Monday, October 01, 2012

मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

कहने वाला तो कह के, यहाँ से गुज़र गया ,
 जिसपे गुज़री वो तो, जहाँ से गुज़र गया |
....अकेला के, यहाँ से गुज़र गया जिसपे गुज़से गुज़र गया 
मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

 मैं भी आप की भीड़ का हिस्सा हूँ
 मेरी अलग से कोई पहचान नही

 मुझे भी लाया गया है ,इस दुनियां में
 मैं बिन बुलाया तो मेहमान नही

 मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
 यह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही

 मेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
 कोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही

मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ  
 नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही

लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
 इससे बड़ा कोई और... अरमान नही

 निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
 इतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही

 लड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
 क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही ||

अशोक 'अकेला'

39 comments:

  1. मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
    यह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही

    सबके मन की सी बात....

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    Replies
    1. ठीक कहा आपने ...सबके मन की सी बात ...
      आभार!

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  2. निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
    इतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही
    आपका हर शेर उम्दा है ...जीवन के तजुर्बे का वजन है उसमें ...बहुत सुंदर भावनाएं हैं ...
    शुभकामनायें ...

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  3. बहुत बढिया रचना है भाई साहब एक दम से आपकी तरह बिंदास दो टूक .

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    Replies
    1. आपकी बिंदास लेखनी को भी सलाम ...
      वीरू भाई राम-राम !

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  4. जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, मत कहना इसका भान नहीं।

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    Replies
    1. यह मेरा गर्व है,अभिमान नही .....
      शुक्रिया !

      Delete
  5. मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ
    नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही

    लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
    इससे बड़ा कोई और... अरमान नही
    शब्द कम होंगे इस उत्कृष्ट ग़ज़ल की तारीफ के लिए ये दो शेर तो जबरदस्त कहे कल के चर्चा मंच पर आइयेगा कल आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा होगी बधाई अशोक सलूजा जी

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  6. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है

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    Replies
    1. इस स्नेह,मान-सम्मान के लिए ....
      आपका आभार !

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  7. नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही

    क्या बात है ......

    देखे हैं हमने भी जहां इंसान कई
    पर आप सा पाक साफ़ इंसा नहीं

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    Replies
    1. इसके लिए क्या कहूँ.....बस गर्दन झुकी जाती है ..
      स्वस्थ रहें !

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  8. वाह! बेहतरीन गज़ल... हर एक शेअ'र ज़बरदस्त है....

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  9. दिल के उठते दर्द की उत्कृष्ट प्रस्तुति,बेहतरीन गजल,,,,अशोक जी,,,

    लड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
    क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही,,,,वाह,,,क्या बात है,

    RECECNT POST: हम देख न सके,,,

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  10. वाह बहुत खूब !

    हर तरफ चल रहा है जब कोई अकेला
    फिर ये साथ मिलकर कौन जा रहा है
    आदमी चल रहा खुद अपने ही साथ में
    भगवान बस भीड़ एक बना रहा है !

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  11. आज इंसान की ही ज़रूरत है ... इंसान बने रहना ही बहुत बड़ी बात है .... सुंदर गज़ल ।

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  12. मेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
    कोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही

    मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ
    नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही


    बहुत सुंदर
    क्या कहने



    जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
    http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb

    ReplyDelete
  13. जीवन दृष्टि जीवन बोध सभी कुछ लिए है यह रचना .बधाई .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
    ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .

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  14. आज के वक्त में इंसान इंसान ही बना रहे ...ये ही बहुत बड़ी बात है

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  15. 'लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
    इससे बड़ा कोई और... अरमान नही'
    साधुवाद के सिवा और क्या कहूँ

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  16. नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही... बहुत सुन्दर..

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  17. हर शेर लाजवाब ...बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पढ़ी है

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  18. लूटूं खुशियों का खज़ाना और बाँट दूं -क्या बात है

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  19. बहुत खूब गजल है..
    हर शेर पर दाद कबूल करें...
    लाजवाब...
    शानदार...
    :-)

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  20. वाह ... बहुत ही बढिया।

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  21. लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
    इससे बड़ा कोई और... अरमान नही

    aise arman ka jawab nahin.

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  22. आप सब के प्यार ,स्नेह ओर मान-सम्मान का बहुत-बहुत
    दिल से आभार व्यक्त करता हूँ ....ओर आप सब को बड़ी
    नम्रता-पूर्वक कहना चाहूँगा कि????
    यह न कोई गज़ल,न गज़ल का धोखा है....
    येही मेरे अंदर की खिड़की है ,और झरोखा है!
    अशोक'अकेला'

    आप सब खुश ओर स्वस्थ रहें!

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  23. लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
    इससे बड़ा कोई और... अरमान नही

    एक सच्चे इन्सान के लिए इससे बड़ा अरमान नहीं हो सकता।
    सकारात्मक चिंतन को प्रदर्शित करती सुंदर रचना।

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  24. मुझे आपकी नज्म पढ़कर के रफी का एक गाना याद आ गया ''जाने वालों जरा मुड के देखो मुझे ,एक इंसान हूँ मै तुम्हारी तरह.
    क्या नज्म लिखी है आपने ,इसकी तारीफ के लिए हर शब्द को कम समझता हूँ.अपनी कैफियत भी कुछ ऐसी ही है.

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  25. मज़बूत शब्द, मज़बूत अभिव्यक्ति ...
    आभार भाई जी !

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    Replies
    1. आपने याद किया ...अच्छा लगा !
      खुश और स्वस्थ रहें!
      आभार !

      Delete
  26. बहुत अच्छा !!

    ReplyDelete

मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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