यादें ---अनकही अपने बचपन की ....इनको मैंने
१५-१६ साल पहले लिखा था और दो साल पहले
शुरू-शुरू में अपने ब्लॉग पर भी .......
आज फिर मेरी यादें ,मुझे अपने बचपन में खींच
ले गयी और जो मेरे अंदर सोया बच्चा था उसे जगा दिया |
बहुत कोशिश की थपथपा कर बहलाने की ,सुलाने की
पर दिल तो बच्चा है न ??
समर्पित करता हूँ...अपनी यादों को ...अपनी पूज्य नानी जी ,
मामा जी और अपने प्यारे दोस्त इन्दर को जो अब मेरे जीवन
में मेरे साथ नही ....पर यादों में मरते दम तक रहेंगे !!!!

मेरी नानी जी
मेरे मामा जी
मैं और मेरा दोस्त
फिर एक नई बोतल , फिर वोही पुरानी शराब
फिर आपको बताऊँ कैसे हुआ मेरा ख़ाना-ख़राब
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मेरा बचपन |
मुझ को पाला था ,पोसा था
बड़ा प्यार दिया था मेरी नानी ने
मुझ को अपने कन्धों पे घुमाया था
मेरे मामा ने अपनी जवानी में ...
न माँ ,न मौसी ,न भाई ,न बहना और न नाना
बस थी मेरी नानी और था एक मामा सयाना
पड़ती थी मुझ को भी मार बचपन में
जिसकी उठती है मीठी पीड़ अब भी पचपन में
पड़ा था मेरा भी बचपन में शरारतों से पाला
कभी मुझको भी था उन्होंने मुसीबतों में डाला
याद आती है अब भी मार मामा की
याद आती है सब को नानी,मुझ को
याद आती थी तब नाना की ...
कभी थप्पड़ और कभी-कभी लातो की मार
छुपा रहता था ,कहीं उसमें भी मामा का प्यार
बेचारा मामा तो चाहता था पड़ना कमज़ोर
मेरा बचपन ही था कुछ ज़्यादा मूह्ज़ोर
बीच-बचाव में जब छुड़ाने आती थी नानी
तब कुछ ज्यादा ही कर जाता था मैं मनमानी....
चार ,आठ दस आने का वो जमाना था
सिनेमा देखने का बनता जब कोई बहाना था
तब लगाता था मस्का मैं अपनी नानी को
यूँ कर लेता था ,मैं अपनी पूरी मनमानी को
कभी ऐसा भी हुआ ,जो बात न मेरी नानी ने मानी
अपनी हाथ-सफ़ाई से ली मैंने उनकी ज़ेब की कुर्बानी ....
पकड़ा गया जो फिर जब, तो हुई पिटाई भी
फिर कुछ न काम आई मेरी कोई सफाई भी
फिर भी वो अच्छे दिन थे आज से
खाया-पिया,खेले और पिटे पर ख़ास थे ....
बचपन से ही मेरा शौक बड़ा अज़ीब था
मैं सिनेमा और सिनेमा संगीत के करीब था
जासूसी नावल,फ़िल्मी मैगज़ीन और कहानी
किताबों का शौक भी बड़ा है
मैंने फिल्मफेयर ,जेम्स हेडली चेईज़ और
मुंशी प्रेम चन्द का गौदान भी पढ़ा है
शेरो-शायरी का भी मुझे शौक है
ख़ुशी से सुनता हूँ ,जो सुनाये
कोई अच्छा सा जोक है....
कहीं पे न अटका ,जो थोड़ा सा भटका
फिर आ गया मैं अपनी सीधी राहों पे
अब अच्छे कर्मों के लिए निगाह है
अपने इष्ट-देव की निगाहों पे ....
अब भी मेरी यादों में मेरे साथ हैं
मेरा दोस्त,मेरा मामा और मेरी नानी
अपने बुढ़ापे में मरते दम तक ,नाती-नातिन
पोती-पोतो को मैं सुनाऊंगा अपनी
खट्टी-मीठी ,शरारतों भरी ये कहानी.....
आप सब को आने वाले नववर्ष २०१३
की शुभकामनायें .....
आप सब बहुत खुश और
स्वस्थ रहें ......
अशोक सलूजा |