नानी याद आने लगेगी !!!
ये टिप्पणी थी ...मेरी पिछली पोस्ट पर,
मेरे शुभचिंतक और चाहने वाले, डॉ. टी.एस. दराल साहब की ...
जो बड़े हल्के-फुल्के अंदाज़ में की गई थी और मैंने भी इसे
उसी अंदाज़ में लिया....पर एक मन चाह विषय मिल गया |
आभार डॉ. साहब का .... दिल ने कहा कि मैं इसपे अपनी
भावनाओं को व्यक्त कर सकता हूँ या कोशिश कर सकता हूँ |
तो ये उसी का नतीजा है जो ये पोस्ट में लिखने की
हिम्मत कर रहा हूँ |
क्या माँ को याद करने की कोई उम्र होती है ...?ये मुझे नही पता...मैं
आप से पूछ रहा हूँ ? मैंने तो अपनी माँ को कभी देखा ही नही,
न सजीव ,न किसी फोटो में ,फोटो थी नही और जब वो मुझ से रूठ
के भगवान के पास गई ,मुझे होश नही ,मैं तक़रीबन तब एक साल
और कुछ महीने का रहा हूँगा ऐसा मुझे बताया गया |
मुझको मेरी नानी जी ने पाला-पोसा ,बड़ा किया ,पढाया ,लिखाया
ज्यादा नही पढ़ सका ,ये मेरी कमजोरी थी...न कि किसी और की..
चाहे कमजोरी की वजह कुछ भी रही हो ....बिन माँ के बच्चे में कुछ
अनचाही कमियां तो आ ही जाती हैं न ?
तो नानी ने ...इतना प्यार दिया कि माँ की कभी याद ही नही आने दी ....
क्योकि मैं "अकेला" था ,अकेला हूँ ...!!!
जब तक वो मेरे साथ इस जहां में रही ..मैं इन यादों से दूर ही रहा ...
(अपनी नानी जी के साथ मैं ) नानी जी का स्वर्गवास २७ फ़रवरी १९८९ को ....... माँ की माँ को देखा है वो मेरे लिये सब सहती थी उसकी एक आखँ मे मैं, दूसरी में मेरी माँ जो रहती थी॥ |
अब ये भी उनका कसूर हो गया क्या ...? बचपन खेलते -कूदते गुज़र गया ,
जवानी रोज़ी-रोटी,बच्चों के पालन-पोषण और कुछ अठखेलियाँ और मस्ती
में .......!!!
खैर ! बचपन बीता,जवानी बीती और कब बुढ़ापे ने दस्तक दे दी ...पता
ही नही चला ,जब पता चला तो वो अपना कब्जा जमा चूका था |बुढापा जो,
ज्यादातर, तन्हाई में और अकेलेपन में गुज़रता है या गुजरेगा ....!!
तो अब फुर्सत-ही-फुर्सत है मुझे भी और मुझ से दूसरों को भी |
तो अब बुढापा ...तो ऐसे ही कटेगा न ...कुछ अच्छी ,खट्टी-मीठी यादों को
याद करने से जिनको याद करने कि कभी जरूरत ही नही महसूस हुई ....
अक्सर सुनने में आता था ,,तकलीफ में हमेशा माँ ही याद आती है और मुझे
माँ से पहले नानी याद आती है ........
अब एक तो ये बड़ी वजह है ..मुझे अपनी माँ की बहुत याद आती है इस
उम्र में और दूसरी वजह है मेरी नानी जिसने मुझे माँ की याद ही नही आने दी ,
अपनी नानी को याद करने की ...सो इसी बहाने दोनों को अपनी यादों में समेटने
की कोशिश करता रहता हूँ |
तीन बच्चे .दो बेटियां एक बेटा -तीनों अपनी-अपनी गृहस्थी ,सँवारने मैं व्यस्त |
तीनो के बच्चे भी पढ़-लिख रहे हैं -और अपने-अपने सर्कल में समय बिताने को
बेताब | बेटे के अभी छोटे हैं ,वो अभी दादा-दादी से खेलने के लिए या दादा-दादी
उनसे खेलने के लिए अपने समय का सदुपयोग करते हैं ..:-))))))
बुढ़ापे में अच्छी-बुरी यादेँ ही सहारा होती है, समय बिताने के लिए और मेरा
मानना है की दूसरों की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करने की बजाय ,अपनी यादों को
याद कर के खुद को खुश या तंग कर लेना ज्यादा बेहतर है ....सब के लिए ?
