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चित्र गूगल साभार |
माँ का आँचल
माँ के आँचल में छुप के
मैं उसको गुदगुदा रहा था ,
वो सुना रही थी लोरी मुझे
मैं हंसी-हंसी में उसको रुला रहा था||
वो प्यार से मेरा माथा सहला रही थी
अब मुझ को भी नींद आ रही थी
माँ ने गोद से हटा ,पलंग पे लिटाया ||
मैं थोडा सा घूमा
उसने मेरे माथे को चूमा
मैं न अब अपनी होश में था
शायद गया मैं, नीदं की आगोश में था||
मैं नीदं में चलते डगमगाया
थोडा घबराया
चोंक के उठा
चारो और अँधेरा था
लगा ऐसे अभी दूर सवेरा था||
कुछ अजीब सा एहसास हुआ
मैंने अपने माथे को छुआ
वहाँ पसीना था ,ये दिसम्बर का महीना था||
मेरे हाथ भी बड़े-बड़े थे
मेरे माथे पे जो पड़े थे
मैं न रहा अब छोटा बच्चा था
मैं हो गया अब जवां बच्चा था ||
बरसों पहले गई,कल रात
माँ आ गई थी
मेरा माथा चूम ,मुझे
प्यार से सहला गई थी
भले ही ये एक रात का सपना था||
इंतज़ार करूँगा हमेशा फिर इसके आने का
क्यों कि,मेरा सब कुछ इसमें अपना था ||
अशोक"अकेला"
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बहुत भावुक कर देती है आपकी यह प्रस्तुति.
ReplyDeleteऐसा लगता है मुझे कि मैंने आपकी पुरानी पोस्ट में
इसे पढा है और उसपर मैंने अपनी टिपण्णी भी की है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत भावुक है आपकी प्रस्तुति.
ReplyDeletedil ko chhute ehsaas
ReplyDeleteबेहतरीन अहसास ।
ReplyDeleteबाप रे! कितना याद करते हो अब तक माँ को ! एक झुरझुरी सी....ठंडी लहर सी दौड गई मेरे शरीर मे. वीरे! उन्हें इतना याद करते हो ! वो तडपती ना होगी? कैसे चैन मिलता होगा उन्हें? आपने उन्हें खोया....दूर तो वो भी हुई ना अपने बच्चों से? फिर.....दुधमुहे बच्चे मे उसकी जान...आत्मा अटक जाती है ऐसा सुनती आई हूँ.पढते समय लगा.....हाँ वो सचमुच अब तक अटकी हुई है वीरे!
ReplyDeleteबहुत जज्बाती ....बहुत मन को भिगो देने वाली रचना है और हाँ..... आँखों को ....भी.पगला वीर!
बरसों पहले गई,कल रात माँ आ गई थी
ReplyDeleteमेरा माथा चूम ,मुझे प्यार से सहला गई थी
भले ही ये एक रात का सपना था||
इंतज़ार करूँगा हमेशा फिर इसके आने का
क्यों कि,मेरा सब कुछ इसमें अपना था ||
अशोक जी, मां होती ही ऐसी है.....बहुत ही भावासिक्त गीत....
बरसों पहले गई,कल रात माँ आ गई थी
ReplyDeleteमेरा माथा चूम ,मुझे प्यार से सहला गई थी...
भावुक करता ख्वाब... बहुत प्यारी रचना...
सादर...
इसमें सबका अपना है,
ReplyDeleteमिलता जुलता सपना है।
मन के तारों को छू गये आपके भाव।
ReplyDelete------
चलो चलें मधुबन में....
मन की प्यास बुझाओ, पूरी कर दो हर अभिलाषा।
माँ कभी दूर तो जाती ही नहीं है ... हमेशा पास रहती है ... हर उस पल में वो साथ होती है जब जरूरत होती है ... बहुत ही संवेदनशील रचना है ... दिल में उतर जाती है ...
ReplyDeleteगहरे भाव लिए पंक्तियाँ ..... भावुक करती अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबड़ा प्यारा सपना है ...काश एक बार मुझे भी दिख जाए !
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन .....
ReplyDelete:))
बड़ी प्यारी नज़्म .....
लौटा दो माँ, मेरा बचपन
ReplyDeleteआज उमर के इस पड़ाव में, गुमशुम खोया सा बैठा हूँ.
मूल्यवान कुछ खो बैठा हूँ, ऐसा क्यों है, क्यों है ऐसा? क्यों मैं वीराँ सा बैठा हूँ?
आप सभी का मेरे एहसासों में शामिल हो कर उन्हें महसूस करने का आभारी हूँ ....
ReplyDeleteआप सब खुश और स्वस्थ रहें !