Thursday, December 13, 2012

लो !!! टूट के बिखर गई ...मेरी भी माला ...













मेरा मैला आँचल न देख 
मेरी तुझसे ये दुहाई है ,
मैंने अपनी साफ़गोई के नीचे 
मखमली चादर बिछाई है ||
--अकेला

न जाने यह जीवन में, आया कैसा मोड़ है 
अज़ब है यह सब, अब एक अंधी सी दौड़ है 
टूट के बिखर रहें है मेरी,  माला के दाने 
न ढूंढे मिलता है अब, कहीं भी जोड़ है
न जाने यह जीवन में .....

चाहूँ भी तो अब माला, पिरो नही सकता
इकठा करके इनको अब, जोड़ नही सकता  
न रही आँखों में रौशनी, न हाथों में ज़ोर है 
न जाने यह जीवन में .......

अलग हो के बिखरे पड़े हैं,  दाने-यहाँ-वहां
बदहवास सा हूँ,  सोचने का अब समय कहाँ
मेरे  चारो ओर अब , छाया अँधेरा घनघोर  है
न जाने यह जीवन में .....

भागते फिर रहें है, माला को छोड़ ये दाने 
कहाँ जा रुकेंगें अब, यह जीवन में कौन जाने
बिछड़ों को कहाँ, आसानी से मिलता कहीं भी छोर है 
न जाने यह जीवन में ......
.
जिधर था जिसका मुहं ,वो भागा उसी रास्ते 
कौन रुकेगा ,क्यों रुकेगा और किसके वास्ते 
यहाँ भागने की लगी हुई आपस में होड़ है 
न जाने यह जीवन में .....

मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे 
न पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
न अब इस पहेली का मिलता मुझे कहीं कोई तोड़ है 
न जाने यह जीवन में आया कैसा मोड़ है ........???


अशोक"अकेला"







21 comments:

  1. वाकई दिल नाम कर दिया आपकी इस रचना ने। जिन्दगी की भागम भाग को करीब से हर्फ बा हर्फ बयां करती एक बेहद सम्पूर्ण रचना है।

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  2. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में
    आभार सहित

    सादर

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  3. मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे
    न पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
    एक कड़वा सच ....:((((((((((( *((((((((((((((

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  4. जीवन के इस दौर में शायद ऐसा ही होता होगा।
    मार्मिक अभिव्यक्ति।

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  5. जिंदगी के सच की खूबसूरत प्रस्तुति

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  6. अनुपम भाव लिए एक मार्मिक अभिव्यक्ति ,एक कड़वा सच भी ..

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  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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  8. चाहूँ भी तो अब माला, पिरो नही सकता
    इकठा करके इनको अब, जोड़ नही सकता
    न रही आँखों में रौशनी, न हाथों में ज़ोर है
    न जाने यह जीवन में .......

    बहुत बढिया अनुपम सृजन,,,, बधाई अशोक जी,,,

    recent post हमको रखवालो ने लूटा

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  9. सूत्र मिला तो दाने खो गये..

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  10. अनुपम भाव संयोजन के साथ जीवन का एक कड़वा सच झलक रहा है आपकी इस अभिव्यक्ति में बहुत बढ़िया....मार्मिक रचना

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  11. कब मोती लेकर भला , आया था इस देश
    जो मेरा था ही नहीं, उसपर क्यों हो क्लेश ||

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  12. बिछड़े सभी बारी बारी ...आज हम जीवन के जिस मोड़ पर हैं ...हमें इसके लिए मन कड़ा कर लेना चाहिए ...:)
    ....मर्मस्पर्शी !!!

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  13. मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे
    न पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
    न अब इस पहेली का मिलता मुझे कहीं कोई तोड़ है
    न जाने यह जीवन में आया कैसा मोड़ है ........???

    बड़े जतन से माला में पिरो कर रखते हैं मोती .... पर वक़्त के साथ धागा टूट जाता है ... यही सच है ज़िंदगी का ...

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  14. मन को जितना भी समझाएं...जितना जी कड़ा करें.....
    दिल सच मानना नहीं चाहता....
    माला कभी न टूटे यही चाहता है....

    सादर
    अनु

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  15. समादर और स्नेह का दो -तरफ़ा प्रवाह बड़ा विरल है ,बिरलों को ही नसीब है .सुन मेरे भाई -

    टूट गई है माला मोती बिखर गए ,

    कल तक थे जो साथ जाने किधर गए .

    यही दस्तूर है चलन ज़माने की रवायत है .

    पर तू वफा कर बे -वफाओं के साथ ,

    सुन अपनी आदत न बिगाड़ ,

    न गिला कर ,न शिकवा ,

    ये सब अपनों से किया जाता है ,

    टूटी हुई माला के मनकों से नहीं .

    राम राम जप ! .

    राम राम भाई .शुक्रिया कर भाई ! आम का ,ख़ास का, सारी कायनात का , इजलास का .आम औ ख़ास का .

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  16. साचा का आभास कराती शानदार रचना |

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  17. कौन रूकेगा, क्यों रूकेगा? यह दार्शनिक प्रश्न आपने उपस्थित किया है और माला भले ही बिखर गई लेकिन सुंदर भाव संयोजन से कविता माला की तरह गूंथ गई। मुझे इस रचना को पढ़ कर शेखर एक जीवनी में पढ़ी हुई एक लाइन याद आ गई।


    माला के दानों की तरह न जाने यौवन के हाथों से कितने प्रणय बिखर जाते हैं.....

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  18. बिछड़ों को कहाँ, आसानी से मिलता कहीं भी छोर है
    न जाने यह जीवन में ......
    (अति सुंदर )
    पढी कविता आँखों में नोड़ है

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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