Thursday, March 28, 2013
Sunday, March 17, 2013
क्या आप अपनी औलाद से प्यार करतें हैं ???
ये कैसा बचकाना और बेहूदा सवाल है .....?
यकीनन ,हर माँ-बाप अपनी औलाद को प्यार करते हैं .....
बस,ये ही जानने के लिए आपको यहाँ खींच कर लाना पड़ा....ऐसा
बचकाना और बेहूदा सवाल करके.....चलिए अब आ ही गये हैं...
तो मेरी बात भी सुन लीजिये ..और मुझे भी कुछ ,समझाइये ,सिखाइए|
मेरे अहसासों को मुझे महसूस कराइए कि मैं कहाँ गलत हूँ और कहाँ ठीक .....
मैं आपसे वायदा करता हूँ कि मैं आप की हर बात मानुगा,अपने आप को
समझाने की पूरी इमानदारी से कोशिश करूँगा ..,....!!!
हर माँ-बाप अपनी औलाद से प्यार करतें हैं
हर औलाद अपने माँ-बाप से प्यार क्यों नही करती .....
ये दो लाइंस मैंने फेसबुक स्टेटस पर पिछले दिनों लिखी थी .....
और फिर जल्द हटा भी लीं थी ???
अब किसी ने कहा ये आप की गलतफ़हमी है ..मैं तो अपने माँ-बाप
से बहुत प्यार करता हूँ अब ये क्या मैं छत पर चड़ कर चिल्ला के सबको बताऊँ ..??
किसी महिला मित्र ने कहा की अगर आप मेरे पति से आज भी मिले तो आपको
उनके श्रवण होने का आभास होगा, वो अपने माँ-बाप से इतना ज्यादा प्यार करते हैं ....
ये दो टिप्पणियाँ पढने के बाद ....मुझे पछतावा हो रहा था ...किसी के दिल को
दुखाने का ...और अपने पे गुस्सा आ रहा था,खिझाहट हो रही थी ...
कि जो इन दो लाइंस में... मैं महसूस कर रहा था ...या जो कहना चाह रहा था
वो मैं दूसरों को महसूस कराने में असमर्थ हुआ था .....और तिलमिला रहा था अपने बेबसी ,
अपनी अनपढ़ता पर .......
मेरा बस इतना ही मतलब था !!!
हर माँ-बाप अपनी औलाद से प्यार करतें हैं
यहाँ हर माँ-बाप के लिए (सब) आ गया ..
हर औलाद अपने माँ-बाप से प्यार क्यों नही करती .....
यहाँ हर औलाद के लिए (कुछ ही क्यों) ...सब क्यों नही .......
बस!मेरा सवाल भी सब से ये ही था ....ये ही है .......
हर कोई क्यों नही करता ?( सिर्फ कुछ ही .... अच्छे क्यों हैं )
ये दो लाइन मेरे दिल से उठी थी ...जब-जब मैं टी. वी. पर किसी
माँ को या किसी बूढ़े बाप को रोते-बिलखते अपनी दुःख भरी कहानी
सुनाते हुए देखता और सुनता हूँ ..जो उसे किसी खास चैनल पर
अपने ही बच्चो के विरोध में बयाँ कर रहे होतें हैं....
या आजकल खबर के रूप में अखबारों में ऐसी कहानिया आये दिन
पढने को मिल जाती हैं ....,,
तो ये सवाल...मेरे मन में उभरता है . आपके मन में भी उभर जाता होगा ?
पर मुझे लगता है की शायद ये सवाल मैं ठीक से पूछ नही पाया ,न ही अपने
अहसास आप तक पंहुचा पाया |अब ये सवाल तो हर औलाद.हर माँ-बाप के सामने
कभी न कभी तो आया ही होगा और आगे भी आता रहेगा .....
हर माँ-बाप की औलाद होती है और हर औलाद भी माँ-बाप बनती हैं ...
हर माँ -बाप को अपनी औलाद प्यारी होती है और हर औलाद को अपनी औलाद
क्यों की वो उनके माँ-बाप होते हैं ....तो हर माँ-बाप का ये सवाल तो अपनी जगह
खड़ा ही रहेगा ...क्यों??
तो फिर ये बीच में थोड़े से अच्छे कहाँ से आ जाते हैं ....समझाइये न ......वो कौन सी
मजबूरियां सामने आ जाती हैं कि कुछ को छोड़ बाकि उससे ऐसा समझोता कर लेते हैं...
