गिराई तूने फ़लक से बिजली
नशेमन मैंने अपना खो डाला
अदावत तो हमारी आपस की थी
संग तुने क्यों दूसरों को धो डाला ||
---अकेला
उम्र सारी कट गई
दर्द की छाँव में
न धूप निकली
न जख्म भरे
कांटे पड़े थे राहों में...
जिन्दगी के रेगिस्तान में
चलते-चलते गिरते पड़ते
पड़ गए छाले भी
मेरे पाँव में...
क्यों भटका मैं शहर
के
पथरीले जंगल में
राहें बुलाती रही मुझे
मेरे अपने ही गाँव में...
ढल गयी सांझ जीवन की
दम ले लूँ मैं भी ज़रा सा
जा के पीपल की छाँव में...
वो गांव की कच्ची
पगडण्डी के धूल भरे रास्ते
आँखें बिछाए पड़े है
मेरी राहों में ||
अशोक "अकेला"
|
---|
Wednesday, May 23, 2012
दिल की भटकन का .....क्या करे कोई ....
Friday, May 18, 2012
मुसाफिर चलते-चलते थक गया है ......
सफ़र जाने अभी कितना पड़ा है!!
आजकल पोस्टें इतनी भावुक और भारी-भरकम
पोस्ट हो रहीं हैं कि इनमे एक छोटे से ब्रेक की
जरूरत महसूस हो रही है | इस लिए आप के
वास्ते ये गज़ल ले कर आया हूँ |
जनाब गुलाम अली साहब की ग़ज़लें सुन कर
दिल की चोटें या तो हरी हो जाती हैं या फिर
दिल को एक मीठा सा, दर्द से भरा....सुकून सा
मिलता है | अब ये आप के उपर है ...
आप के हिस्से क्या आता है .......?
आजकल पोस्टें इतनी भावुक और भारी-भरकम
पोस्ट हो रहीं हैं कि इनमे एक छोटे से ब्रेक की
जरूरत महसूस हो रही है | इस लिए आप के
वास्ते ये गज़ल ले कर आया हूँ |
जनाब गुलाम अली साहब की ग़ज़लें सुन कर
दिल की चोटें या तो हरी हो जाती हैं या फिर
दिल को एक मीठा सा, दर्द से भरा....सुकून सा
मिलता है | अब ये आप के उपर है ...
आप के हिस्से क्या आता है .......?
यादोँ में रची-बसी इस मेरी पसंद को .....
ज़नाब गुलाम अली साहब की रूहानी और
दिलकश आवाज़ में ,अंदाज़ में ........
मेरे साथ आप भी ...महसूस कीजिये !!!
थकने का एहसास ........सोने के बाद का ... सन्नाटा ....
हवाओं का शोर ....,दिलों के फासले
जाने का दुःख ......और लंबा सफ़र !!!
मुसाफ़िर चलते -चलते थक गया है
सफ़र जाने अभी कितना पड़ा है.....
मकां के सब मकीं सोये पड़े हैं
हवा का शोर मुझसे कह रहा है
मुसाफ़िर चलते -चलते थक गया है .....
वो मेरे सामने बैठा है लेकिन
दिलों के बीच कितना फ़ासला है
मुसाफ़िर चलते -चलते थक गया है .....
जिसे मिलने तुम आए हो यहाँ पर
वो कब का इस मकां से जा चूका है
मुसाफ़िर चलते -चलते थक गया है
सफ़र जाने अभी कितना पड़ा है.......
![]() |
वो हसीं लम्हें...मेरी यादोँ के ..... |
अशोक सलूजा |
Sunday, May 13, 2012
माँ .....मातृ दिवस ...मुबारक हो !!!
बिन देखी,बिन जानी,भले माँ से मेरी पहचान नही
पर मैं"माँ"से , ममता भरी कहानियों से अन्जान नही ||
![]() |
मेरी माँ (मेरी नानी जी ) |
अपने सरल शब्दों में ....मैं भी वोही
कहना चाहता हूँ ....जो आप अपने
सुंदर भावपूर्ण शब्दों से अपनी कविता
को सजा-सवांर कर श्रदा-पूर्वक अपनी भावनाएं
माँ को अर्पण करना चाहते हैं.....
