ये गई बीती रात की बात है
भले ही सपने की मुलाक़ात है
मुश्किल से आँख लगी थी मेरी
उसमें भी मुझे याद आ गई तेरी
झट से पास आ गया तू भी मेरे
बोला "वहाँ काटे न कटे ,बिन तेरे"
फिर न लगाई तूने ये कहने में देरी.....
"कैसे कट रही है यहाँ जिन्दगी तेरी"
मैं बोला "बात-बात में मुझे याद आती है तेरी "
तू बोला "फिर क्यों लगाता है आने मे देरी "
मैं बोला "अभी मुझे बहुत काम हैं यहाँ ".....
तू बोला "अरे, चल बहुत आराम है वहाँ....
छोड़, अब तेरा क्या रखा हैं यहाँ...
तेरे लिए इक आशियाना बना रखा हैं वहाँ"
वो कह रहा था "अब यहाँ काहे का ज़ीना"
सुन ! मेरे माथे पे आ रहा था पसीना...
"दोनों मिल के बैठेगें ,कुछ बात करेंगें
अपनी जवानी और बचपन को याद करेंगें"
अब मैं सोच रहा था .......!
कैसे मानूं इस की सलाह को...
कैसे टालूं मैं आई इस बला को...
तभी ...बड़ी ज़ोर से किसी ने दरवाज़े पे घंटी बजाई
मैं चौंक के उठा !!! बाबु जी "दूध वाला" आवाज़ आई ||
वाह! रे मेरे मालिक अच्छी की तुने... जुदाई
शुक्रिया ! जो तुने मेरी जान छुड़ाई...हा हा हा ...
फ़िलहाल ! खुशी-भरा अंत !
न जाने किस के लिए ...???हा हा :-))
आँख खुली तो सपना था ,
ReplyDeleteफिर भी कोई अपना था ,
जान अब्ची और लाखों पाए ,
लौट के बुद्धू घर को आए ,
सपने से अपने घबराए ...
बढ़िया प्रस्तुति अशोक भाई की .
यात्रा का मंचन सदा, किया करे बंगाल ।
ReplyDeleteमौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ- विकाल ।
क्रमश: साँझ- विकाल, मस्त होकर सब झूमें।
देते व्यथा निकाल, दोस्त सब हर्षित घूमें ।
पर्दा गिरता अंत, बिछ्ड़ते पात्र-पात्रा ।
पर चलती निर्बाध, मनोरंजक शुभ यात्रा ।।
रोचक, सच और सपने में अन्तर है..
ReplyDeleteगंभीर बात भी बहुत सहजता से कह दी .... जीवन के प्रति मोह नहीं छूटता
ReplyDeleteVery touching creation with a bitter truth contained in it...
ReplyDeleteसच है..भले ही सपना हो..पर जीवन के प्रति मोह कभी नही छुटता..
ReplyDeleteजीना मरना तो बस उसके हाथ में है जहाँपनाह . बस इस पल का आनंद लेते रहें .
ReplyDeleteदोस्त तू परदेशी, पार्ब्रह्मी,
ReplyDeleteतेरा यकीन मैं करूँ कैसे,
जीवन मोह एक विशाल सिन्धु ,
इस भवसागर को तरू कैसे ?
बहुत सही कहा आपने ,,भाई जी !
Deleteस्वस्थ रहें!
कण कण में है दीखता, मोहक उसका चित्र।
ReplyDeleteकदम कदम सँग में रहे, सदा हमारा मित्र॥
सुन्दर रचना सर...
सादर।
क्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 02-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-928 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसेवन कीजे दूध का , इसको अमृत जान
ReplyDeleteहृष्टपुष्ट तन को रखे, बनें आप बलवान
बनें आप बलवान , दूध देता दीर्घायु
माखन दूध ही खाते थे , कृष्णा-बलदाऊ
बुरे स्वप्न ना आते,खुलता मति का ताला
सुबह नींद ना खुले ,जगा देता है ग्वाला ||
बहुत ही अपनापन लिए लिखा गया हर शब्द
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeleteमोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का ,
ReplyDeleteउसी को देख कर जीते हैं ,जिस काफिर पे दम निकले .शुक्रिया अशोक भाई .आपसे बात करके अच्छा लगा .वह हमारा सुख का टुकडा था एक छोटा सा .
वाह अशोक जी ...
ReplyDeleteसपना और साथ में कोई अपना ...
दोस्ती जीवन है ... सुखमय यादें सुख की छाँव हैं ...
रात गई वो बात गई .सपने अभावों को भर जातें हैं सच से भी मिलवातें हैं ,नींद की करतें हैं हमारी हिफाज़त ,अव चेतन के भरतें हैं घाव ..
ReplyDeleteसपने ,कब थे अपने
क्या बात है!
ReplyDeleteकण कण में है दीखता, मोहक उसका चित्र।
कदम कदम सँग में रहे, सदा हमारा मित्र॥
सुन्दर रचना ....!!!!!
बच गए भाई जी , अभी नहीं जाना वहाँ ..
ReplyDeleteहमें आपकी वर्षों तक जरूरत है !
तुमको हमारी उम्र लग जाए !
भाई जी ,
Deleteस्नेह का कोई मूल्य नही .....आभार तो
बहुत छोटा है ,,,आप जैसे दोस्तों के लिए ?:-)
वाह क्या बात हैं जी ....कुछ यादे कुछ बाते सपनों में भी चली आती हैं ...(ये सच हैं )
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