क्या ये एक नाम ,जो है "राम" ...
"जय श्री राम"
कोई कहे "राम"
कोई कहे "जय श्री राम"
किसी ने कहा "हे राम"
राहें हैं सब की अलग,
पर मन्जिल एक है|
पुकारते हैं सब भगवान को
पर जुबाने अनेक हैं |
क्या ये एक नाम
जो है "राम"
पर कहने के
तरीके अनेक है
क्या नही इनके
इरादे नेक हैं
कहने को हम,
भारतवासी सब एक हैं |
अलग-अलग जुबां में
पुकारने वाले
क्यों हमने इनमे
भेद कर डाले|
इसी देश में
...हे 'राम'
कहने वाले
बन गये 'राष्ट्रपिता'
हमारे महात्मा गाँधी ...|
फिर क्यों
"जय श्री राम"
कहने वाला
कहलाया 'आंतकवादी' |
|
अशोक'अकेला' |
|
जय श्रीराम
ReplyDeleteराम की माया ,राम ही जाने
ReplyDeleteमतलब यही कि जो जितना जाने.
'जय श्री राम' कहें पर राम की न माने
राम पर दोष मढ़ें और राम ही को दें ताने.
काश! हम भारतवासी सब एक हों,इरादें सभी के नेक हों.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,यार चाचू.
राम का सही सन्दर्भ सोचने पर विवश करता हुआ ....आपका आभार
ReplyDeleteएक राम है, जीवन तारे,
ReplyDeleteचाहे कैसे कोई पुकारे।
बहुत बढ़िया जनाब!
ReplyDeleteराहे अलग-अलग हैं,
ठिकाना तो एक है!
bahut badhiya .........aaj ke rajnitik paridrasya ko dhyan me rakhte hue mai to kahunga --sarthal lekh......
ReplyDeletebadhai
ये भी राम की ही एक माया है ... पर आपका प्रश्न वाजिब है ...
ReplyDeleteलोगों ने राम के नाम को बदनाम कर रखा है ।
ReplyDeleteवरना राम की महिमा तो अपरम्पार है ।
राम राम ।
बात तो सही है,हे राम बोलने वाले राष्ट्र-पिता और जय श्रीराम बोलने वाले आतंकवादी.....किन्तु साम्प्रदायिक जहर फेलाने का हक किसने दिया इन जयश्रीराम बोलने वालों को या अल्लाहो अकबर बुलने वालों को?
ReplyDeleteसब जानते हैं कि मंजिल एक है रास्ते अलग अलग है किन्तु इन रास्तों पर कांटे बिछाने वाले अपनी रोटी सकते हैं धर्म और साम्प्रदायिकता की आग में.सोचिये कितने लोगो को 'नेता' बनने का मौका दिया है इस धर्मने !
आपके प्रश्न एकदम सामयिक है.और इसके साथ उपजा दर्द भी वाजिब .
जय श्री राम
ReplyDeleteराम नाम की लीला अपरम्पार है
यही तो विसंगति है.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...यह भी विडम्बना ही है....
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है!
वाह..बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ..।
ReplyDeleteसेक्युलर खिचड़ी में राम एक रोड़ा है ,
ReplyDeleteजो बाले श्री राम ,वही भगोड़ा है .
अशोक भाई इस देश में कई ऐसे इलाके मौजूद हैं जहां पाकिस्तान पाइंदाबाद कहने की पाकी झंडा फेह्राने की छूट है ,तिरंगें पर पाबंदी है .यहाँ राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस में राम धुन बजाने वाला साम्प्रदायिक हो जाता है इसलिए उस पर पाबंदी है .यह सब उस पैवंद की देन है जो संविधान की काया पर क्षेपक के रूप में चिपकाया था -श्री मति गांधी ने -डेमोक्रेटिक सेक्युलर रिपब्लिक .इस सेक्युलर खिचड़ी के मुलायम और लालू तो महज़ दो चावल हैं .यादव और सेक्युलर पुत्र और भी हैं .एक इन दिनों पूतना प्रदेश में पद-यात्रा पर हैं .
हमारी हिम्मत और गुस्ताखी दोनों देखिए -ब्लॉग का नाम ही रखें हैं "राम राम भाई ",बुरी नजर वाले (सेक्युलर )तेरा मुंह काला सोच रहें हैं ब्लॉग पे ये स्लोगन लगा दें.गनीमत है हम पर अभी तक सांप्रदायिक होने का आरोप नहीं लगा .
bahut hi gudhta hai is rachna me
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब पंक्तिया है, जवाब नहीं आपका
ReplyDeleteआप सब का , मान-सम्मान और स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !
ReplyDeleteखुश रहें,स्वस्थ रहें !
अशोक सलूजा !
बहुत सुन्दर कविता .यथार्थ मूलक .-
ReplyDeleteबेहद अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई .
"खामोश अदालत ज़ारी है ."-डॉ नन्द लाल मेहता वागीश .
(पहली किश्त ). वाणी पर तो बंदिश है ,अब साँसों की बारी है ,
खामोश अदालत ,ज़ारी है .
हाथ में जिसके सत्ता है ,वह लोकतंत्र पर भारी है ,
सभी सयानप गई भाड़ में ,चूहा अब पंसारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .
संधि पत्र है एक हाथ में ,दूजे हाथ कटारी है ,
खौफ में औरत मर्द जवानी ,बच्चों की लाचारी है .
खामोश अदालत ज़ारी है .
(ज़ारी ....)
सहभाव एवं प्रस्तुति :वीरेन्द्र शर्मा (veerubhai1947@gmail.com)
veerubhai1947.blogspot.com
Sir,
ReplyDeleteBahut utkrisht lekh hai.....
very perfect question???
but who gets to answer that.....