ये ...बदलते रिश्ते !!!
वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
---अकेला
ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं
रोज़ उठता हूँ मैं, एक नन्ही सी उम्मीद लेकर
इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं
यहाँ खुशियाँ तो आती हैं, पल भर के लिए
और आते हैं गम, जो सालों साल चलते हैं
कागज़ी हैं सपने यहाँ और कागज़ी है रिश्ते
पड़ता है,जब धोखे का पानी,ये सब गलते हैं
तरस जाते हैं उम्मीद की, इक रौशनी के लिए
अँधेरा दूर करने को सपनो के चिराग़ जलते हैं
ढल जायेगा इक दिन...ये मेरा जीवन भी..
"अकेला" ज्यों जिंदगी में दिन-रात ढलते हैं .....
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अशोक"अकेला" |
बहुत खूब..जीना इसी का नाम है..
ReplyDeleteजीवन के कटु सत्य पर सुन्दर ग़ज़ल।
ReplyDeleteयही हकीकत है और इसी जिजीविषा से जीवन पनपता है, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बने रहे जीवन से जुड़े भाव......
ReplyDeleteबढ़िया है आदरणीय-
ReplyDeleteशुभकामनायें
हर हर बम बम
बदिया बया किया दुनिया का दस्तूर सलूजा साहब !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात है
ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं
वाह वाह..
ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
ReplyDeleteआज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं ...
जो पल पल बदलते हैं वो रिश्ते तो नहीं होते ... पर दुनिया का दस्तूर आज यही है ...
बहुत खूब ...
रोज उठता हूँ मैं एक नन्ही सी उम्मीद लेकर, आपकी कविताओं की विशेषता है कि ये नन्ही सी उम्मीद की किरण हमेशा मौजूद होती है। रिश्ते चाहे लाख दरक जाएं, इस नन्ही सी किरण को लेकर हमें बढ़ते रहना है। रिश्तों के प्रति आपके गहरे भाव कविता को नये अर्थ दे जाते हैं।
ReplyDeleteबैचन के कुछ अहसास ...बहुत खूब
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई लिए बहुत ही बेहतरीन गजल..
ReplyDelete:-)
बेहद अर्थ पूर्ण ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,सादर आभार आदरणीय.
ReplyDeleteवक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
ReplyDeleteमुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |,,,,सच्चाई लिए बेहतरीन गजल,,,
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अकेला जी आप अपनी कलम से हम सबकी बात कह देते हैं .
ReplyDeleteजो आज है वो कल रहेगा ....कोई नहीं जानता . जीवन क्षण-भंगुर हैं सबने ये माना ...पर फिर भी दौड़े जा रहे हैं जैसे प्रथम आने की दौड़ हो ....झूठे सपनों के महल सजाते समाज पर एक उदास कटाक्ष .......बहुत सुंदर लेखन
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
स्याही के बूटे
वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
ReplyDeleteमुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
...आज के कटु सत्य की बहुत मर्मस्पर्शी और सशक्त प्रस्तुति...अंतस को छू गयी आपकी रचना..
@ इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं
ReplyDeleteयह अरमान आवश्यक हैं भाई जी !
gahan aur arthpoorn ....!!
ReplyDeleteवक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
ReplyDeleteमुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
बहुत ही उम्दा शेर ...:)
आपके लेखन के हम कायल है. यह सुंदर प्रस्तुति भी इसी की अगली कड़ी है.
ReplyDeleteरोज़ उठता हूँ मैं, एक नन्ही सी उम्मीद लेकर
ReplyDeleteइस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं
बहुत खूबसूरत गज़ल