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ये वक्त है....??? 
 ये वक्त है, जो बहुत कुछ हम से कराता है 
 ये वक्त है, जो बहुत कुछ हम को दिखाता है  
 ये वक्त है, जो बहुत कुछ हम को समझाता है  
ये वक्त है, जो नाकामयाबी पर हम को चिड़ाता है 
 ये वक्त है, जो अपनी मर्ज़ी से हम को चलाता है 
ये वक्त है, जो हम को गद्दी पर बैठाता है 
 ये वक्त है, जो हम  को कुर्सी से गिराता है 
 ये वक्त है, जो चोटी पर हम  को चढ़ाता  है 
 ये वक्त है, जो हम  को गिरा के उठाता है 
 ये वक्त है, जो हम को लड़ाता है 
 ये वक्त है, जो हम को हराता है 
 ये वक्त है, जो रूठों को मनाता है 
 ये वक्त है, जो चोट पर मरहम लगाता है 
 ये वक्त है, जो एहसान हम पर जताता है  
ये वक्त है, जो चैन की नींद हम को सुलाता है  
 ये वक्त है, जो कुछ भी न करने से घबराता है 
 ये वक्त है, जो हम  को जीना सिखाता है 
 ये वक्त है, जो उम्र हमारी को घटाता है 
 ये वक्त है, जो  हम  को मरने से डराता है 
 ये वक्त है, जो चाल अपनी से हम को हराता है 
 ये वक्त है, जो अर्थी पर हम को लिटाता है 
 ये वक्त है, जो चिता हमारी को सज़ाता है 
 ये वक्त है, जो आखिर आग में हम को जलाता है 
 ये वक्त है,  छोड़ पीछे सबको आगे निकल जाता     है....... 
 ये वक्त है, जो फिर कभी हाथ नही आता है 
 सो डर कर रह इस वक्त से हर दम-हर घड़ी  
 न इससे अच्छा कोई दुनियां में, 
 न इस वक्त से कोई मुसीबत बड़ी.....  
--अकेला | 
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Wednesday, July 26, 2017
ये वक्त है....???
Friday, July 21, 2017
वक्त.....वक्त की बात है!!!
| वक्त.....वक्त की बात है!!! 
 वक्त वक्त की बात है 
 वक्त क्या क्या दिखलाता है 
 वक्त क्या क्या समझाता है 
 लड़े-झगड़े गले मिले 
 गिले-शिकवे दूर हुए ...... 
 ये हमारे वक्त की बात है..... 
 लड़े- झगड़े गले मिले 
 लबों पे मुस्कान 
 दिल से दूर हुए.... 
 ये आज के वक्त की बात है ..... 
 दुनियां की उलझनों से कर ली मैंने दोस्ती  
इस जिन्दगी के मोड़ आज-तक मेरे न हुए....--अकेला 
#हिंदी_ब्लागिँग | 
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Thursday, July 20, 2017
यादें...: कामयाबी की तदबीरें...???
यादें...: कामयाबी की तदबीरें...???#हिंदी_ब्लागिँग: ब्लॉग में लिखने वालों को भी फिर से पढ़ा जाने लगा है    या जाने लगेगा .....बहुत मंजे हुए ब्लोगरों की मेहनत फिर    से रंग लाएगी...और हम जैसो ...
Wednesday, July 05, 2017
कामयाबी की तदबीरें...???
ब्लॉग में लिखने वालों को भी फिर से पढ़ा जाने लगा है 
या जाने लगेगा .....बहुत मंजे हुए ब्लोगरों की मेहनत फिर 
से रंग लाएगी...और हम जैसो की भी सुनी जाएगी ....
इसी उम्मीद पर अपने साधारण से शब्दों में अपने साधारण 
विचार ....आप के सामने ....
ये क्या है ,इसको क्या कहते है ये सब आप जाने ???
जो दिल ने कहा, वो मैंने लिख डाला ....
