कुछ यादेँ हैं पास मेरे...
उन्ही को मैं याद करता हूँ
साधारण से हैं शब्द मेरे..
उन्ही में मैं बात करता हूँ||
---अकेला
दिल अपना जलाता रहा
उनको मैं बहलाता रहा
जब भी रूठा मुझसे
मैं उसको मनाता रहा
खुश हो जाये वो मुझसे
खुद को मैं रुलाता रहा
हो नो जाये अनहोनी कहीं
सोच उम्र-भर घबराता रहा
सो जाये वो सुकून से
अपने को जगाता रहा
कभी तडपा जो दिल मेरा
प्यार से उसको सहलाता रहा
लाखों बना के बहाने
दिल को बहकाता रहा
उसको आ जाये सुकून
दिल अपना तड़पाता रहा
दूर से दिखा के मंजिल
वो उम्र-भर भटकाता रहा
बढ़ के लगाया गले उसको
वो दूर मुझको हटाता रहा
खुशी में उसकी, मैं तो
वज़ूद अपना मिटाता रहा
फिर भी हुआ वो न मेरा
लाख 'अकेला 'मैं समझाता रहा ||
कहाँ साध पाये जमाने की मुश्किल,
ReplyDeleteहमें आज अपनी भी सुध ही कहाँ है।
बढ़ के लगाया गले उसको
ReplyDeleteवो दूर मुझको हटाता रहा
खुशी में उसकी, मैं तो
वज़ूद अपना मिटाता रहा ... यही हर कदम पे होता रहा
पार्क में मॉर्निंग वॉक में 'अकेला' ही सही है ।
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल ।
दूर से दिखा के मंजिल
ReplyDeleteवो उम्र-भर भटकाता रहा
बढ़ के लगाया गले उसको
वो दूर मुझको हटाता रहा
वाह.....
बहुत बढ़िया सर.
लाजवाब!!!
पार्क में मॉर्निंग वॉक में 'अकेला' ही सही है ।
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल ।
साधु-साधु
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteउसको आ जाये सुकून
ReplyDeleteदिल अपना तड़पाता रहा
.........bahut khoobsoorat gazal...
दूर से दिखा के मंजिल
ReplyDeleteवो उम्र-भर भटकाता रहा
दादा छोटी बहर की फूंकी हुई ग़ज़ल है .
कहता है फूंक फूंक ग़ज़लें /शायर दुनिया का जला हुआ / ,उसके जैसा चेहरा देखा /एक पीला तोता हरा हुआ /आंसू सूखा कहकहा हुआ /पानी सूखा तो हवा हुआ ....................
लाखों बना के बहाने
ReplyDeleteदिल को बहकाता रहा
यादों के shole हर दम दहकाता रहा .कृपया यहाँ भी पधारें -
परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलबhttp://veerubhai1947.blogspot.in/
रविवार, 29 अप्रैल 2012
महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शोध की खिड़की प्रत्यारोपित अंगों का पुनर चक्रण
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/शुक्रिया .
आरोग्य की खिड़की
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क्या बात है ! सरल शब्दों का माझी ही उलझी भंवर को पार करने की सामर्थ्य रखता है ,,,बहुत सुन्दर ,परिष्कृत सृजन का मखमली क्षितिज दर्शनीय है ..
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल...!
ReplyDeleteखुश हो जाये वो मुझसे
ReplyDeleteखुद को मैं रुलाता रहा
हो नो जाये अनहोनी कहीं
सोच उम्र-भर घबराता रहा
सो जाये वो सुकून से
अपने को जगाता रहा
यादों को दिल में समेटे
मैं गजल कहता रहा .... बहुत खूबसूरत गजल
Bahut khoob
ReplyDeleteसो जाये वो सुकून से
ReplyDeleteअपने को जगाता रहा
बहुत खूब
किसी एक पंक्ति को चुनकर यह कह पाना की बहुत अच्छा लिखा है आपने, बहुत मुश्किल है क्यूंकि हर एक पंक्ति ही यहाँ बहुत खूबसूरत है....बहुत खूब...
ReplyDeleteउसको आ जाये सुकून
ReplyDeleteदिल अपना तड़पाता रहा
दूर से दिखा के मंजिल
वो उम्र-भर भटकाता रहा.
सुंदर गज़ल के लिये बधाई..
खुशी में उसकी, मैं तो
ReplyDeleteवज़ूद अपना मिटाता रहा
फिर भी हुआ वो न मेरा
लाख 'अकेला 'मैं समझाता रहा ||
मन को छूती हुई पंक्तियां ... आपका आभार बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ।
कल 02/05/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... '' स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे '' ...
कुछ यादेँ हैं पास मेरे...
ReplyDeleteउन्ही को मैं याद करता हूँ
साधारण से हैं शब्द मेरे..
उन्ही में मैं बात करता हूँ||..शब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...... .
मन की पीड़ा की गहरी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteगहन ...बहुत सुंदर मन के भाव .....
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!!
बहुत खूब .. हर शेर जीवन के ताप से निकला हुवा लग रहा है ...
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