गैर्रों की समझ में न आयें हम, तो कोइ ग़म नही
अपने न समझें हमें, तो समझो; अब हम नहीं 'अकेला'
चित्र गूगल साभ |
वक्त का तकाज़ा देखो
सुनना मेरा काम रह गया
बोलता था जो सबसे ज्यादा
चुप रहना उसका काम रह गया |
दखते थे वो सब
मेरी ही नज़रों से
देखता मैं अब
बस उनका काम रह गया |
जो पहचाने जाते थे
मेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया |
वक्त क्या चाल चल गया
ख़ासम -ख़ास था में कभी
वक्त ने बदली करवट
अब बस मैं आम रह गया |
वक्त की पगडंडी पे चलते-चलते
आ गया बुढापा मुझ पर
अब दौड़ा न मुझसे जायेगा
अब कहाँ मैं बांका -जवान रह गया |
मस्ती में उड़ता फिरता था
जिन रास्तों पे मैं
अब रास्ता वो सिर्फ
मेरे लिए जाम रह गया |
जिंदगी गवां दी झूठे
रिश्ते नातों में
टूटा जो दिल
तो दिल थाम रह गया |
देख-देख सबको
झूठी हंसी मैं चेहरे पे लाऊं
बस आखिर में यहीं तक
अब मेरा काम रह गया |
कभी लगता था
चारों तरफ़ मेला मेरे
'अकेला' अब मैं
बस सरे-आम रह गया ||
अशोक'अकेला' |
आह...बहुत दर्द भरी प्रस्तुति है.
ReplyDeleteवाह!..बहुत ही शानदार है.
यार चाचू,आप 'अकेले' ही आह और वाह
मुँह से निकलवा देते हैं.
आपके बुढापे के जलवे लाजबाब हैं.
फिर जवानी की दरकार ही क्यूँ.
वक्त का तकाज़ा देखो
ReplyDeleteसुनना मेरा काम रह गया
बोलता था जो सबसे ज्यादा
चुप रहना उसका काम रह गया |
...और इस चुप्पी में अपने ही कहे गए शब्द मुंह चिढाते हैं
वक्त क्या चाल चल गया
ReplyDeleteख़ासम -ख़ास था में कभी
वक्त ने बदली करवट
अब बस मैं आम रह गया |
ओ दूर के मुसाफिर हम को भी साथ ले ले रे ,हम रह गए अकेले .....
ये ज़िन्दगी के मेले ,लेकिन कभी कम न होंगे ,अफ़सोस हम न होंगे ...अपनी इनिंग शान से जी ,अफ़सोस कैसा मलाल कैसा ,आम कैसा और खासुलखास कैसा .
आपकी जानिब से कुछ नया प्रतीक्षित है .
ReplyDeleteतुम्हें (उन्हें )गैरों से कब फुर्सत ,हम अपने गम से कब खाली ,
चलो अब हो चुका मिलना ,न तुम खाली न हम खाली .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना,तुमने
(अरे )कुछ हम से कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
बोलता था जो सबसे ज्यादा
ReplyDeleteचुप रहना उसका काम रह गया |
समय की निर्ममता के आगे हौसले सदा बुलंद रहे!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सादर!
जो पहचाने जाते थे
ReplyDeleteमेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया |
बहूत हि सुंदर ,,
लाजवाब भाव अभिव्यक्ती है...
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteवाह अशोक जी !
ReplyDeleteज़वाब नहीं ग़ज़ल का ।
बहुत सुन्दर ।
जो पहचाने जाते थे
ReplyDeleteमेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया |समय की निर्ममता के आगे हौसले सदा बुलंद रहे!
गैर्रों की समझ में न आयें हम, तो कोइ ग़म नही
ReplyDeleteअपने न समझें हमें, तो समझो; अब हम नहीं 'अकेला'
जो मोहब्बत दे वही अपना .अपने सिर्फ खून से नहीं होते जो अपनापन दे ले वह अपना .मेरे अपने ,रहे सपने ....
बड़ी गूढ़ बात कही है आपने, बड़ी ही सरलता से..
ReplyDeleteदेख-देख सबको
ReplyDeleteझूठी हंसी मैं चेहरे पे लाऊं
बस आखिर में यहीं तक
अब मेरा काम रह गया |
सुन्दर रचना सर....
सादर.
जो पहचाने जाते थे
ReplyDeleteमेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया
सुन्दर रचना,बहुत सुन्दर
अशोक जी,...वक्त का यही तकाजा है,और अपना भी यही हाल है,..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई..
मै आपका समर्थक बन रहाहूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,..
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
अशोक भाई इस रचना के लिए ब्लॉग पर आवाजाही के लिए भी शुक्रिया तहे दिल से .
ReplyDeleteye hi jivan ki hakikt hai
ReplyDeleteजो पहचाने जाते थे
ReplyDeleteमेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया ...
शहीद ये जीवन की रीत है ... परिवर्तन होता रहता है सुखी वही है जो इसे स्वीकार कर लेता है ...
शहीद ये जीवन की रीत है ... परिवर्तन होता रहता है सुखी वही है जो इसे स्वीकार कर लेता है ...
Deleteसच: आज की नस्ल के लिए ...ये सीख आने वाले कल को बहुत काम आने वाली है :-))))
आभार आपका !
जो पहचाने जाते थे
ReplyDeleteमेरे नाम से
वो आ गए आगे
अब सिर्फ मेरा नाम रह गया |
वाह क्या बात कही है..
खूबसूरत...
वक्त का तकाज़ा देखो
ReplyDeleteसुनना मेरा काम रह गया
बोलता था जो सबसे ज्यादा
चुप रहना उसका काम रह गया |
यही रवायत है ज़िन्दगी की. कह दी है आपने मेरी उसकी सबकी बात ,अपनी सब अपनों की बात .शुक्रिया ब्लॉग पर आवाजाही का .मोहब्बत करने का .मोहब्बत करने की आदत नहीं छूटनी चाहिए -
हुजूमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते ,
मैं क्या करू मुझे आदत है मुस्कुराने की .
dil ko chune vali aapki rachna .....umra ke is padav par jokuch insaan delhta hai ,sahta hai use aapne bade hiprabhavi shabdon mein piro diya..
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