Monday, February 14, 2011

उस पार ...

                                                                                       
हम झूठ को बेनकाब करना चाहते हैं
हम क्या हैं येह सच्चाई छुपा जाते हैं      | अशोक "अकेला" 
" उस पार "
आप ने नजर उठा कर भी,
देखा नही मेरी तरफ
मेरी मजाल , नजर मेरी
उठ जाती आप की तरफ
इसी कश्मकश में, खड़ा रह गया,
मैं इस पार की तरफ
आप यू ही दूर होते गए,
मुझ से उस पार की तरफ
बहुत घबरा,थोड़ी हिम्मत जुटा
आँख उठाई आप की तरफ
दूर जाते दिखाई दिए मुझे,
आप उस पार की तरफ
सब कुछ लुटा जाता देखता रहा,
मैं अपना उस पार की तरफ
क्यों खड़ा था मैं यहाँ,क्या था
मेरा इस पार की तरफ
मंजिल कभी चल के आती नही ,
इस पार की तरफ
चल मंजिल को चले ,
चल के उस पार की तरफ||       अशोक "अकेला"




12 comments:

  1. मंजिल कभी चल के आती नही '

    वाह! क्या खूब कहा है!

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  2. Who remember so passionately the bygon era

    Great hindi poem on time memory

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  3. बहुत ही अच्छी अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  4. ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

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  5. "हम झूठ को बेनकाब करना चाहते हैं
    हम क्या हैं येह सच्चाई छुपा जाते हैं"

    दो पंक्तियों में सिमटे चंद शब्द बहुत कुछ बयां करते हैं - साधुवाद

    और "उस पार" तो उस पार की तरह है - बधाई

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  6. मंजिल कभी चल के आती नही ,
    इस पार की तरफ
    चल मंजिल को चले ,
    चल के उस पार की तरफ|
    ... bohot hi pyari kavita :)

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  7. बहुत सही कहा है कि मंजिल चल कर नहीं आती....मंजि्ल तक चलना पड़ता है...
    ईश्वर आपको खूब प्यार दे जिसे आप दूर-दूर तक बांट सके
    ये बात इतनी अच्छी लगी कि आपका ब्लॉग फॉलो कर रही हूं...

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    आइये हम सब मिलकर हिंदी का सम्मान बढ़ाएं.

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है इस कविता की इन पंक्तियों में।

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  10. bahut sundar ashok ji
    achhi prastuti hai
    http://deep2087.blogspot.com

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  11. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  12. मैं आप सब का अपने सचे दिल से बहुत बहुत
    धन्यवाद करता हूँ |और आप सब की खुशी,सेहतमंद रेहने की दुआ करता हूँ |
    मैं एक बहुत साधरण सा अनपड़ इन्सान हूँ |
    कुछ भी लिखना नही जानता ,आप सब से
    बहुत कुछ सीखने की कोशिश करूँगा |
    मेरे पास सिर्फ मेरे ऐहसास हैं|
    पुन:धन्यवाद !
    अशोक सलूजा

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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