कृपया मेरी भी उन्ही भावनाओं को मेरे साधारण
और सरल शब्दों में महसूस करें !
आभार!
जिस माँ ने, छोड़ा न तुझे
दुखों और तकलीफों, में एक दिन
उसी माँ के वास्ते, तुझ को मिला
याद करने के लिए, साल में सिर्फ एक दिन
जीवन भर, अपने आँचल में
समेटती रही, तेरे दुखों को
त्यागती रही, सारी उम्र भर
अपने भाग्य के, सारे सुखों को
तू सुख से, सोता रहे रातभर
सुनाती थी,किस्से कहानियाँ और बातें
आँखों में अपनी, काट दी सिर्फ तेरे लिए
जाग-जाग अपनी, उसने कितने ही रातें
औलाद के दुःख-दर्द, बाँटने के वास्ते
माँ हर-दम हर-घड़ी, तैयार है, होती
एहसास करो, ज़रा उनके दुखों का
जिन बदनसीबों की, माँ नही होती
एहसास हैं ,मेरे बहुत
हैं ,बहुत भावनाएं भी
बंद! करता हूँ, यहीं पर
अब याद आएँगी, यातनाएं भी ||
आप सब के सरों पर, माँ के सुख और सुकून
का आँचल! सदा बना रहे !
दिल से दुआ है मेरी ...आप सब को ||
अशोक सलूजा |
Wednesday, May 09, 2012
जो कहूँगा....सच कहूँगा ...
बस!!! ये ही... सच है .....|
लफ्ज़ कम हैं पास मेरे, एहसास बहुत है
एहतराम करता हूँ ,ये मेरे ख़ास बहुत हैं |
इन्ही के इर्द-गिर्द, मैं अपने ख़्वाब बुनता हूँ
अपने छोटे चमन से ,मैं ये फूल चुनता हूँ |
--अकेला...
सच!!! ये दुनियां मैंने देखी है
इसकी ये अजब कहानी है
जो मैंने आज सुनानी है ...
यहाँ कौन किसी का होता है
यहाँ कौन किसी को रोता है
यहाँ सब का सुखों से नाता है
यहाँ दुःख न किसी को भाता है ...
यहाँ सब के अपने सपने है
दुःख में न कोई अपने हैं ...
न यहाँ... कोई बंधू
न कोई है भ्राता ...
यहाँ सब का सब से
सिर्फ सुखों का है नाता ...
तेरे लिए ,मैं ये कर दूँ
तेरे लिए मैं वो कर दूँ
सुनने में अच्छा लगता है
वक्त आने पे,सब चलता है...
आज जीवन लगता उदास है
अपना न कोई आस-पास है
बहुत प्यार करता था मैं उससे
लगता था बस! यही मेरा खास है...
तुम को भी लगेगा ऐसा ही
जो मुझको आज लगता है
इसी को जीवन कहते है
बस ये ऐसे ही ठगता है ....
आज पढोगे तुम मुझको
होंठों पे मुस्कराहट लाके
ज़ोर से झटकोगे सर को
माथे पे पड़ी लट झटका के ...
इक दिन जीवन की
साँझ भी ढलेगी
न लट लटके गी
न लट झटके गी
बस! मुंडी ये तुम्हारी
इधर-उधर भटके गी...
तब न कोई आस होगा
न कोई पास होगा
अब लगेंगे सब बेगाने
न अब कोई खास होगा ...
जो मैंने देखा
जो मैंने सुना
जो मैंने सहा
वो मैंने कहा
अब सोचो तुम
अब देखो तुम ...
तुम किस के बंधू हो
कौन तुम्हारा है भ्राता
किस -किस से तुम्हारा
सुखों-दुखों का है नाता...
