतू अब लब सी ले ...दुखद परिस्थितियो का हिम्मत से सामना करना ही जिन्दगी है..सुन्दर रचना
अच्छी रचना
ReplyDeleteदिल को छूती बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteकट जायेगा दिन
ReplyDeleteढल जाएगी रात
आयें आँख में आंसू
कोर होने दे गीले...
मर्मस्पर्शी,बहुत सुंदर !
न...नहीं करते उफ़ अब.....हँस कर जीना सिखा दिया ज़िन्दगी के ग़मों ने...
ReplyDeleteसादर
अनु
हंस - हंस के बात बयाँ कर देने का खुबसूरत अंदाज़ सुन्दर रचना |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteजीवन को सहना होता है,
ReplyDeleteमध्यम सुर कहना होता है।
लैब सीने पड़ते हैं ... साँसें लेनी पड़ती हैं ... जो उम्र है उसको बिताना ही होता है ... शायद यही लिखा है उसने जीवन में ...
ReplyDeleteया ख़ुदा!
ReplyDeleteयादों को जब जीना सिखाया....
होठों को सीना क्यूँ ना सिखाया... :(
हौसला बनाए रखिए!
मुस्कुराइये... मुस्कुराइये... मुस्कुराइये... :-)
~सादर!!!
ज़िंदगी अगर एक प्यार क्या गीत है
ReplyDeleteतो ग़म का सागर भी है हँस के उस पार जाना पड़ेगा।
~सादर!!!
उफ़! न कर
तू अब लब सी ले ...
मिले ग़र ज़हर का प्याला
आँख मूंद उसे पी ले ...
जिन्दगी में आयेगे
वो मंज़र भी
जिसे तू देखना न चाहे
याद कर बीते
सुहाने पलों को
उन पलों में जी ले ...
यही तो रास्ता है ... सहमत हूं...
आदरणीय चाचाश्री अशोक सलूजा जी
नन्ही-सी कविता में आपने तो पूरा जीवन दर्शन भर दिया !
# विदेश-भ्रमण से घर-वापसी हो गई , जान कर अच्छा लगा ।
अवश्य ही आपका घर आपको देख कर ख़ुश होगा...
हम सब भी !!
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार