तरसती हैं! आँखे देखना ,माँ को सपनों मैं
नही मिलता जब कही भी प्यार अपनों मैं|
अब मैं समझा, कि बिन माँ कैसे जी लेते हैं लोग
जैसे मैं जिये जा रहा हूँ |
बिन माँ कौन पीता है उनके आँसू
जैसे मैं पीये जा रहा हूँ |
बिन माँ कौन करता है उनको प्यार
जैसे मैं, तलवार कि धार पे जीये जा रहा हूँ |
बिन माँ कौन पोछता है उनके आंसू
जैसे मैं खुद के हाथों, उनको सोखता जा रहा हूँ |
दर्द मैं नही मिलता कहीं छुपने को आँचल
जैसे माँ के सपनों में, मैं छुपा जा रहा हूँ |
माँ सब कुछ है,माँ भगवान है ,माँ की पूजा करो
जिसे मैं कर नही सका, अब करने को तडपा जा रहा हूँ | अशोक "अकेला"
बहुत मार्मिक जज्बात हैं, मां को कौन भुला पाया है? मां के चले जाने के बाद बिना मां के जीने की आदत डालनी पडती है, भूलना तो संभव ही नही है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
ताऊ जी आप का आशीर्वाद मिल गया |बस सब पा लिया मेने|अब मैं हूँ बिल्कुल अनाड़ी !अभी कुछ देर पेहले आप के ब्लॉग पर आप को राम-राम कर रहा था |तो वो भी समझ न आ रहा था और हो ही नही रहा था |अब देखा तो एक बार की जगह तीन -तीन बार छप गया |
ReplyDeleteवो तो अच्छा है ,राम-राम का जाप है ...वरना
मेरी ...तो..आपने ?ताऊ जी, जी भर खिचाई करना ,अब टांगे तो लम्बी होने से रही ,पर कुछ सीखा जरूर देना|बहुत सारा राम-राम
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