अब मैं कोई लेखक तो हूँ नही ,कि कोई कहानी बना के लिख दूँ ,
शायरी कर दूँ, गज़ल, नज्म या कोई कविता की चंद लाइनों में अपनी
बात पुरज़ोर तरीके से लिख सकूं ....इस लिए जैसे-तैसे अपनी कम -समझ
अनुसार जो जैसे महसूस करता हूँ ,वो ही अहसास वैसे ही साधारण भाषा
में लिखने कि कोशिश करता रहता हूँ |
हर इंसान का अतीत उसकी यादों में बसा होता है ....ये ही उम्र होती है ,जब
इंसान अपने वर्तमान से निकल कर अपने अतीत में जाना चाहता है और अपनी
गुज़री अच्छी-बुरी यादों को संजो कर उनमें खो जाना चाहता है | पहले तो उसके
पास समय ही नही होता इन सब बातों के लिए और अब समय ही समय है ..
बाकि सब बातों के सिवाय ..? तो ये यादेँ ही अब बुढ़ापे का सच्चा सरमाया है ....
अच्छा-बुरा सब उसका ..सिर्फ उसका ......अब आप उसे जो चाहे नाम दे लें ,
मेरा समय ऐसे ही कटता है और मुझे ,अच्छा भी लगता है |
कहीं न कहीं ,मेरी हर लिखी ,लाइनों में जिसे आप गज़ल,नज्म.या कविता कहें या
जो भी आप समझे ,मुझे तो समझ है नही ,माँ का जिक्र आता है .आता रहेगा और ऐसा
मैं चाहता हूँ ...मुझे सुकून मिलता है|
ये अहसास मेरे अपने हैं ...और बहुत है ...निजि हैं ,इसमें आप को तकलीफ क्यों दूँ |
कहते हैं ..खुशी दूसरों के साथ बाँटना अपनी खुशियों को दुगना करना होता है ,
ये हमारा फर्ज भी बनता है ,पर अपने दुःख दूसरों के साथ बाँटना अपने दुखों को
कम करना होता है ,पर दूसरे तो ख्वामखा परेशान होते है ,ये तो हमारा हक कभी
नही बनता ...दूसरे की परेशानी का सबब बनने का .....ये मेरी सोच है |
ये हमारा फर्ज भी बनता है ,पर अपने दुःख दूसरों के साथ बाँटना अपने दुखों को
कम करना होता है ,पर दूसरे तो ख्वामखा परेशान होते है ,ये तो हमारा हक कभी
नही बनता ...दूसरे की परेशानी का सबब बनने का .....ये मेरी सोच है |
मैं चाहूँगा कि मैं अपनी सोच के साथ ही रहूँ ,,,और आप से क्षमा मांग ,यहीं
अपनी बात को विराम दे दूँ ......दुःख सुख सब की जिंदगी में है ..हो सके तो
सुख बाँट लो वरना दुःख अपने तक ही सीमित रखो .........!!
अपनी बात को विराम दे दूँ ......दुःख सुख सब की जिंदगी में है ..हो सके तो
सुख बाँट लो वरना दुःख अपने तक ही सीमित रखो .........!!
मेरे पास आप को सिखाने को कुछ नही ,और आप से सीखने को बहुत कुछ .
जो में अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूँ ,करता रहूँगा .....आभार !