चलते-चलते इक बात बताऊं
आप कहें तो मैं समझाऊँ
कलह-क्लेश को दूर भगा दो
जितने चाहो मीत बना लो...
एहसान कभी न जताएंगे
बुढ़ापे में काम आ जायेंगे...
यहाँ सब की अपनी मर्ज़ी है ,
यहाँ सब का अपनाज़ज्बा है
ये भोगा मेरा अपना ही
जीवन का सच्चा तज़ुर्बा है ||
Thursday, May 03, 2012
सिर्फ एक बार .....
मान लो मेरी बात !!!
मैं पिछले कुछ दिनों से आप सबसे कुछ कहने की कोशिश कर रहा था ....और आज वो
कोशिश करने जा रहा हूँ ...आप तो लेखक हैं,कवि हैं ,शायर हैं कहानीकार हैं ,साहित्यकार हैं
और कुछ पत्रकार भी हैं |आप सबको लोग पढ़ना चाहते हैं ,समझना चाहते हैं और आप
से कुछ न कुछ सीखना चाहते हैं |इस लिए आप सब लिखते हैं और लोगो को सुकून
पहुँचाने का एक कारण भी बनते है... जो बहुत सबाब का काम है |
एक मैं हूँ ,या कुछ मेरे जैसे ....जो अपने तजुर्बों को बता तो सकते हैं ,पर
समझा नही सकते ,अज्ञान के कारण... हम अच्छा लिख नही सकते|
अच्छा लिख नही सकते... तो बुरा पढेगा कौन ?जो हम जानते हैं ,जो हम महसूस
करते हैं ,वो एहसास हम आपको लिख कर,महसूस नही करा सकते .....
सिर्फ इस लिए कि आप जैसा .. हम में कोई भी नही, इस तरह दिल की,बात
दिल में रह कर, दिल का बोझ बन... दिल को बीमार कर देती है |
दिल को बहलाने के लिए ...कभी अकेले में रो दीये या उसे समझाने ,कुछ कहने
या बात करने के बहाने ,कुछ भी ऐसा-वैसा ,जैसा-तैसा लिखने का हौंसला कर बैठते हैं |
वो भी सब इसलिए ,,कि आज कमप्यूटर की दुनियां में ये सब सम्भव हो गया है|
वरना इससे पहले तो कई इस दिल के बोझ में दब कर फ़ना हो चुके हैं |
ये खुशकिस्मती है ,मुझ जैसे लोगो की ,जो आप की बसाई ,ब्लॉग की इस आभासी
दुनियां में ,आप जैसे महानुभावों से रूबरू होने का मौका मिल गया | यहाँ आकर
बहुत अच्छा लगा ,दिल को सुकून मिला ,जो चाह वो लिखा ...दिल के बोझ
को हल्का किया और आप लोगो से बहुत कुछ सीखने को मिला |
कुछ नए दोस्त बने ,कुछ हमदर्द मिले और कुछ नए आभासी रिश्ते भी बने |
अपने पास खोने को कुछ था ही नही ,सो मैंने पाया ही पाया और सब अच्छा ही
पाया |इससे अच्छा सौदा क्या हो सकता था ,जो मैंने किया .......
यहाँ सब तरह के लिखने वाले हैं |एक से बढ़ कर एक ,कोई दिल से लिखता है ,
कोई दिल के लिए लिखता है और कोई दिल वालो के लिए लिखता है ...लिखें ,
खूब लिखें ,जी भर के लिखें ...आप को लोग पढ़ेगें ,समझेगे ,सराहेंगे, सुकून पाएंगे
और हम जैसे कुछ नया सीखेंगे |
पर पिछले कुछ दिनों से लग रहा है कि हमारी इस प्यार भरी ब्लॉग की दुनियां को
किसी की नज़र लग गई है !तरह-तरह टिप्पणी के रूप में ..एक दूसरे पर कीचड़
उछाला जा रहा है ...जिसके छींटे सब पर पड़ रहें हैं ...बे -वजह ...ये सब तो हमारी
बाहर की दुनियां में होता है | सारी जिन्दगी हम सब झेलते हैं इसको .....मैं तो सिर्फ
इसी लिए इस उम्र में बाहर की दुनियां से निकल कर आप की प्यार भरी दुनियां में
दाखिल हुआ ....तकलीफ हो रही है ये सब देख सुन और पढ़ कर ...कोई उपदेश नही ,
आप सब पढे-लिखे बुद्धिमान लोग हैं ....सिर्फ उम्र के नाते एक सलाह ....ताली दो
हाथ से बजती है ....आप सब ताली के लिए अपना हाथ आगे मत कीजिये ...बस !
