वो बातें दिल का ग़ुबार होती हैं
जो बातें बयाँ के बाहर होती है
---अशोक "अकेला "
उम्मीद करता हूँ , मेरी पसंद ,आप के दिल को
भी भायी होगी .....
खुश रहें,स्वस्थ रहें!
अशोक सलूजा !
जो बातें बयाँ के बाहर होती है
---अशोक "अकेला "
यादों की गठरी खुली और फिर वो ज़माना
याद आया ..जब ये गुलाम अली साहब की
दर्द भरी ग़ज़ल को गाने का मन करता था .....
खूब गुनगुनाया करता था ...जैसे चुपके से कोई
सन्देश दे रहा हो किसी अपने को ...अपने दिल
की बात ...दिल का दर्द... बयाँ कर रहा हो !!!
ओह ! पर आज तो मैं आप को अपनी पसंद
सुनाने जा रहा हूँ ..तब से आप का, क्या लेना-देना ....
उस रास्ते पर चल कर मैं तो उसे अपने पीछे छोड़
आया ..आज कोई और उस रास्ते पर चल रहा है...
कल कोई और उस रास्ते पर चलेगा,कभी न कभी,
तो हर शख्स के सामने ये रास्ता आता ही है..........
तो आइये मेरे साथ मैं आप को सुनवाता हूँ आज
अपनी पसंद की ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल .....
सुरों से सजाया है ...ज़नाब गुलाम अली साहब ने..
अहसासों से लिखा ....ज़नाब परवेज़ जालंधरी साहब ने..
तो आप भी महसूस कीजिये इस में दिए गये
किसी के दर्द भरे सन्देश को ......
..
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
हाँ वोही लोग तेरे चाहने वाले होंगे
मय बरसती है फ़िजाओं पे ,नशा तारी है
मेरे साक़ी ने कहीं ज़ाम उछाले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......
शमा ले आयें हैं हम, जलवागर जाना से
अब तो आलम में उजाले ही उजाले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.....
हम बड़े नाज़ से आये थे तेरी महफ़िल में
क्या खबर थी लबे इज़हार पे ताले होंगे
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
उम्मीद करता हूँ , मेरी पसंद ,आप के दिल को
भी भायी होगी .....
खुश रहें,स्वस्थ रहें!
अशोक सलूजा !
बहुत खूबसूरत गज़ल ही ...
ReplyDelete☆★☆★☆
जिनके होंटों पे हंसी ,पांव में छाले होंगे
हां वोही लोग तेरे चाहने वाले होंगे
आहा हा...
बहुत ख़ूबसूरत मखमली ग़ज़ल है ...
आदरणीय अशोक सलूजा जी
बहुत पहले से मेरी भी पसंद की है यह ग़ज़ल
कई बार सुनी है , अभी आपके यहां सुनेंगे...
(अभी लोड नहीं हुई है...)
आपका आभार !
# लगे हाथ कुछ मांग लेता हूं... आप अपनी आवाज़ में भी कुछ गाया हुआ सुनाया कीजिए न ! चाहे एक एक अंतरा ही पोस्ट करें
:)
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
are sir kya bat hai.bahut khub.......lazvab..........slam aapki pasand aur gulam ali sahab dono ko
ReplyDeleteयादों की गठरी में ऐसे कई नगीने होते हैं......
ReplyDeleteबहुत प्यारी ग़ज़ल..
राजेन्द्र जी के अनुरोध पर भी गौर फरमाएं :-)
सादर
अनु
खूबसूरत ग़ज़ल है। फिर सुनना अच्छा लगा।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल .... एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeletebahut sunder, gulam ali jab gate hain to lagta hai samay thoda dheema ho gaya hai. aapke blog main pahunchane par ham sabko wahi dheema hua samay mil jata hai.
ReplyDeleteबेहद ही खूबसूरत, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वाह!!!बहुत बढ़िया उम्दा गजल साझा करने के लिए आभार,,,
ReplyDeleteRECENT POST : फूल बिछा न सको
क्या बात वाह!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत गजल..
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteमेरी एक पसंदीदा गज़ल सुनवाने का आभार अशोक जी ...
ReplyDeleteबस सुने ही जा रहा हूं बहुत देर से ...
हमें भी ये ग़ज़ल बहुत पसंद है भैया...
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार... फिर से याद दिलाने और सुनवाने का...
~सादर!!!
बहुत ही उमदा पसंद है जनाब!
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