आइए! आ जाइए! आ जाइए||
यादें .... आज मैं आप के लिए ...अपनी यादों के खज़ाने से ढुंढ के लाया हूँ !
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल या यूं कह ले कि अपने से भी पुरानी और इस ग़ज़ल
को गाने वाले मेरे से १५ साल पहले पैदा हो चुके थे |
इस ग़ज़ल को गाने वाले मास्टर मदन जो १९२७ में जन्में ,१९३५ में यह ग़ज़ल
उनके मुहँ से निकली और १९४२ में वो छोटी सी उम्र में इंतकाल फरमा गए |
पर इस छोटी सी उम्र में वो हम सब को दे गए अपनी रूह से गाए कुछ नगमें |
जिनमें से सिर्फ आठ के करीब ही रिकार्ड हुए | उनमें से यह दो ग़ज़लें बहुत ही ज्यादा
मकबूल हुई ,जिनमें से एक आज मैं आप की नजर कर रहा हूँ | दूसरी फिर कभी ...
.
तो सुनिए उस कमसिन और रूहानी आवाज में यह ग़ज़ल और खो जाइये उस आवाज में ...
तब .....जब आज की तकनीक नही थी और न ही आज के दौर का संगीत ,जिसमें एक
न अच्छा बोलने वाला भी अच्छे सुर में गा जाता है ...आज की तकनीक के पर्दे में छुप कर |
तब ....था सिर्फ आवाज का जादू जो सर पर चढ़ कर बोलता था और थे खूबसूरत अलफ़ाज़..
....और अलफ़ाज़ो की अदायगी.....
पेश है मेरी पसंद, आप की नज़र ....इस उम्मीद के साथ कि यह आप की पसंद पर
भी खरी उतर कर, आप का भी दिल बहलाएगी ......
आवाज़ : मास्टर मदन
अलफ़ाज़: सागर नीज़ामी
साल :1935
(१९२७-१९४२) |
यूँ न रह रह कर, हमें तरसाइए
आइए, आ जाइए, आ जाइए|
फिर वही दानिस्ता, ठोकर खाइए
फिर मेरी आग़ोश में, गिर जाइए|
मेरी दुनिया, मुन्तज़िर है आपकी
अपनी दुनिया छोड़, कर आ जाइए|
ये हवा, `सागर, ये हल्की चाँदनी
जी में आता है, यहीं मर जाइए||
वाह अशोक जी ... आज तो आपने मेरे बचपन की बहुत सी यादें ताज़ा कर दी ... मेरी माता जी अक्सर मास्टर मदन का नाम लेती हैं आज भी ... शायद इन्होने २ ही गीत गाये थे ... एक तो आज सुन लिया दूसरा भी ऐसे ही सुनाई दे जाए ... बहुत बहुत शुक्रिया ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
जितनी बार सुनो ये ग़ज़ल हमेशा ही मज़ा देती है...कालजयी ग़ज़ल
ReplyDeleteबड़ी प्यारी ग़ज़ल है .....
ReplyDeleteआभार आपका !
bahut hi badhiyaa gazal aur awaaz
ReplyDeleteअर्थपूर्ण गजल।
ReplyDeleteBehtreen Gazal....Abhar sajha karne ka....
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति लाजबाब है
ReplyDeleteकुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 17 दिनों से ब्लॉग से दूर था
ReplyDeleteइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
अशोक भाई आपकी सलाह सर आँखों पर वैसे हमारे वागेश मेहता डॉ नन्द लाल मित्रनुमा गुरु सेहत से जुड़े लेखन को पेसिव राइटिंग ही कहतें हैं .उनका तोता बन ही हम यह एक्टिव रिपोर्टिंग करतें हैं .
ReplyDeleteअशोक भाई इस रूहानी आवाज़ का जादू आज भी सिर चढ़के बोलता है .शुक्रिया .
ReplyDeleteसुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल है! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteइतनी कमउम्र और यह गायकी ! कमाल मुझे पहली बार मालूम हुआ कि यह गजल एक बच्चे ने गई है. क्या जबर्दस्त गई है.मजा आ गया.बहुत पहले सुनी थी यह गजल आज फिर सुना.मजा आ गया.बस इसी तरह नई नई जानकारियां देते रहिये और अपने खजाने की झलक हमे दिखाते जाइए.गीतों गज़लों के बहुत शौक़ीन तो आप हैं ही आपका खजाना भी कम नही!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,यार चाचू.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप आये,बहुत खुशी हुई मुझे.
चश्में वाले फोटो से तो आपका अंदाज अनोखा ही हो गया है.
सभी आने वाले त्योहारों के लिए आपको भी
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
.
ReplyDeleteये हवा, `सागर, ये हल्की चाँदनी
जी में आता है, यहीं मर जाइए||
Deepawali ki agrim badhai ke saath , is behatreen ghazal ko sunwaane ke liye aabhaar.
.
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteसुन रही हूं !!
यादें सम्भाल कर संजोने और प्रस्तुत करने में आपकी श्रेष्ठता प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteदीवाली की शुभकामनायें.
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सिर्फ आठ वर्ष की umr में .....?
ReplyDeleteशायद किसी mahila swar के liye ...aawaaz तो अभी bacche की ही है .....
fir भी gazab का हुनर था unke paas .....
bahut suruli aawaj mein sundar gajal ..
ReplyDeleteDeepawali kee haardik shubhkamnayen!
बहुत अच्छी गजल आपका आभार,दीपावली की सपरिवार शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteअशोक दा आपकी बात मान ली है .दिवाली मुबारक .गृह मंत्री ने अपनी पुलिस को इस काम में लगाया हुआ है पता करो किरण बेदी जब सेवा में आई थीं उनके नाम की वर्तनी (स्पेलिंग्स )क्या थीं ?अब क्या है .अब उनका वजन कितना है तब कितना था .इस तरह वजन बढना राष्ट्रीय संशाधनों का अपव्यय नहीं है क्या ?पहले वर्तनी थी के ई वाई आरओ एन (keyron) अब के आई आर ए एन (kiran ) कैसे हो गई .आतंकियों की सजा माफ़ी का अभियान चला रहें है ,बरेलवी मुसलामानों के संग पींग बढा रहें हैं .
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