मेरी यादों के गुलदस्ते से.... एक सदाबहार महकता फूल ...
इन यादों को याद करके ...अपनी भूली यादों का अतीत याद
आता है ...
आज एक बार फिर आप को 'परवरिश' फिल्म से ही एक
मुकेश जी की गाई,और फ़िल्मी परदे पर राज कपूर जी
द्वारा अभिनय से अभिनीत कर सुनवाई गई 'ग़ज़ल ' से
रूबरू करवाता हूँ |
जिसमें राज कपूर साहिब ,अपने ग़मग़ीन अंदाज में ,दर्द
में डूबी इस 'ग़ज़ल ' में अपनी महबूबा से ,अपने को
भूल जाने की नाकाम फ़रियाद कर रहें हैं |
तो सुनियें उनकी दर्द में डूबी फरियाद :
वर्ष : १९५८
फिल्म : परवरिश
पर्दे पर: राज कपूर
सह-कलाकार : माला सिन्हा
सह-कलाकार : माला सिन्हा
गायक: मुकेश जी
संगीतकार: दत्ता राम
गीतकार : हसरत जयपुरी
अभी तक यह गाना भूले नहीं भाई जी :-)
ReplyDeleteमुझे भी याद है !
शुभकामनायें !!
दोनों ही उम्दा पसंद सलूजा साहब , गजल भी और गीत भी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत है.
ReplyDeleteअविस्मरणीय गीत....
ReplyDeletebahut sunder geet laye hain aap.....aabhar!!
ReplyDeleteबहुत सुहाता है यह गीत।
ReplyDeleteकॉलिज के दिनों में कुछ ग़मगीन पलों में हम भी इसे गाते थे । लेकिन अब नहीं ।
ReplyDeleteaaj bhi yah gana bahut sundar lagta hai ..
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग में भी पधारें |
www.pradip13m.blogspot.com
मुकेश के तो हम जबरदस्त फैन हैं.दी बेस्ट आफ मुकेश के एल. पी .रिकार्ड के बी साइड में इस गीत को न जाने कितनी बार सुना है.आज मेरे मित्र श्री हुकुम चंद शर्मा ,जो बेहतरीन गायक हैं,महासमुंद से जबलपुर आये थे तो मुकेश के गीतों को गुन गुनाते हुये पूरा दिन बीता.नैन द्वार से मन में वो आके मन की प्यास बुझाये,मतवाली नार ठुमक ठुमक चली जाये,तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
ReplyDeleteआपके इस ब्लाग में परवरिश के अलावा हिया जरत रहत दिन रैन भी उन्हें सुनाया/दिखाया.हमने इन गीतों को भी गुनगुनाया-थाणे काजलियो बनालूँ,याद आई आधी रात को कल रात की तौबा,बात है एक बूँद की दिल के प्याले में ,सता ले ऐ जहां,न खोलेंगे जुबां,तुम सितम और करो,टूटा नहीं दिल ये अभी,वो तेरे प्यार का गम,इक बहाना था सनम
ReplyDeleteआदि-आदि.
बे -इन्तहा गाया है यह गीत लड़कपन में ,किशोरावस्था के वायुवीय प्रेम में -वायदे भुलादें ,कसम तोड़ दें वो ,हालत पे अपनी हमें छोड़ दें वो ,ऐसे जहां से क्यों हम दिल लगाएं .कोई उनसे कह दे ....पर भूला कुछ भी नहीं प्रथम प्रेम हिमोग्लोबिन बन गया .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
दामन में लिए बैठाया हूँ टूटे हुए तारे ,
ReplyDeleteकब तक मैं जियूँगा यूं ही खाबों के सहारे ,
संभला हूँ मैं गिर गिरके मुझे फिर न गिराओ ,
हिंदी -अंग्रेजी में क्या रखा है मकसद तो प्यार है हौसला अफजाई है .शुक्रिया भाई साहब .
बरसों बाद ये गलज सुनी.कमेन्ट लिखा क्या अपने जज्बात उड़ेल दिए थे और मरा कमेन्ट गायब हो गया.हा हा हा .कोई बात नही.फिर से लिखती हूँ.
ReplyDeleteइस गज़ल को स्कूल के स्टेज पर बहुत गाती थी मैं आँखे बंद करके.
और कहीं आवाज नही कांपती थी मेरी.बचपन की वो इंदु आ कर खड़ी हो गई सामने.जो बहुत जिंदादिल,शरारती और अपने टीचर्स की लाडली थी.
हर शनिवार को बाल सभा में जरूर गाती थी.खास कर मुकेश जी के गाने.'
यह गज़ल मेरी दिल के बहुत करीब रही है.मुकेशजी को लोगो ने एकदम भुला दिया है. आपने 'यादे' ताजा कर दी 'यादें' में.
मेरी यादों में, आप सब ने,अपनी भूली हुई यादों को भी पाया,सराह
ReplyDeleteऔर सुकून भी पाया| आप सब के सुकून में से, मुझे मेरे हिस्से का
प्यार,सुकून और खुशी मिली ....!
आप सब का आभार !
खुश और स्वस्थ रहें |
गाना सुना । धन्यवाद ।"" हालत पे अपनी हमे छोड दें वो।"" छोड ही दिया है सर जी
ReplyDeleteओये होए .......
ReplyDeleteमजा आ गया सुन .....
पापा इस गीत को खूब गाया करते थे ....
शुक्रिया .......!!
दराल जी ओये होए आप भी ......????
कौन थी वो ....:)))