और ये भी देखते हैं ,कोई देखता न हो||
यादों के खज़ाने से ......आज आप को सुनवाता हूँ !
एक बहुत प्यारी गज़ल ,जो यकीनन ,हर गज़ल के शौकीन और
"जनाब गुलाम अली साहब" की सुरीली आवाज़ के मुरीदों ने जरूर
सुनी होगी |
हंगामा है क्यों बरपा , थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नही डाला ,चोरी तो नही की है ....!!!
ये वो गज़ल है जिसे सुन कर पीने वाले मूड में आ जाते है
और न पीने वालों का... पीने का मूड बन जाता है ......!!!
"जनाब गुलाम अली साहब" की एक खास खासियत ये भी है कि
वो अपनी ही गाई गज़ल को जब-जब भी गाते है ,तब तब उसमे
नए-नए तजुर्बे कर ,एक नए अंदाज़ में उस गज़ल को पेश करते हैं |
इस तरह उनकी गाई हर गज़ल का हर बार अपना एक नया दिलकश
अंदाज़ होता है .जो सुनने वाले को गज़ल की नई ताजगी देता है |
अब आप ही सुन कर बताएं, इस दिलकश गज़ल को जिसमें उनकी
ली हुई ,मुरकियां और ऊँची-नीची तानो की सुरीले अंदाज़ को, और
तबले की सुंदर संगत का सरूर ...बस सुनते ही बनता है ....!!!
क्या आप भी मेरी बात से इत्तिफ़ाक रखते हैं या ......???
न करता शिकायत ,जमाने से कोई
अगर मान जाता ,मनाने से कोई
न मेरी निगाहों से सागर छलकते
जो तौबा न करता ,पिलाने से कोई ||---अज्ञात |
bahut achchi ghazal hai.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत अच्छी गजल है ..
ReplyDeleteये ग़ज़लें सुनकर आनन्द आ जाता है
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteअस्सी के दशक की शुरुवात में इस गज़ल को कैसेट में रिवर्स कर करके सुना करते थे. वाह !!!!!!! आज सुन कर मजा आ गया. आज फिर री- करके सुनेंगे.
ReplyDeleteबहुत पसंद है यह ग़ज़ल..... आभार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति | पंसदीदा गज़ल को संस्मरण करवानी के लिए आभार |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
Wah sir Gulam Ali sahab ko sunkar tarotaja ho gaya .....ghazal smrat Gulam ali sahab ko yun to bachapan se sunane ki adat hai.....unke swron ka utar chadav bahut hi dilkash hota hai. Es undar pravishti ke liye bahut bahut abhar.
ReplyDeleteबेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
ReplyDeleteहंगामा है क्यूँ बरपा...गुअलम अली जी की गाई अमर संगीत रचना है...जब सुनो मज़ा आ जाता है...
ReplyDeleteनीरज
आद अशोक जी ,
ReplyDeleteआदाब ...
बहुत दिनों से आ नहीं पाई आपके ब्लॉग पे ....
कैसे हैं ....?
बहुत जानदार ग़ज़ल है ये ...'' हंगामा है क्यूँ बरपा...''
पर ये लिखी किसने है ....?
लिखने वाले की भी तारीफ होनी चाहिए .....
पिछले दिनों मुझे कपिल कुमार ने अपनी क्षणिकाएं भेजने के लिए फोन किया ...मुझसे पूछते हैं मुझे पहचानती हैं न ...?
.मैंने कहा नहीं ...
वे थोड़े शर्मिंदा हुए ....बोले ''हंसने की चाह ने इतना मुझे रुलाया है ...'गीत मेरा ही लिखा हुआ है
गज़ल आप को पसंद आई ...अच्छा लगा !
Deleteलेखक के बारे में मेरे पास कोई पुख्ता जानकारी नही ...
फिर भी किसी की टिप्पणी के आधार पर ,वो टिप्पणी ज्यों की त्यों :-
Its a beautiful influx of two cultures.... singer is from pakistan, but the gazal is written by an Indian..Syed Akbar Hussain Rizvi popularly known as Akbar Allahabadi .... :-)
jagdishmishraa 3
खुश और स्वस्थ रहें
दादा द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया .चलो दिल्ली में कोई तो हमदर्द है इस बेदिल मतलबी दुनिया में .
ReplyDeleteveerubhaiFeb 7, 2012 09:56 AM
ReplyDeleteयादों के भवंडर जब चलते हैं
तो सदियों पीछे ले जाते हैं|
दादा बवंडर कर लें .
इस ग़ज़ल में एक जादू सा है
ReplyDeleteलाजवाब ..लाजवाब...
ReplyDeleteबहुत खूब...........
आप सब को गज़ल पसंद आई ,आप ने गज़ल का आनंद उठाया ...
ReplyDeleteमेरी पसंद पर आप की भी मोहर लगी .मुझे भी आनंद आया |
आप सब खुश और स्वस्थ रहें !
शुभकामनाएँ!