करता था मैं उनसे प्यार
और आज भी करता हूँ,
पहले वो मुझ पे मरते थे
आज मैं उनपे मरता हूँ ||
और आज भी करता हूँ,
पहले वो मुझ पे मरते थे
आज मैं उनपे मरता हूँ ||
----अशोक"अकेला"
मैंने उसको....सताया नही !!!
कलम हाथ में लिए बैठा हूँ
उसने कुछ सुझाया ही नही
बोला दिल कुछ,मुझसे ऐसे
किसी ने मुझे,दुखाया ही नही
क्या लिखाऊं,क्या सुझाऊ तुझे
आज किसी ने तड़फ़ाया नही
चारों तरफ है सुहाना लगे
आज मैं भी घबराया नही
उसने भी कह दी अपनी बात
और मैं भी आज शरमाया नही
कुछ ऐसा भी कहा कान में
मेरी कुछ समझ आया नही
मैंने भी छोड़ दिया उसको'अकेला'
आज मैंने भी उसको सताया नही ....
---अशोक 'अकेला'
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आप के लिए ..Toronto Canada से ...
स्वस्थ रहें!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (03-06-2013) को फिर वोही गुज़ारिश :चर्चा मंच 1264 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार शास्त्री जी .....
Deleteसुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDelete
ReplyDeleteबोला दिल कुछ,मुझसे ऐसे
किसी ने मुझे,दुखाया ही नही
काश ये दिल हमेशा यही कहता रहे ..... सुंदर एहसास
काश! कि ये बात हम सब के लिए सच हो ..
Deleteआभार आपका !
Love consists in this, that two solitudes protect and touch and greet each other.
ReplyDeleteरिल्के की पंक्तियों का कुछ हिस्सा याद आता है आपकी कविता को पढ़कर
शुक्रिया सौरभ जी ....
Deleteबहुत ही प्यार लिखा है..कुछ नहीं होने का भाव, हल्का हल्का सा।
ReplyDeleteआपका बड़ो के प्रति प्यार अच्छा लगता है ....
Deleteखुश रहें!
मैंने भी छोड़ दिया उसको'अकेला'
ReplyDeleteआज मैंने भी उसको सताया नही ...
बहुत सुंदर अहसासों से भरी बेहतरीन प्रस्तुति ,,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
शुक्रिया भाई जी ....
Deleteबहुत सुंदर .......बेहतरीन प्रस्तुति ......
ReplyDeleteशुक्रिया मेरे हमनाम दोस्त ...
Deleteमैंने भी छोड़ दिया उसको'अकेला'
ReplyDeleteआज मैंने भी उसको सताया नही ...सुन्दर प्रस्तुति !
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बहुत आभार प्रसाद भाई जी ....
Deleteबहुत ही कोमल भावपूर्ण प्रस्तुति...
ReplyDeleteधन्यवाद रीना जी ....
Deleteस्वस्थ रहें!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय ... सादर !
ReplyDeleteइस मान-सम्मान के लिए दिल से आभार ...
Deleteखुश रहिये !
वाह क्या बात है सलुजा साहब, बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
शुक्रिया ताऊ(भाई जी )
Deleteराम-राम !
बहुत अच्छी रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
शुक्रिया महेन्द्र जी ...
Deleteस्वस्थ रहें!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.....
ReplyDeleteसादर
अनु
शुक्रिया अनु ! बहुत अच्छा लिखती हो !
Deleteखुश रहो !
आभार!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल. हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeleteआभार आपका जी.....मैं आप को पढ़ता हूँ ..अच्छा लगता है !
Deleteधन्यवाद यशोदा जी आपका ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना ......
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका शिखा जी .....
ReplyDeleteखुश रहें!
बेहतरीन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशुक्रिया! शर्मा जी ...
Deleteकरता था मैं उनसे प्यार
ReplyDeleteऔर आज भी करता हूँ,
पहले वो मुझ पे मरते थे
आज मैं उनपे मरता हूँ ||
बहुत खूब कहा. दिल की सुनना भी जरुरी है.
जैसे दिल का धडकना हमारे लिए जरूरी है ...:-))
Deleteआभार रचना जी !
बहुत खूब ... सहज भाव उतार दिए ...
ReplyDeleteमन में सीधी उतरती है ये नज़म ... लाजवाब .. आशा है आप कुशल से होंगे ...
अच्छा लगा ! नासवा जी आप का आना ....
Deleteमैं ठीक हूँ ....बहुत-बहुत शुक्रिया !
कमाल कर दिया आपने ...
ReplyDeleteवाह !!
सारे जीवन "अकेला" मैं बैठा रहा,
आज तक मैंने उसको सताया नही
क्यों कुरेदते हो राख दबी-दबी
ReplyDeleteदिल जला हैं मेरा यहाँ अभी-अभी ..
सच कहूँ तो लिखते वक़्त भी था
तेरा नाम आस पास खड़ा वहीँ कहीं ....
मैंने भी छोड़ दिया उसको'अकेला'
ReplyDeleteआज मैंने भी उसको सताया नही ...
बहुत सुंदर अहसासों से भरी प्रस्तुति ,,,
कभी कभी दिल को यूं ही छोड देना चाहिये
ReplyDeleteवही क्यू रोये हमेशा , उसे मुस्कुराना चाहिये ।
क्या बात है! बहुत सुंदर...
ReplyDeleteआपकी हर रचना में एक अजीब सी क़शिश होती है... भैया!
~सादर!!!