जिससे ये दो लाइने पैदा हो जाती हैं ...ये सवाल तो आजकल के माँ-बाप का है और ये
ही सवाल आज की औलाद ..कल के माँ-बाप का भी होगा..
क्या इसका कोई हल नही ..?? कि ये सवाल पैदा ही न हो ..अगर हो भी तो कभी सिर्फ
कुछ के साथ ...न कि सब के साथ ....जैसा आज है ...कुछ अच्छे है...पर... सब अच्छे क्यों नही ..???
मैंने आप से कभी टिप्पणी के लिए नही कहा ....कैसे कहूँ ! न मैं कवि ,न शायर,न लेखक ,
न ही कोई ऐसा गुण जिसके लिए मैं आपसे टिपयाने को कहूँ ....न मैंने कभी ऐसा माना ,
न क्लेम किया ....मैं आज भी वही हूँ ,,जो मैंने अपने बारे में ,अपने ब्लॉग पर दाहिनी तरफ लिखा है ...
पर आज मैं आप से अपने इस लिखे पर आपकी राय ज़रूर मागुंगा की क्या मेरा ये सोचना गलत है
या मेरा सवाल ठीक नही था ..या जो मैंने महसूस किया वो गलत है या मैं आप को महसूस नही करा सका
...मेरा किसी का दिल दुखाने का कोई इरादा न कभी रहा है, न है, न कभी होगा|
फिर भी अनजाने में किसी औलाद का दिल दुखा दिया हो तो मैं उनसे से हाथ जोड़
कर माफ़ी का तलबगार हूँ ....,और चाहूँगा कि हर माँ-बाप को आप जैसी अच्छी,और नेक औलाद प्राप्त हो |
हर माँ-बाप अपनी औलाद से प्यार करतें हैं
हर औलाद अपने माँ-बाप से प्यार "क्यों" नही करती .....
(अगर मेरे ये अहसास कुछ अच्छों तक पहुंचे ....और कुछ अच्छे आकर और मिल गये तो मैं इसे अपना अच्छा कर्म जानूंगा )
कैसी मज़बूरी आ जाती है, जिनको दूर नही किया जा सकता ......
आप अपने विचारों से जरुर अवगत कराएं ...
आपका आभार होगा !
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अशोक 'अकेला' |
Sunday, March 10, 2013
ये ...बदलते रिश्ते !!!
ये ...बदलते रिश्ते !!!
वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
---अकेला
ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं
रोज़ उठता हूँ मैं, एक नन्ही सी उम्मीद लेकर
इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं
यहाँ खुशियाँ तो आती हैं, पल भर के लिए
और आते हैं गम, जो सालों साल चलते हैं
कागज़ी हैं सपने यहाँ और कागज़ी है रिश्ते
पड़ता है,जब धोखे का पानी,ये सब गलते हैं
तरस जाते हैं उम्मीद की, इक रौशनी के लिए
अँधेरा दूर करने को सपनो के चिराग़ जलते हैं
ढल जायेगा इक दिन...ये मेरा जीवन भी..
"अकेला" ज्यों जिंदगी में दिन-रात ढलते हैं .....
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अशोक"अकेला" |
Friday, March 01, 2013
पत्थर का शहर .....न रात न सहर...!!!
दिखावा बन के रह गयी है जिन्दगी
चेहरे पे झुठी हसीं,और नीचे शर्मिंदगी ॥
----अशोक'अकेला
यह शहर है ,पत्थरों का
यहाँ पत्थर दिल बसते हैं
यहाँ अहसास के पुतले रोते हैं
पत्थर के पुतले हँसते हैं
यहाँ चारो तरफ़ दीवार है पत्थर की
एहसास के लिए न बचे रस्ते हैं
यहाँ इमानदारी के चर्चे महंगे हैं
बईमानी के किस्से सस्ते हैं
यहाँ अपनों की कोई फ़िक्र नही
गैरों के लिए हम तरसते हैं
पत्थर की आँख में पानी कैसा
आसमां से आँसू बरसते हैं
अब बड़ों के पैर छूने की रिवायत नही
"अकेला" हल्के से हिला सर...समझ !!! नमस्ते है ....
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अशोक"अकेला" |
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