आखिर भटकते भटकते पहुँच ही गया आप के पास ये बड़ी खुशनसीबी है मेरी की मेने आप को पा लिया |मेरे पास आप को देने को कुछ भी नहीं कियोंकि में तो अनपड़ और इस खेल में बिलकुल अनाड़ी हूँ |सो मेरे पास खोने को भी कुछ नहीं |बस आप अपने सामान का ध्यान रखें | में आप से कुछ लूँगा ,कुछ प्यार से ,कुछ तकरार से .और कुछ दरकार से .....आज के लिए बस इतनी ही मुलाकात ......आप सब खुश रहें
प्यार के दो मीठे बोल सुनने का
मुझे सरूर है ,
नही कुछ और जरूरत मेरी इसका
मुझे गरूर है
शर्त इतनी ,बस प्यार से लो जान मेरी
मुझे मंजूर है |
ये मैं हूँ |
अशोक सलूजा |
मुझे सरूर है ,
नही कुछ और जरूरत मेरी इसका
मुझे गरूर है
शर्त इतनी ,बस प्यार से लो जान मेरी
मुझे मंजूर है |
ये मैं हूँ |
कल 02/05/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट का नयी पुरानी हलचल पर स्वागत करते हैं .
ReplyDeleteआपके बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा है .धन्यवाद!
... '' स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...
बहुत ही बढ़िया....
ReplyDeleteप्यार में तो सब जायज है....
प्यार से क्या नही जीता जाता ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!