Sunday, March 10, 2013

ये ...बदलते रिश्ते !!!


ये ...बदलते रिश्ते !!!

वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
 मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
 ---अकेला


ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं

रोज़ उठता हूँ मैं, एक नन्ही सी उम्मीद लेकर 
इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं

यहाँ खुशियाँ तो आती हैं, पल भर के लिए 
और आते हैं गम, जो सालों साल चलते हैं

कागज़ी हैं सपने यहाँ और कागज़ी है रिश्ते
पड़ता है,जब धोखे का पानी,ये सब गलते हैं

तरस जाते हैं उम्मीद की, इक रौशनी के लिए
अँधेरा दूर करने को सपनो  के चिराग़ जलते हैं

ढल जायेगा इक दिन...ये मेरा जीवन भी..
"अकेला" ज्यों जिंदगी में दिन-रात ढलते हैं .....



अशोक"अकेला"


22 comments:

  1. बहुत खूब..जीना इसी का नाम है..

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  2. जीवन के कटु सत्य पर सुन्दर ग़ज़ल।

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  3. यही हकीकत है और इसी जिजीविषा से जीवन पनपता है, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. बने रहे जीवन से जुड़े भाव......

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  5. बढ़िया है आदरणीय-
    शुभकामनायें
    हर हर बम बम

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  6. बदिया बया किया दुनिया का दस्तूर सलूजा साहब !

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  7. बहुत सुंदर
    क्या बात है

    ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
    आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं

    वाह वाह..

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  8. ये कोई मौसम नही, जो हर साल बदलते है
    आज के रिश्तें हैं, हर पल हर हाल बदलते हैं ...

    जो पल पल बदलते हैं वो रिश्ते तो नहीं होते ... पर दुनिया का दस्तूर आज यही है ...
    बहुत खूब ...

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  9. रोज उठता हूँ मैं एक नन्ही सी उम्मीद लेकर, आपकी कविताओं की विशेषता है कि ये नन्ही सी उम्मीद की किरण हमेशा मौजूद होती है। रिश्ते चाहे लाख दरक जाएं, इस नन्ही सी किरण को लेकर हमें बढ़ते रहना है। रिश्तों के प्रति आपके गहरे भाव कविता को नये अर्थ दे जाते हैं।

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  10. बैचन के कुछ अहसास ...बहुत खूब

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  11. जीवन की सच्चाई लिए बहुत ही बेहतरीन गजल..
    :-)

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  12. बेहद अर्थ पूर्ण ..

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  13. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,सादर आभार आदरणीय.

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  14. वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
    मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |,,,,सच्चाई लिए बेहतरीन गजल,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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  15. अकेला जी आप अपनी कलम से हम सबकी बात कह देते हैं .

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  16. जो आज है वो कल रहेगा ....कोई नहीं जानता . जीवन क्षण-भंगुर हैं सबने ये माना ...पर फिर भी दौड़े जा रहे हैं जैसे प्रथम आने की दौड़ हो ....झूठे सपनों के महल सजाते समाज पर एक उदास कटाक्ष .......बहुत सुंदर लेखन
    मेरा ब्लॉग आपके स्वागत के इंतज़ार में
    स्याही के बूटे

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  17. वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
    मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |

    ...आज के कटु सत्य की बहुत मर्मस्पर्शी और सशक्त प्रस्तुति...अंतस को छू गयी आपकी रचना..

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  18. @ इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं

    यह अरमान आवश्यक हैं भाई जी !

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  19. वक्त के मारे झटकों से मैं कभी न हारा
    मुझे तो बस अपनो की बेरुखी ने मारा |
    बहुत ही उम्दा शेर ...:)

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  20. आपके लेखन के हम कायल है. यह सुंदर प्रस्तुति भी इसी की अगली कड़ी है.

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  21. रोज़ उठता हूँ मैं, एक नन्ही सी उम्मीद लेकर
    इस दिल में न जाने,कितने अरमान मचलते हैं

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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