Friday, April 06, 2012

याद आ गया कोई ....

मैं लगा रहा था उनको गले 
वो बना रहें थे ,मुझसे दुरी 
मेरी तो फ़ितरत ही ऐसी है 
होगी कुछ उनकी भी मज़बूरी |
 ----अशोक"अकेला"



-----अकेला 

20 comments:

  1. vaah Ashok ji aapki is rachna ne to aankhe nam kar di dil tak pahuch gai aapki ye panktiyan.

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  2. यादों में ही है घोंसला और बसेरा .... रात के बाद यहीं सुबह भी होती है

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  3. यादें ही तो सहारा बनती हैं अकेले पन का ...
    जब यादें हैं तो अकेलापन कैसा ....!!
    मर्मस्पर्शी रचना ... ...
    शुभकामनायें ...

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  4. वाह.....................

    मैं लगा रहा था उनको गले
    वो बना रहें थे ,मुझसे दुरी
    मेरी तो फ़ितरत ही ऐसी है
    होगी कुछ उनकी भी मज़बूरी |

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ.................
    एक याद किस कदर हसीन शायरी पैदा करती है...........
    लाजवाब..

    सादर
    अनु

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  5. ये यादें भी बड़ी अज़ीब होती हैं इनसे पीछा जितना छुड़ाने की कोशिश करो उतनी ही पीछे पड़ती रहती हैं...पर एक बात है याद अगर मीठी हो तो रस घोल देती है अकेले की बाक़ी ज़िन्दगी में

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  6. वाह क्या बात है! यादें गर हसीन हों तो रस घुल जाता है अकेले की ज़िन्दगी में

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  7. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...


    मेरी तो फ़ितरत ही ऐसी है
    होगी कुछ उनकी भी मज़बूरी |

    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ
    ....... रचना के लिए बधाई स्वीकार....!!!!

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  8. यादें बनी रहे...!
    सादर!

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  9. यादों के जंगल में खोई खोई ज़िन्दगी ,

    रोई थी कल रात बहुत ज़िन्दगी .

    अच्छी रचना .

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  10. प्रस्तुति सहज सरल जुबां और बिंदास अंदाज़ लिए है .

    यादों के जंगल में खोई खोई ज़िन्दगी ,

    रोई थी कल रात बहुत ज़िन्दगी .

    कहती थी -

    मेरी ज़िन्दगी में आते तो कुछ और बात होती .....

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  11. सुख तो अपना प्यार बढ़ाने में मिलता है, वापस मिल जाये तो और भी आनन्द।

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  12. अशोक जी इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  13. यादों का सफर यूँ ही चलता रहेगा...

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  14. बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ....

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  15. बहुत -बहुत सुन्दर बेहतरीन रचना.....

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  16. वाह जी, बहुत उम्दा रचना है..बधाई आपको!

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  17. यादें कितनी सुहानी होती हैं।

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  18. मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने.......
    हार्दिक बधाई।

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  19. हमसे शेअर करे और क्या??
    यादें तो एक कम होती है तो दो नई जमा हो जाती है.यादें अच्छी लगती है. बुरी यादें अनुभव के खजानों में ईजाफा करती है वीरजी!
    दर्द सा झलकता है इस रचना में....

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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