Thursday, January 24, 2013

क्या "दामिनी" का क़र्ज़ चुकाओगे ...???

अपने साधारण और सिमित शब्द ज्ञान से .....
विन्रम श्रद्धांजलि !!!
क्या "दामिनी" का क़र्ज़ चुकाओगे ...???
 मैं कौन थी ,सपना थी या कामिनी
 नाम रख दिया आपने मेरा दामिनी
 दरिंदों ने किया मेरी अस्मत पे वार
 कर के रख दिया दामन तार-तार

 सदियों से लुटती रही, हूँ मैं बार-बार
 देख कर तुमे ,कर लेती थी मैं एतबार
 क्या अब भी गफ़लत में सोते रहोगे
 नारी लुटती रहेगी और तुम रोते रहोगे

 क्यों करते हो रक्षा का वादा बार-बार
 क्यों मनाते हो रक्षा बंधन  का त्यौहार
 अब तो उठो,जागो, कुछ कर के दिखा दो
 मुझको मिटाने वालों दरिंदों की हस्ती मिटा दो

 माँ के दूध का वास्ता है ,अब तुम को
 अब मेरे बलिदान का ये कर्ज़ चुका दो
 नारी जाति को कलंकित करने वालों को
 अब उन का जड़ से तुम नाश मिटा दो

 क़र्ज़ चुकाओगे न जब तक ,न मैं
 तुम को कभी भी माफ़ कर पाउंगी
 मेरे बगैर नर जाति का वजूद क्या ,
 ग़र जो कभी मैं वापस न आउंगी .......

अशोक सलूजा 'अकेला'

27 comments:

  1. बढ़िया आह्वान करती रचना सलूजा साहब ! मगर अफ़सोस कि इस देश में कुछ कथर हो पाने के आसार न के बराबर है !

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  2. आँखे है नम,दिल में है उम्मीद और आस अब भी बाकि है ||

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  3. बेहद भावभीनी कविता .. गंभीर प्रश्न उठाती .. काश हमें समझ में आये..

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  4. दिलको को झक झोर देने वाली बात कही आपने ,पर उन बेदिलों के पास दिल हों तब न ?-खुबसूरत अभिव्यक्ति
    New post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !

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  5. मन को भिगो गयी हर पंक्ति....
    दिल का दर्द कम होता नहीं...

    सादर
    अनु

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  6. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  7. दिल को झकझोरती खुबसूरत अभिव्यक्ति ,,,,

    recent post: गुलामी का असर,,,

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  8. कलंकित अध्याय, काश इसे न भूलें ...

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  9. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता, जब तक आप जैसे लोग हैं दामिनी के लिए आशा अभी बची हुई है। आभार

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  10. चेतना को जागना ही होगा।
    सार्थक आह्वान।

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  11. बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता,

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  12. शुक्रिया भाई साहब आपकी टिपण्णी का .

    आपकी रचना में हर भाई को ललकारा गया है .मौलिक सवाल भी उठाया गया .औरत से ही कायनात का सब कार्य व्यापार चले है वह न हो तो ?

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  13. सटीक और भावपूर्ण ...

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  14. मार्मिक...मन को छूते भाव

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  15. कर्ज तो चढ़ा है, चुकाना ही होगा..

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  16. बहुत ही भावभीनी मार्मिक प्रस्तुति।

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  17. आपका आवाह्न सही है यदि हम अभी भी ढीले पड़े तो यह सरकार कुछ करने वाली नहीं.

    आप सभी को गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.

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  18. पहचान बनाना आरम्भ किया था ............. तुमने सब खत्म कर दिया

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  19. भावभीनी मार्मिक गंभीर कविता ..

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  20. सही कहा लेकिन दामिन का कर्ज ये भष्ट्र तंत्र लगता नही चुका पायेँगी

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  21. सही कहा लेकिन दामिन का कर्ज ये भष्ट्र तंत्र लगता नही चुका पायेँगी

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  22. क़र्ज़ चुकाओगे न जब तक ,न मैं
    तुम को कभी भी माफ़ कर पाउंगी
    मेरे बगैर नर जाति का वजूद क्या ,
    ग़र जो कभी मैं वापस न आउंगी .......

    उसके गुनहगारों को जब तक सजा नहीं मिलेगी तब तक उसकी आत्मा को चैन नहीं मिलेगा. उसका बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए....

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  23. दामिनी पर बहुत सी कवितायेँ पढ़ी पर इतने दिल से लिखी कोई न मिली .....

    शुक्रिया ....

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  24. सदियों से लुटती रही, हूँ मैं बार-बार
    देख कर तुमे ,कर लेती थी मैं एतबार
    क्या अब भी गफ़लत में सोते रहोगे
    नारी लुटती रहेगी और तुम रोते रहोगे ..

    प्रश्न मौन कर जाता है बार बार ... जवाब देते नहीं बनता ...
    कब तक होगा अपने देश में ये सब ... संवेदनशील रचना ...

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  25. अक्षरश: मन को छूती हुई प्रस्‍तुति ...
    आभार

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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