इन्सान की बेबसी ,कुदरत का कहर
एक तरफ हे जलजला ,एक तरफ सुनामी की लहर
कांप उठी धरती सारी
बिलख उठा तेरा इन्सान,
देख पड़ा कहर कुदरत का
इस नए युग मैं फसा जापान |
जुबां हो गई गूंगी
आँखे पत्थरा गई
धडकने रुक सी गई,
जिन्दगी हो गई बेनामी
ऐसे उठे जलजले,चली जापान मैं सुनामी
देख दुनिया थर्रा गई |
क्या इन्सान का हाल हो गया
मुहँ खोल जब अपना
समंदर भी विकराल हो गया,
शांत, धीर और गम्भीर समंदर
छुपा के रक्खी थी, कितनी पीड अपने अंदर ||
ये क्या अब तुने ठानी है
कहर बरपा रही क्यों जापान में
जो सोनामी है |
इतिहास मैं दर्ज हो गई अब ये कहानी
बरबादी की लिख रही है ,जो ये सोनामी |
ऐ ईश्वर हमारे, ऐ सब के खुदा
तू सुन ले ,हम सब की सदा
बख्श दे अब हम सब के गुनाह
अब इस कहर से हम को बचा
बहुत मिल चुकी अब हम को सजा |
ये तेरी है धरती
ये तेरा आसमां
हम सब तेरे ही बंदे,,
ये सारा तेरा जहां
हम बनाये इन्सान तेरे है
धरती पे रह रहे
हम मेहमान तेरे हैं ||
अशोक"अकेला"
कुदरत के करिश्मे के आगे हर कोई लाचार हो जाता है । कोई बड़ी सत्ता है , जो इसे नियंत्रित करती है। ह्रदय में अत्यंत दुःख के साथ विपदा में फसे लोगों के लिए प्रार्थना कर रही हूँ।
ReplyDeleteकुदरत को यूं नाराज़ करने के लिए भी हम ही जिम्मेदार हैं...... आपकी संवेदनशील विचार लिए रचना बहुत अच्छी है....
ReplyDeleteऐ ईश्वर हमारे, ऐ सब के खुदा
ReplyDeleteतू सुन ले ,हम सब की सदा
बख्श दे अब हम सब के गुनाह
अब इस कहर से हम को बचा
बहुत मिल चुकी अब हम को सजा |
ये तेरी है धरती
ये तेरा आसमां
हम सब तेरे ही बंदे,,
ये सारा तेरा जहां
हम बनाये इन्सान तेरे है
धरती पे रह रहे
हम मेहमान तेरे हैं ||
Bhagwaan bhee ashaay se deekhye hain !