जो में अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूँ ,करता रहूँगा .....आभार !
आप सब बहुत खुश और स्वस्थ जीवन जियें ||
शुभकामनाएँ !
अशोक 'अकेला'
अशोक जी , शुक्रिया कि मज़ाक में कही गई बात को आपने मज़ाक में ही लिया । हालाँकि विषय की भावुकता को देखते हुए समझ सकता हूँ कि विषय कितना गंभीर निकला । बेशक मां की कमी को वही समझ सकता है जिसने मां को कभी नहीं देखा । लेकिन नानी ने मां की कमी को पूरा करने का कार्य सफलता पूर्वक किया , यह ख़ुशी और संतुष्टि की बात है ।
ReplyDeleteसही कहा , बुजुर्गी के दौर में यादें ही जीने का सहारा होती हैं ।
आप अपने अनुभव भी बाँट सकते हैं जैसे हमारे दादा जी करते थे और हम बहुत लाभान्वित भी हुए ।
मसलन चित्र में आप बिलकुल फारूख शेख जैसे लग रहे हैं । किसी ने बताया या नहीं ! :)
मैने माँ को नही,
ReplyDeleteमाँ की माँ को देखा है
वो मेरे लिये सब सहती थी
उसकी एक आखँ मे मैं,
दुसरी में मेरी माँ जो रहती थी॥
दिल के अन्दर की छटपटाहट महसूस की जा सकती है सलूजा साहब,शरीर बूढा होता है मन नहीं !
आप सभी को महापर्व शिवरात्रि की मंगलमय कामनाये !
नानी की याद माँ जैसी ही होती है, मैंने दादी को नहीं देखा, उसकी कसर नानी ने ही पूरी की थी...आज आपने उनकी याद दिला दी...
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उसकी एक आखँ मे मैं,
ReplyDeleteदुसरी में मेरी माँ जो रहती थी॥
हृदय का दर्द, मार्मिक पंक्तियाँ...
नम आँखों से उनकी यादों को प्रणाम!
ये यादें ही धरोहर हैं... सीने से लगी रहें और हमें आपके अनुभवों को पढ़ने का सौभाग्य मिलता रहे...!
सुख दुःख सब बांटने के लिए हैं... हर सुख दुःख के साझेधार है इस जहाँ में....
सादर!
मैने माँ को नही,
ReplyDeleteमाँ की माँ को देखा है
वो मेरे लिये सब सहती थी
उसकी एक आखँ मे मैं,
'दुसरी' में मेरी माँ जो रहती थी॥
मैं चाहूँगा कि मैं अपनी सोच के साथ ही रहूँ ,,,और आप से क्षमा मांग ,यहीं
अपनी बात को विराम दे दूँ ......दुःख सुख सब की जिंदगी में है ..हो सके तो
सुख बाँट लो वरना दुःख अपने तक ही 'सिमित' रखो .........!!
दादा 'दूसरी ' कर लें .'उसको नहीं देखा ,हमने मगर ,पर इसकी ज़रुरत क्या होगी ,ए !माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी .'
मैं चाहूँगा कि मैं अपनी सोच के साथ ही रहूँ ,,,और आप से क्षमा मांग ,यहीं
अपनी बात को विराम दे दूँ ......दुःख सुख सब की जिंदगी में है ..हो सके तो
सुख बाँट लो वरना दुःख अपने तक ही 'सिमित' रखो .........!!
कृपया 'सीमित 'कर लें .
आखिर में एक शैर दादा अशोक सलूजा 'अकेला 'की नजर -
फुर्सत मिली तो जाना ,सब काम हैं ,अधूरे
क्या क्या करें जहां में ,दो हाथ आदमी के .
अच्छे कभी बुरे हैं ,हालात आदमी के ,
पीछे पड़े हुए हैं ,दिन रात आदमी के .