शुभकामनायें आप सब को |
#हिंदी_ब्लागिँग
#हिंदी_ब्लागिँग
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 ढूँढा बहुत मैंने किस्मत में अपनी उन तदबीरों को 
 मल मल के देखा मैंने अपनी हाथों की लकीरों को  
 जो लिखा है उसने तेरे लिए वो मिलेगा तुझको ही  
 न नाराज़ हो, इलज़ाम लगा बेकार तू तकदीरों को 
 न ले कर गया कोई साथ न ही ले कर तू जाएगा 
 सब कुछ धरा रह जायेगा क्या करेगा तू जागीरों को 
 सब की मंजिल एक चलने के रास्ते हैं जो चुने हुए 
 मिलेंगे सब तुझको वहीं यहाँ क्या पूछे राहगीरों को 
 बचपन खेला जवानी कूदी बुढ़ापा चलने से मजबूर हुआ 
 बैठा लेट आंसू बहाता देख अपनी ही पुरानी तस्वीरों को 
 करता रह कर्म, निबाह के धर्म बाकी सब छोड़ दे उसपे 
 ख़ुशी से हो के मस्त कहे 'अकेला' क्यों फ़िक्र हम फकीरों को... -अकेला | 
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Saturday, July 01, 2017
यादें ,वो गर्मी की दोपहरी की ....
ताऊ रामपुरिया जी ....
ताऊ की पहल ...उजड़े चमन को बसाने में ...
मेरी शुभकामनाये ताऊ को इस चमन में नये,पुराने
फूल खिलाने में ....
बड़े दिनों के बाद ब्लॉग पर यादें आईं है, गर्मी में
बीते हुए बचपन की दोपहरी की गर्मियों की....
आप सब से साझा कर बड़ी ख़ुशी महसूस कर रहा हूँ ....
बस,आप की नज़र चाहिए इस मेरी पोस्ट पर |
फिर कुछ अच्छा,नया सीखने को मिलेगा आप सब से ..
खुश रहें स्वस्थ रहें .....
अशोक सलूजा
यादें ,वो गर्मी की दोपहरी की ....
आज याद आता है फिर यादों में वो गुज़रा प्यारा सा बचपन
वो झुलसती गर्मी, दोपहरी में खिलखिलाता न्यारा सा बचपन
नीम की ठंडी छांव में, पड़ी चारपाई पर, वो बेसुध सा पड़ना
रुके ग़र हवा, निर्जीव हाथों से, वो हाथ की पंखी का झलना
दिन भर धूल भरी आँधियों का, वो जोर से शांय शायं चलना
मारना मुहं पे, गर्म हवाओं का थप्पड़, और अदा से मचलना
निकर बनियान में, सुने पड़े बाज़ार में, वो मेरा भागते जाना
ठन्डे पानी की चाह में, आने दो आने की, बर्फ का वो लाना
वो तपती तारकोल की सड़को पे, मेरा भागना और चलना
बर्फ़ से नंगे हाथ का ठिठुरना, नंगे पाँव से पैरों का जलना
वो दौड़ लगाना तेजी से और उधर तेजी से बर्फ का गलना
था कितना सुहाना वो दोपहरी का, उमस भरी शाम में ढलना
ताऊ की पहल ...उजड़े चमन को बसाने में ...
मेरी शुभकामनाये ताऊ को इस चमन में नये,पुराने
फूल खिलाने में ....
बड़े दिनों के बाद ब्लॉग पर यादें आईं है, गर्मी में
बीते हुए बचपन की दोपहरी की गर्मियों की....
आप सब से साझा कर बड़ी ख़ुशी महसूस कर रहा हूँ ....
बस,आप की नज़र चाहिए इस मेरी पोस्ट पर |
फिर कुछ अच्छा,नया सीखने को मिलेगा आप सब से ..
खुश रहें स्वस्थ रहें .....
अशोक सलूजा
यादें ,वो गर्मी की दोपहरी की ....
आज याद आता है फिर यादों में वो गुज़रा प्यारा सा बचपन
वो झुलसती गर्मी, दोपहरी में खिलखिलाता न्यारा सा बचपन
नीम की ठंडी छांव में, पड़ी चारपाई पर, वो बेसुध सा पड़ना
रुके ग़र हवा, निर्जीव हाथों से, वो हाथ की पंखी का झलना
दिन भर धूल भरी आँधियों का, वो जोर से शांय शायं चलना
मारना मुहं पे, गर्म हवाओं का थप्पड़, और अदा से मचलना
निकर बनियान में, सुने पड़े बाज़ार में, वो मेरा भागते जाना
ठन्डे पानी की चाह में, आने दो आने की, बर्फ का वो लाना
वो तपती तारकोल की सड़को पे, मेरा भागना और चलना
बर्फ़ से नंगे हाथ का ठिठुरना, नंगे पाँव से पैरों का जलना
वो दौड़ लगाना तेजी से और उधर तेजी से बर्फ का गलना
था कितना सुहाना वो दोपहरी का, उमस भरी शाम में ढलना
--अशोक'अकेला'
#हिंदी_ब्लागिँग
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