जीना भी एक बहुत बड़ा....... जुर्म है आखिर......
शायद ! इसी लिए हर शख्स को सज़ाए-मौत मिलती है ||
----अज्ञात
एकाएक!!!
वो
एक दिन
किसी के
हाथों पर
आ गया||
कस्मकाया
कांपा
और
धरती पर
आ गया||
हिला, डुला
फिर रेंगा
उठ खड़ा
हुआ ,
चला ,डगमगाया
लडखडाया ,
चलते-चलते
भागने लगा||
तेज...तेज...
...और तेज,
...फिर
लडखडाया ,
डगमगाया ,
हांफने लगा||
रुक गया ,
गिर गया
लेट गया
फिर किन्ही
दो हाथों ने
उठा लिया||
संभाल
न सके,
कई हाथों
ने उठा कर
चार कन्धों
पर लिटा दिया||
...फिर
ले चले
अनजानी राहों पे...
छोड़ दिया
अँधेरी गुफ़ा में,
रख दिया
जलती ज्वाला पर||
एकाएक!!!
गायब हो
गया ...
कहाँ..?
जहाँ से
एकाएक!!!
आया था .........!
चित्र गूगल साभार
अशोक'अकेला' |
यर्थाथ का चित्रण। सादर।
ReplyDeleteवाह !!!!
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों में सारा सफर लिख डाला .....
बहुत खूब सर.
सादर.
शास्वत का प्रभावी चित्रण...
ReplyDeleteसादर.
आज के यथार्थ का सार्थक सटीक चित्रण,बेहतरीन प्रस्तुति.......
ReplyDeleteMY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
जीवन सफ़र को बहुत खूबसूरत शब्दों में पिरोया है .
ReplyDeleteयह जीवन चक्र यूँ ही चलता है . बस रह जाती हैं तो यादें --कर्मों की .
यर्थाथ है .......
ReplyDeleteजीवन चक्र का सटीक चित्रण्।
ReplyDeleteमाटी का पुतला ...एक दिन माटी में मिल गया
ReplyDeleteयही हैं जीवन के पड़ाव ....
ReplyDeleteहाथों पर आया, कान्धों पर जाता है..
ReplyDeleteहाड़ जारे ज्यों लाकड़ी ,केश ज़रे ज्यों घास ,
ReplyDeleteसब जग ज़रता देख के ,कबीरा भया उदास .
तूने खूब रचा रे भगवान्, खिलौना माटी का ,
जिसे कोई न सका पहचान, खिलौना माटी का . अ
कहाँ से आया है तू कहाँ तुझे जाना है ,
सब कुछ एक पहेली है दादा,....अच्छी पोस्ट दर्शन खंगालती सी ....
satya ki prastbhoomi par jivan ...satya ko sarthak karati kavya prastuti
ReplyDeleteये तो जीवन का शाश्वत सच है ... जो आया है उसे जाना है ... इसे सजा कहो या मुक्ति ... जिंदगी के जुर्म की सजाये मौत या आत्मा को जिस्म की कैद से आज़ादी ...
ReplyDeleteji yahi kdwa saty hai ....
ReplyDeletebda ajib hai ye silsila ...khas kar budhapa to bahut hi kashtdayak hota hai ...
kuchh din pahle imroz ji bhi yahi kah rahe the ki kam se kam budhape ki kashtmay zindagi mein to man chahi mout ka hak hona chahiye ....
सत्य वचन!!
ReplyDeleteचंद लाइनों में पहाड़ सा जीवन बांध दिया आपने , यही है जीवन कटु सत्य , इंसान खामख्वाह "में" के बोझ को उठाये घूम रहा है
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
बहुत बढ़िया जीवन का यथार्थ प्रस्तुति करती गहन अभिव्यक्ति....रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteस्नेह के लिए आप सब का दिल से ...
ReplyDeleteआभार!
आप सब खुश और स्वस्थ रहें!
कैसा है यह चक्र , कैसी पहेली !
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteजीवन का सत्य चित्रण
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