सफ़र इक उमर का पल में तमाम कर लूँगा ||
यादें ....जवानी में रोमांस की !!!
आज गीत और संगीत की महफ़िल सजाते हैं
इसी बहाने,आपका और अपना दिल बहलाते हैं ||
आज मैं आप को अपनी पसंद की एक रोमांटिक
गज़ल सुनवाता हूँ .....
नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क का अंजाम
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा ||
ज़हाने -दिल पे हकूमत तुम्हें मुबारक हो
रही शिकस्त तो वो अपने नाम कर लूँगा ||
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम कर लूँगा ..
सफ़र इक उमर का पल में तमाम कर लूँगा ||
जिसे अपने रोमांटिक अंदाज और मीठी आवाज में गाया है
हम सब के लिए रफ़ी साहब ने .....
रोमांटिक शब्द लिखे हैं :राजा मेहदी अली खां साहब ने
संगीत से सजाया : मदन मोहन जी ने ....
पिक्चर : नौनिहाल
वर्ष : १९६७ .
सुंदर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई |।
सादर आभार इस बेहतरीन गज़ल को सुनवाने के लिये...
ReplyDeleteसादर...
इस गीत में शायरी अपनी चरम सीमा पर है ।
ReplyDeleteबहुत प्यारा गाना है ।
आनंददायक ।
बहुत ही अच्छा गीत लगता है।
ReplyDelete1967 में कोयना भूकम्प रिलीफ फण्ड के एक आयोजन में रफी साहब को स्टेज पर गाते हुए उसी मंच पर बैठकर ही इस आनन्ददायक गजल का रसास्वादन किया था । जब भी यह गजल सुनने में आती है वह स्मृतियां सजीव हो जाती हैं आज आपके सौजन्य से यादें फिर उसी कालखण्ड में पहुँच गई । आभार सहित...
ReplyDeleteनज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क का अंजाम
ReplyDeleteनज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा ||...
मेरा फेवरिट गीत....शुक्रिया.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क का अंजाम
ReplyDeleteनज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूँगा ||...
बहुत खूब ..।
दादा !बेहतरीन गीत सुनवाया है शुक्रिया -तुम्हारी जुल्फ के साए में शाम कर लूंगा .
ReplyDeleteमुझे तो पुराना अंदाज़ ही ठीक लगता था !
ReplyDeleteदाढ़ी का जवाब नहीं :-)
शुभकामनायें भाई जी !
य़े गीत कैफी आजमी का लिखा हूआ है
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