दिखावा बन के रह गयी है जिन्दगी
चेहरे पे झुठी हसीं,और नीचे शर्मिंदगी ॥
----अशोक'अकेला
यह शहर है ,पत्थरों का
यहाँ पत्थर दिल बसते हैं
यहाँ अहसास के पुतले रोते हैं
पत्थर के पुतले हँसते हैं
यहाँ चारो तरफ़ दीवार है पत्थर की
एहसास के लिए न बचे रस्ते हैं
यहाँ इमानदारी के चर्चे महंगे हैं
बईमानी के किस्से सस्ते हैं
यहाँ अपनों की कोई फ़िक्र नही
गैरों के लिए हम तरसते हैं
पत्थर की आँख में पानी कैसा
आसमां से आँसू बरसते हैं
अब बड़ों के पैर छूने की रिवायत नही
"अकेला" हल्के से हिला सर...समझ !!! नमस्ते है ....
|
---|
अशोक"अकेला" |
बेहतरीन,बेहतरीन बधाई
ReplyDeleteयहाँ अपनों की कोई फ़िक्र नही
ReplyDeleteगैरों के लिए हम तरसते हैं
हो तो यही रहा है....
दिल बिहीन शहर की सुन्दर चित्रण -बहुत सुन्दर
ReplyDeletelatest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार आपका ||
bahut sundar prastuti ..
ReplyDeletemeri nai rachna par bhi pratikriya de
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_26.html
--saabhar
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
यहाँ अपनों की कोई फ़िक्र नही
ReplyDeleteगैरों के लिए हम तरसते हैं,,,,लाजबाब,,,
आजकी यही सच्चाई यही है,,,
RECENT POST: पिता.
अब बड़ों के पैर छूने की रिवायत नही
ReplyDelete"अकेला" हल्के से हिला सर...समझ !!! नमस्ते है ....
बहुत सही कहा आपने ...
सादर
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सही कहा।
ReplyDeleteये जीवन के नए रस्ते हैं।
साधू साधू | बेहद सुन्दर और भावपूर्ण शब्दों से सजी रचना | बधाई
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आज की ब्लॉग बुलेटिन ये कि मैं झूठ बोल्यां मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति श्री मान जी ...
ReplyDeleteआजकल के सच का आईना दिखती हुई रचना !
ReplyDeleteदुख होता है, हमारी सोच, सभ्यता पता नहीं कहाँ जा रही है.... :(
~सादर!!!
बहुत खूब सर .निखार पे है लेखन .
ReplyDeleteपत्थर की आँख में पानी कैसा
आसमां से आँसू बरसते हैं
अब बड़ों के पैर छूने की रिवायत नही
"अकेला" हल्के से हिला सर...समझ !!! नमस्ते है ...
बहुत खूब...यथार्थपरक रचना !
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteयहाँ इमानदारी के चर्चे महंगे हैं
ReplyDeleteबईमानी के किस्से सस्ते हैं
जिंदगी की तहें खोल के रख दी हैं ... पर इस पत्थर के शहर में कोई नहीं सुनने वाला आज ... बहुत लाजवाब ...
जैसा दिगंबर जी ने लिखा, कविता की सबसे सुंदर पंक्तियाँ यही हैं, कई बार इच्छा होती है कि इन्हीं सस्ते किस्सों का हिस्सा बन जाऊँ। शायद यह हो भी जाए क्योंकि पत्थर के शहर में कोई नहीं सुनने वाला आज
ReplyDeleteit's a privilege 2 read u.,.,especially d last 2 lines :)
ReplyDeleteबिल्कुल सच्चाई बयां करती रचना.
ReplyDeleteरामराम.
यहाँ चारो तरफ़ दीवार है पत्थर की
ReplyDeleteएहसास के लिए न बचे रस्ते हैं
...वाह! आज के कटु सत्य को दर्शाती बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
behatreen gazal...
ReplyDeleteअब बड़ों के पैर छूने की रिवायत नही
ReplyDelete"अकेला" हल्के से हिला सर...समझ !!! नमस्ते है ....
अत्यंत संवेदनशील और सामयिक, दिल को छू गयी यह रचना.
यहाँ चारो तरफ दीवार है ...
ReplyDeleteसत्य है भाई जी !