अपने ज़माने का .....वो बचपन !!!
आज भी भूले-भुलाये न भूले
वो बचपन
माँ का दुलारा था
वो बचपन
आँखों का तारा था
वो बचपन
नानी की गोदी में गुज़ारा
वो बचपन
शरारतों से भरपूर था
वो बचपन
कितना मासूम था
वो बचपन
कितना निर्दोष था
वो बचपन
अपनों का प्यारा था
वो बचपन
बूढों का सहारा था
वो बचपन
कितना सुहाना था
वो बचपन
सब से न्यारा था
वो बचपन ......
काश! कि लौटा लाऊं
वो बचपन
अपनी यादों का सहारा
वो बचपन
मासूम सी मुस्कानों का
वो बचपन
रोने से पहले की शक्ले बनाना का
वो बचपन
किस्से-कहानियाँ सुनाता
वो बचपन
सब कुछ भुला के याद आये
वो बचपन
मेरे ज़माने का था अपना
वो बचपन
इस लिए इतना सुनहरा था
वो बचपन.....
आज भी भूले-भुलाये न भूले
वो बचपन
माँ का दुलारा था
वो बचपन
आँखों का तारा था
वो बचपन
नानी की गोदी में गुज़ारा
वो बचपन
शरारतों से भरपूर था
वो बचपन
कितना मासूम था
वो बचपन
कितना निर्दोष था
वो बचपन
अपनों का प्यारा था
वो बचपन
बूढों का सहारा था
वो बचपन
कितना सुहाना था
वो बचपन
सब से न्यारा था
वो बचपन ......
काश! कि लौटा लाऊं
वो बचपन
अपनी यादों का सहारा
वो बचपन
मासूम सी मुस्कानों का
वो बचपन
रोने से पहले की शक्ले बनाना का
वो बचपन
किस्से-कहानियाँ सुनाता
वो बचपन
सब कुछ भुला के याद आये
वो बचपन
मेरे ज़माने का था अपना
वो बचपन
इस लिए इतना सुनहरा था
वो बचपन.....
आज का ....आपका ये बचपन !!!
कैसा न्यारा है आज का
ये बचपन
कहाँ से प्यारा है आज का
ये बचपन
कितनी सी देर का बेचारा है आज का
ये बचपन
सिर्फ दो साल का है आज का
ये बचपन
इन्टरनेट का मारा आज का
ये बचपन
रियाल्टी-शो का सहारा आज का
ये बचपन
मोबाइल पर गेम का प्यारा आज का
ये बचपन
फेसबुक पर चैट का मारा आज का
ये बचपन
अंधे सपनों को ढोता आज का
ये बचपन
माँ-बाप की ईगो का सहारा आज का
" वो बचपन
ReplyDeleteकितना मासूम था "
***
सच बचपन तो उस ज़माने का ही सुन्दर था...!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!
सादर!
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ...! सुन्दर प्रस्तुति ...!
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी राम कहानी में.
बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
ReplyDeleteदादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |
नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |
आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||
....
एक दोहे में एक लघु
दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||
*पिता
*सो गया
.
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (10-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 142"शक्ति हो तुम
ReplyDeleteपर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
राजेन्द्र जी.....आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने .... सशक्त प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सशक्त रचना.........
ReplyDeleteसादर
अनु
दोनों पीड़ियों के अंतराल को बाखूबी बचपन के माध्यम से प्रस्तुत किया है आपके अशोक जी ... पर हर किसी को अपना बचपन प्यारा लगता है ...
ReplyDeleteसबको अपना बचपन भाता,
ReplyDeleteमन में सुख निर्मलता लाता।
एक सही कहा आपने ...ये ही सब कुछ हो रहा है आज के वक्त में
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....
ReplyDeleteकल और आज के बचपन का सटीक चित्रण...मार्मिक भावाभिवय्क्ति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी ......आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !
Deleteबहुत ही सारवान विचार.
ReplyDeleteरामराम.
रविकर जी ...आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !
ReplyDeleteकाश सपने में ही बापस आ जाए .. एक बार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआज तो बचपन जैसी बात ही नहीं रही ..... या ये कहें रहने नहीं दी जाती .... माता पिता की अपेक्षाओं पर मिट रहा है बचपन ....
ReplyDeleteसच में आज के बचपन और कल के बचपन में बहुत बड़ा अंतर आ गया है ,बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आपको
ReplyDeleteपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (13) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
waah ji waah.....bachpan ke din bhula na dena.....
ReplyDelete