जब हद्द से गुज़र जाती है खुशी ,आँसू भी छलकते आते हैं!!!
यादेँ.....१९५३ की ...उम्र सिर्फ ११ वर्ष ,खेलने ,कूदने ,खाने-पीने और पढ़ने के दिन ....
मगर गीत ऐसे पसंद ...क्यों ..पता नही ...शायद तलाश... किसी से अपनेपन की ....
तलाश ज़ारी है ....आज भी .....
आज अपनी पसंद का... ये गीत आप सब को सुनवा भी रहा हूँ और दिखा भी...
तलत साहब की मखमली आवाज़ में बक्शा ये गीत आज भी जख्मी दिलों पर
मरहम का काम करता है जैसा मेरे बालपन में ....दुःख भरी अँधेरी रात के बाद
आने वाली आशाओं से भरी सुबह का सन्देश देता है .....
११ साल की उम्र में भी इस गीत को सुन कर मेरा बालसुलभ मन आशाओं से
भर जाता था ,चेहरा खुशी से खिल उठता था ..दिल में उमंगों का संचार हो
जाता था .....आज भी सुनता हूँ तो सुकून से लबरेज़ हो जाता हूँ ......
ब्लागजगत के तनावभरे आज के माहौल में फिर इस गीत को सुना और आप को भी
सुनाने का दिल चाह तो सुनवा रहा हूँ ......इस उम्मीद ,और इस भावना के
साथ कि ये सब के दिल को सुकून देगा और आने वाले कल का खुशियों भरा
और भाईचारे का सुंदर सन्देश भी ......
पहलू में पराये दर्द बसा के
तू हंसना-हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं...
पहलू में पराये दर्द बसा के
तू हंसना-हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं...
जब गम का अँधेरा घिर आए ,
समझो के सवेरा दूर नही
हर रात का है पैगाम यही
तारे भी यही दौहराते हैं ..... आगे ....
वर्ष :१९५३
फिल्म: पतिता
गीत: शैलेन्द्र
संगीत: शंकर-जयकिशन
गायक : तलत साहब
कलाकार: देव आनंद और उषा किरण
तो आप यहाँ इसे सिर्फ सुन सकते हैं ...
शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर गीत. अशोक जी मज़ा आ गया. पुराने संगीत का आनन्द ही कुछ और है...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गाना..............
ReplyDeleteजब हद से गुजर जाती है खुशी,आँसू भी छलकते आते हैं.....
बहुत शुक्रिया सर.
सादर
अनु
जब गम का अँधेरा घिर आए ,
ReplyDeleteसमझो के सवेरा दूर नही
हर रात का है पैगाम यही
तारे भी यही दौहराते हैं ...
अशोक जी जय श्री राधे ..बहुत सुन्दर ..आनंद दाई ..उस समय के गानों के क्या कहने ..तलत साहब की धुन आवाज अलग ही थी ...
आभार
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें ,हम दर्द के स्वर में गातें हैं .बढ़िया सुकून देती ग़ज़ल .
ReplyDeleteवाह ... मज़ा ही आ गया .. सच में तलत साहब की मखमली आवाज़ का जादू चल गया आज ...
ReplyDeletenice song...
ReplyDeleteयह गीत मुझे भी पसंद है।
ReplyDeleteशुक्रिया, इसे सुनाने के लिए।
इन गीतों का माधुर्य आज भी है... कम उम्र से कोई ख़ास पसंद व्यक्तित्व का ख़ास पहलू है
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत,
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
तलत की आवाज़ सुने अर्सा बीत जाता है । आज फिर से सुनकर मज़ा आ गया । आभार ।
ReplyDeleteसीधे साधे शब्द, गहरे अर्थ।
ReplyDeleteबढ़िया रचना!
ReplyDeleteपृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ!
बेहतरीन गाना है सर जी...........गाना गहरा अर्थ लिए हुए है। आप पसंद बेहद पसंद आई। शेर भी पसंद आया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-858 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
मेरा बहुत ही पसंदीदा गीत सुनवाने का बहुत-बहुत आभार अशोक जी ! आजकल इतने मधुर गीत और कहीं तो सुनने के लिये मिलते ही नहीं हैं ! धन्यवाद आपका !
ReplyDeleteबहुत सुंदर गाना..........धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत आपने सुनवाया .... 1953 मेरे लिए खास है :):) जन्म हुआ था मेरा तब ।
ReplyDelete१९५३ की ये मेरी पसंद ....बहुत स्नेह के साथ
Deleteआपको भेंट एक बड़े भाई की तरफ़ से ....
खुश और स्वस्थ रहें!
bahut sundar v karnpriy geet-sangeet sunvaya hai aapne .aabhar
ReplyDeleteबहुत प्यारा गीत सुनवाया है |
ReplyDeleteआशा
बहुत खूबसूरत गीत ....
ReplyDeleteतलत साहब का गाया ..और देव साहब पर फिल्माया ...
ReplyDeleteफिल्म पतिता का ये सदाबहार गीत आपको पसंद आया ...
आप को सुकून में पाकर ..मुझे भी बहुत सुकून आया ||
शुक्रिया !
खुश रहें!
गहरे भाववाले गीत है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गीत ...