बहुत अच्छा संस्मरण है यह व्यतीत का .हमारे कल का हमारे आज का आईना सा भी है
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण है यह व्यतीत का .हमारे कल का हमारे आज का आईना सा भी है
ReplyDeleteकभी शम्मी कपूर तो कभी फारुख शेख ....
ReplyDeleteवाह....वाह......
आपको तो मुंबई लें में होना चाहिए था ....
नीचे की नज्में भी वल्लाह ....खूब लिखने लगे हैं ....
बहरहाल हमने सोचा था आपके यहाँ जरुर कोई शहरयार की कोई ग़ज़ल सुनने को मिलेगी ....
पिछले दिनों उनका निधन जो हो गया ....
यादें तो यादें ही होती है फिर चाहे माँ की हो या दादी की दोनों एक ही दिल से गुजर कर आती हैं.....
ReplyDeleteयादे,माँ की हो या नानी जी की,आज तो सिर्फ यादे बन कर ही रह गई है,...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति,
शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
MY NEW POST ...सम्बोधन...
आपका ये संस्मरण भावुक कर देने वाला है। आपकी यादें पसंद आई सर जी!
ReplyDeleteभावपूर्ण यादें ..... दादी नानी हम सभी को माँ से भी ज्यादा करीब लगती है......
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
आपका संस्मरण सीधे दिल को छु गया ....
ReplyDeleteनानी दादी तो ऐसे पात्र हैं जीवन के जो कभी दूर नहीं जाते कभी भी ...
बहुत अनुपम भाव संयोजन लिए
ReplyDeleteकल 22/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है !
'' तेरी गाथा तेरा नाम ''
बहुत ही भावपूर्ण यादें...किसी भी व्यक्ति विशेष की कमी जीवन में केवल वही इंसान समझ सकता है जिसने उस विशेष व्यक्ति की कमी को महसूस किया हो,फिर चाहे वो माँ हो या और कोई रिश्ता, मानव जीवन में सभी रिश्तों की बरबर जगह है। हाँ मगर माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता। किन्तु आपकी यादों में माँ की जगह नानी ने ली, पता है क्यूँ? ,जवाब आपने खुद ही लिखा है क्यूंकि उनकी एक आँख में आपकी माँ और दूसरी आँख में आपका स्थान जो था।
ReplyDeleteयादों को समेटे हुये बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआपकी यादों में शरीक होकर मन को सुकून मिला...
शुक्रिया
सादर.
यादे हमेशा दिल में बसी रहती है।
ReplyDeleteइन दिनों आपकी पिछली पोस्ट पढ़ रहा हूँ जो दुर्भाग्य से पहले मिस हो गई थीं, आपकी स्मृतियाँ बेहद खूबसूरत है और इनको संजोने का ढंग भी बहुत उम्दा। आपके दोस्त और नानी के साथ आपके चित्र को देखकर हमेशा एक अजीब किस्म की भावुकता मेरे भीतर प्रवेश कर जाती है पता नहीं क्यों?
ReplyDeleteसलूजा जी, आज आप की यह पोस्ट देख कर मैं भी भावुक हो गया...कितने खुलेपन और सादगी से आप अपनी बात कहते हैं, यूं ही बने रहिए।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
दिल से निकली बात सीधे दिल तक पहुँचती है! माँ के बिना किसी बच्चे का जीवन कैसा होता होगा ... हम सोच भी नहीं सकते! मगर आप ख़ुशनसीब थे कि आपको आपकी नानी जी का प्यार-दुलार प्राप्त हुआ!
ReplyDeleteआपकी हर रचना दिल को छू लेती है... बहुत सी बातें हैं, जो आपकी रचना पढ़कर मन में उमड़ने-घुमड़ने लगती हैं... खैर ...
आप स्वस्थ रहें, सुखी रहें और यूँ ही भावपूर्ण पोस्ट लिखते रहें! यही शुभकामनाएँ हैं हमारी!!!
~सादर
अनिता ललित