उनसे प्यार की बात कही नही जाती
बेरुखी मुझसे उनकी सही नही जाती
---अशोक "अकेला "
यह सोच....फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!
बहुत देखा,बहुत सुना ,
बहुत सहा,कुछ न कहा
बहुत बहलाया सबको
बहुत फुसलाया सबको
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न किसी ने देखा
न किसी ने भाला
न किसी ने समझा
न किसी ने जाना
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
मैं चुप क्यों हूँ
मैं गुम क्यों हूँ
न किसी ने पूछा
मैं सुन्न क्यों हूँ
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न जवाब कोई भी पाता हूँ
बेबस हो कर रह जाता हूँ
सब की सुनता हूँ
ख़ुद को सुनाता हूँ
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं ....
बिछुड़े हुए उस मीत को
याद कर अपने अतीत को
दिल को अब हैरानी सी है
आँखों में अब वीरानी सी है
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
न अब कोई भी आएगा
न कभी मुझको मनायेगा
कभी मैं भी था उनका अपना
न कभी यह अहसास कराएगा
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं ....
लाख समझाया दिल को
बहुत मनाया दिल को
बहुत भरमाया दिल को
बहुत सताया दिल को
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं...
शायद इस उम्र का असर हो
आने वाली मंजिल का सफ़र हो
अपने से जब भी सवाल करता हूँ
पर दिल के जवाब से भी डरता हूँ
ये सोच... फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!
अशोक'अकेला' |
ReplyDeleteआपने हम सबके दिल बात कह दी -सच है चुप हो गया हूँ
Latest post हे निराकार!
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मन का कोई कोना कभी चुप हो जाना चाहता है.....
ReplyDeleteमगर स्वयं से संवाद जारी रहे!!
सादर
अनु
अर्थपूर्ण बात कही ..... सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ...
ReplyDeleteउम्र के आखिरी पड़ाव में शायद ऐसे ही अपने दूर हो जाते है
ReplyDeleteपहचाने भी अनजाने बन जाते है...
भावपूर्ण रचना...
[यादें...] New comment on यह सोच....फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!.
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रविकर
5:10 PM (49 minutes ago)
Reply
to me
रविकर has left a new comment on your post "यह सोच....फिर चुप सा हो गया हूँ मैं !!!":
बढ़िया है -
आभार आदरणीय-
रविकर जी ....अपनी अनचाही गलती की क्षमा चाहता हूँ ....
Deleteभावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteबढ़िया है -
kal ek film dekhte yah sochta rah gaya ki jab sabhi priyjan nahi honge umr ke ek daur main , tab kaise katengi shame, aaj aapki kavita padhi, jaise dard ko alfaj mil gaye,
ReplyDelete!!
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक, लाजवाब रचना.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत-बहुत आभार आपका !
ReplyDeleteअरुण जी इस मान-सम्मान का शुक्रिया !
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी रचना :- चलो अवध का धाम
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ! बधाई
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
ठहरो थोड़ा, मौन बहेगा
ReplyDeleteअक्सर कुछ ऐसा हो जाता है जहां हम चुप हो जाते हैं.बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteइस चुप्पी का कोई उत्तर है क्या ??????
ReplyDeleteअंजू जी ....उत्तर में इक चुप्पी भली ....:-))
Delete
ReplyDeleteन किसी ने देखा
न किसी ने भाला
न किसी ने समझा
न किसी ने जाना
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
मैं चुप क्यों हूँ
मैं गुम क्यों हूँ
न किसी ने पूछा
मैं सुन्न क्यों हूँ
फिर चुप सा हो गया हूँ मैं....
जोरास्ता संसार की तरफ जाता है उसमें से दुःख ही निकलता है यहाँ सुख के पीछे दुःख खड़ा होता है दुःख के पीछे सुख। भगवान् की तरफ जो रास्ता जाता है वह न कभी नष्ट होता है न कभी किसी को निराश करता है न "अकेला "इस रास्ते पे जो चलने लगता है फिर हमेशा नारायणी नशे में रहता है।
मन में उदासी घिर आती है तो चुप का साथ अच्छा लगने लगता है ... पर मन को उभारना होता है इस अकेलेपन से ... बाहर निकलो तप मुसाफिर मिल ही जाते हैं ...
ReplyDeleteआपके स्नेह का आभार सुमन जी....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
शायद इस उम्र का असर हो
ReplyDeleteआने वाली मंजिल का सफ़र हो
अपने से जब भी सवाल करता हूँ
पर दिल के जवाब से भी डरता हूँ...
लेकिन मन ही मन में मौन मुखर हो जाता है ॥न जाने कितने संवाद होते हैं स्वयं से ।