मेरा मैला आँचल न देख
मेरी तुझसे ये दुहाई है ,
मैंने अपनी साफ़गोई के नीचे
मखमली चादर बिछाई है ||
--अकेला
न जाने यह जीवन में, आया कैसा मोड़ है
अज़ब है यह सब, अब एक अंधी सी दौड़ है
टूट के बिखर रहें है मेरी, माला के दाने
न ढूंढे मिलता है अब, कहीं भी जोड़ है
न जाने यह जीवन में .....
चाहूँ भी तो अब माला, पिरो नही सकता
इकठा करके इनको अब, जोड़ नही सकता
न रही आँखों में रौशनी, न हाथों में ज़ोर है
न जाने यह जीवन में .......
अलग हो के बिखरे पड़े हैं, दाने-यहाँ-वहां
बदहवास सा हूँ, सोचने का अब समय कहाँ
मेरे चारो ओर अब , छाया अँधेरा घनघोर है
न जाने यह जीवन में .....
भागते फिर रहें है, माला को छोड़ ये दाने
कहाँ जा रुकेंगें अब, यह जीवन में कौन जाने
बिछड़ों को कहाँ, आसानी से मिलता कहीं भी छोर है
न जाने यह जीवन में ......
.
जिधर था जिसका मुहं ,वो भागा उसी रास्ते
कौन रुकेगा ,क्यों रुकेगा और किसके वास्ते
यहाँ भागने की लगी हुई आपस में होड़ है
न जाने यह जीवन में .....
मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे
न पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
न अब इस पहेली का मिलता मुझे कहीं कोई तोड़ है
न जाने यह जीवन में आया कैसा मोड़ है ........???
अशोक"अकेला" |
वाकई दिल नाम कर दिया आपकी इस रचना ने। जिन्दगी की भागम भाग को करीब से हर्फ बा हर्फ बयां करती एक बेहद सम्पूर्ण रचना है।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में
ReplyDeleteआभार सहित
सादर
मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे
ReplyDeleteन पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
एक कड़वा सच ....:((((((((((( *((((((((((((((
जीवन के इस दौर में शायद ऐसा ही होता होगा।
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति।
जिंदगी के सच की खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteatulniy-***
ReplyDeleteअनुपम भाव लिए एक मार्मिक अभिव्यक्ति ,एक कड़वा सच भी ..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteचाहूँ भी तो अब माला, पिरो नही सकता
ReplyDeleteइकठा करके इनको अब, जोड़ नही सकता
न रही आँखों में रौशनी, न हाथों में ज़ोर है
न जाने यह जीवन में .......
बहुत बढिया अनुपम सृजन,,,, बधाई अशोक जी,,,
recent post हमको रखवालो ने लूटा
सूत्र मिला तो दाने खो गये..
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन के साथ जीवन का एक कड़वा सच झलक रहा है आपकी इस अभिव्यक्ति में बहुत बढ़िया....मार्मिक रचना
ReplyDeleteकब मोती लेकर भला , आया था इस देश
ReplyDeleteजो मेरा था ही नहीं, उसपर क्यों हो क्लेश ||
बिछड़े सभी बारी बारी ...आज हम जीवन के जिस मोड़ पर हैं ...हमें इसके लिए मन कड़ा कर लेना चाहिए ...:)
ReplyDelete....मर्मस्पर्शी !!!
मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे
ReplyDeleteन पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
न अब इस पहेली का मिलता मुझे कहीं कोई तोड़ है
न जाने यह जीवन में आया कैसा मोड़ है ........???
बड़े जतन से माला में पिरो कर रखते हैं मोती .... पर वक़्त के साथ धागा टूट जाता है ... यही सच है ज़िंदगी का ...
मन को जितना भी समझाएं...जितना जी कड़ा करें.....
ReplyDeleteदिल सच मानना नहीं चाहता....
माला कभी न टूटे यही चाहता है....
सादर
अनु
समादर और स्नेह का दो -तरफ़ा प्रवाह बड़ा विरल है ,बिरलों को ही नसीब है .सुन मेरे भाई -
ReplyDeleteटूट गई है माला मोती बिखर गए ,
कल तक थे जो साथ जाने किधर गए .
यही दस्तूर है चलन ज़माने की रवायत है .
पर तू वफा कर बे -वफाओं के साथ ,
सुन अपनी आदत न बिगाड़ ,
न गिला कर ,न शिकवा ,
ये सब अपनों से किया जाता है ,
टूटी हुई माला के मनकों से नहीं .
राम राम जप ! .
राम राम भाई .शुक्रिया कर भाई ! आम का ,ख़ास का, सारी कायनात का , इजलास का .आम औ ख़ास का .
साचा का आभास कराती शानदार रचना |
ReplyDeleteकौन रूकेगा, क्यों रूकेगा? यह दार्शनिक प्रश्न आपने उपस्थित किया है और माला भले ही बिखर गई लेकिन सुंदर भाव संयोजन से कविता माला की तरह गूंथ गई। मुझे इस रचना को पढ़ कर शेखर एक जीवनी में पढ़ी हुई एक लाइन याद आ गई।
ReplyDeleteमाला के दानों की तरह न जाने यौवन के हाथों से कितने प्रणय बिखर जाते हैं.....
बिछड़ों को कहाँ, आसानी से मिलता कहीं भी छोर है
ReplyDeleteन जाने यह जीवन में ......
(अति सुंदर )
पढी कविता आँखों में नोड़ है