गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला
समय का कालचक्र ....!!!
मैं वो गुज़रे ज़माने की चीज़ हूँ
जो रख के, कोने में भुला दी जाती है
तब उस गुज़रे ज़माने की चीज़ को
अपने वक्त सुहाने की याद आती है
घर पहुँच सारी थकावट उतर जाती थी
जब बेटा हँसता था,बेटियां मुस्कराती थी
लगता था चारों तरफ़ अपना ही सम्राज्य है
कम-से-कम घर में तो अपना ही राज्य है
बेटियों पे अब, ससुराल की ज़िम्मेदारी है
बेटे पे अब आ,गयी घर की ज़िम्मेवारी है
आज जिस कोने में हैं, हम विराजमान
कल होगा वहाँ आप का, साज़ो-सामान
इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
सब समय का है कालचक्र!!!
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अशोक'अकेला' |
इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
ReplyDeleteसब समय का है कालचक्र!!!
बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
जीवन सदियों से ऐसे ही परिभाषित है, मान वे रखेंगे जिन्हें ज्ञात रहेगा कि उन्हें भी एक दिन उसी रास्ते से जाना है।
ReplyDeleteयही क्रम है ....
ReplyDeleteहम सभी इस समय के चक्र मे बंधे हुए है......शाश्वत प्रस्तुति...
ReplyDeleteआज जिस कोने में हैं, हम विराजमान
ReplyDeleteकल होगा वहाँ आप का, साज़ो-सामान
इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
सब समय का है कालचक्र!!!
बिल्कुल सही कहा आपने ...आभार ।
sahi kaha apne bahut hi behtarin rachana hai...
ReplyDeleteइस भाग्यचक्र और कालचक्र के चक्कर में ही जीवन चक्र चलता है . शुभकामनायें आपको .
ReplyDeleteये काल च्रक का पहिया ...हर किसी के लिए उसके समय पर ही घूमता हैं ...
ReplyDeleteसत्य को उद्घाटित कराती रचना ...यही काल चक्र चलता रहता है
ReplyDeleteखेतों की ओर न मुड़ता हैं।
ReplyDeleteसमय बादल बन उड़ता हैं।
शाश्वत सत्य को अभिव्यक्त करती प्रभावी रचना सर...
सादर
सलूजा सहाब, इतना भी निराशावादी दृष्ठिकोंण मत अपनाइए, ओल्ड इस आलवेज गोल्ड, बाकी सब तो दुनिया का दस्तूर है !
ReplyDeleteसमृद्धि के पलों में,
अपने लिए,
अपनों के लिए,
खोदकर पहाड़, समतलकर घाटी,
तैयार कर एक मैदान,
हैसियत के मुताविक
कुटी, मकान,फ़्लैट,
हवेली, बँगला, कोठी, कार
क्या कुछ नहीं जोड़ता इंसान !
किन्तु, एक बाढ़-पीड़ित ही जानता है
कि विपति का आशियाना,
एक सच्चा साथी
सिर्फ कोई टीला और एक तम्बू होता है !!
न भाई जी ....ये निराशावादी दृष्टिकोण बिल्कुल नही ....ये आने वाले कल की तजुर्बों के आधार पर सुचना है ....जिसके लिए आपके पास अपनी समझ के अनुसार
Deleteतैयारी के लिए समय भी ...फिर आपने तो खुद ही सब सच कह दिया है ...
बस येही सच है ....
किन्तु, एक बाढ़-पीड़ित ही जानता है
कि विपति का आशियाना,
एक सच्चा साथी
सिर्फ कोई टीला और एक तम्बू होता है !!
आप के स्नेह का ..
आभार!
सशक्त....
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ReplyDeleteसहज अभिव्यक्ति समयचक्र की!
ReplyDeleteसादर!
कुछ यूँ ही चलता है समय चक्र ..... सुंदर विवेचना
ReplyDeleteitni nirasha kyo.....sajiwta kabhi budhata nahi aur na hi nasht hota hai
ReplyDeleteये निराशा नही ....ये सच्चाई का तजुर्बा है ....
Deleteआप हमेशा खुश रहे...और इस तजुर्बे से वास्ता न पड़े ....
इसके लिए ...
शुभकामनायें!
वाह बहुत खूब ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दा शो मस्ट गो ऑन ... ब्लॉग बुलेटिन
koi aage koi peechhe ...koi bachne wala nahin hai ....
ReplyDeletesundar rachna ...
shubhkamnayen
सही है, कालचक्र मनुष्य की भूमिका को परिवर्तित करता रहता है।
ReplyDeleteइसी को कहते हैं भाग्यचक्र
ReplyDeleteसब समय का है कालचक्र ...
इस भाग्य चक्र और काल चक्र में ही इंसान घूमता रहता है ... और ये घूमना भी एक तरह का कालचक्र ही है जो भाग्य अनुसार ही चक्र लेता है ...
आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... मेरी शुभकामनायें ...
ReplyDeleteसमय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नही मिलता न ही कुछ होता,,,,
ReplyDeleteइसलिए हम निराश होकर क्यों जिए,,निराशा हमको कमजोर बनाती है,,,,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,