शांत हो जाइए और पहले की तरह सिर्फ ज्ञान और प्यार बांटिये .........
मैं आप सबसे एक प्रार्थना करना चाहता हूँ |कृपया! आप को किसी का लेखन अच्छा
लगा है तो , टिप्पणी करें,उसे प्रोत्साहित करें और... अच्छे के लिए... अच्छा सुझाव दें|
अगर आप को लिखा नही भाया तो टीका-टिप्पणी से बचें ,सयंम बरते ,पढे या न पढे,
बस चुप-चाप वहाँ से निकल लें| आप का टिप्पणी न करना भी आप की नापसंदगी
ज़ाहिर करेगा |और आप... पर-निंदा से भी अपने आप को बचा लेंगे |
यहाँ मैं अपने बारे में ये साफ़ करना चाहूँगा ...कि मैं आप का लेख पढ़ कर कई बार
बिना टिप्पणी वापस इस लिए आ जाता हूँ कि ..मैं उसमे कठिन और गुढ़ शब्दों का
मतलब समझ नही पाता ..बिने समझे टिप्पणी करने से अर्थ का अनर्थ भी निकल जाता है
कृपया मेरी बात को समझे ....आप के शब्दों में (अन्यथा न लें)..........
हाँ ! गर् हो सके तो हमें भी कुछ ऐसा लिखने से बचना चाहिए ,जिससे वो लिखा... आप
पढे-लिखों में बहस का कारण बन जाये,और फिर उत्तर-प्रत्युत्तर का युद्ध छिड़ जाये |
कुछ अच्छे के लिए ,अच्छी बहस का होना भी जरूरी है ,,,ताकि उसमे से कुछ अच्छा
निकल सके | इसके लिए आपसी सहमति का होना ज्यादा जरूरी है ??????
किसी के धर्म के बारे में... तो लिखने से जितना बच सकें बचे .....अपने धर्म के बारे में
हम सब बेहद संवेदनशील हैं ,और होना भी चाहिए ,न इससे... किसी इंसान
के अच्छे-बुरे की तुलना करें |धर्म सब अच्छे हैं ,सब प्यार-भाईचारे का सन्देश देते हैं |
अच्छे-बुरे तो हम इंसान हैं ,जो धर्म की आड़ में एक दूसरे पर कीचड उछाल कर ,हर
धर्म का अपमान और एक-दूजे की भावनाओं को ठेस पहुंचाते है |
हम सिर्फ इंसान हैं ...हर इंसान गलतियों का पुतला है ....हम से गलती भी होगी और
हम अपनी गलतियों का पश्चाताप भी करेंगे और एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश ......|
मेरे इस लेख में भी बहुत गलतियाँ होंगी ....कृपया उसे सुधार कर पढ़ लें .....पर
नीयत मेरी बिल्कुल गलत नही ....किसी के अहम को चोट पहुँचाने का इरादा नही .....|
आप सब मुझे से बहुत समझदार और पढे-लिखे है और मैं मूर्ख,अज्ञानी .........
दो -चार घड़ी मिली हैं ,जीने के लिए
उम्र सारी पड़ी है ,अभी मरने के लिए ......
आप सब बहुत खुश और स्वस्थ रहें |
![]() |
अशोक सलूजा |
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