फिर से लौट आया .ये सावन का महीना
भूली-बिसरी यादों में,पडेगा फिर अब जीना
कैसा है ,ये सावन का महीना ,
ये आये ,मन को भिगोये,
जाये, तन को भिगोये पसीना||
ये आये ,मन को भिगोये,
जाये, तन को भिगोये पसीना||
"सावन का महीना "
फिर से आ गई याद, वो सावन की फुआर सुहानी
वो शरारते बचपन की, वो मद-मस्त अपनी जवानी|
सदा कोशिश करता रहा, जिनको भूल जाने की
आज पडेगी कहानी वो,याद कर के फिर दोहरानी|
क्या अजब है मेरी ये जिंदगी भी ए दोस्तों
कभी याद ,कभी भुलाने में बिताई जिंदगानी|
क्यों याद आती हैं ,सावन के महीने में , सब यादें पुरानी
इक ठंडक सी दिल में, पड़ता है जब सावन-महीने का पानी|
सोचता हूँ , खो जाऊँ खट्टी-मीठी यादों में आज
कैसे बिताई ,कैसे गुजारी मैंने अपनी जवानी ||
चलिए! आप को सुनाता हूँ :
रफ़ी साहिब की थोड़ी सी पुकार
सावन के महीने में ...
अशोक'अकेला'
सावन की यादे, अगर हो सके, तो एक बार फ़िर दोहरा दो
ReplyDeleteसावन के झुलो ने मुझको बुलाया मै परदेशी वापस आया सावन का महिना होता ही शानदार है खुबसुरत लेख आभारसावन के झुलो ने मुझको बुलाया मै परदेशी वापस आया सावन का महिना होता ही शानदार है खुबसुरत लेख आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर....आभार
ReplyDeleteवाकई यह महीना यादों का महीना है .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
सब खुश्कियाँ घुल जाने का नाम सावन है।
ReplyDeleteसुंदर कविता के साथ प्यारा सा गीत
ReplyDeleteआभार
क्यों याद आती हैं ,सावन के महीने में , सब यादें पुरानी
ReplyDeleteइक ठंडक सी दिल में, पड़ता है जब सावन-महीने का पानी|
यादों में भीगी खूबसूरत रचना....
Shravan month is mine. I feel possessive about it.thanks for the melodious song.
ReplyDeleteहर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteसावन के महीने में ...
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद सुना ये रफ़ी साहब का गीत ... मज़ा आ गया ... वैसे बचपन की जितनी यादें सावन के साथ जुडी होती हैं वो दुसरे मौसम के साथ नहीं ... कविता भी लाजवाब है ...
ये रोज़ रोज़ का किस्सा है ,कल तेरी मेरी बारी है ,
ReplyDeleteखामोश अदालत ज़ारी है .
यही हकीकत है अशोक साहब .मुंबई ब्लास्ट की .
ये आये तो मन को भिगोये और जाए तो तन को पसीना भिगोये .ये गीत उन भीगे भीगे दिनों में हमने भी गया हाई जिसेकहती है किशोरावस्था "हसीना ".शुक्रिया अशोक भाई .रोज़ रोज़ के इस किस्से से मन भी दुखी है मुंबई के .हमें तो लौट के भी वहीँ जाना है नेवी नगर ,कोलाबा ,कुछ दिन दिल्ली में खपाने बिताने के बाद .
ReplyDeleteलगे है सब मन भावन,
ReplyDeleteझूले पड़े डाली चहु और,
क्या गोकुल, क्या वृन्दावन,
हिलोरे मारे मन में यादें,
झूम-झूम जब आया सावन !!
लाजवाब
ReplyDeleteआभार
beautiful poem
ReplyDeleteइसी कश -म -कश में जिए जा रहा हूँ ,किसी याद रख्खूँ किसे भूल जाऊं .कविता और उसके ऊपर रुबाई और फिर रफ़ी साहब का गीत -सावन के महीने में,इक आग सी सीने में लगती है तो पीले लेता हूँ दो चार घड़ी जी लेता हूँ .समा बाँध देते हो हुज़ूर -ए -आला .
ReplyDeleteवाह, भिगो गयी आपकी प्रस्तुति,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com