यू उठा तेरी यादो का धूआ
जैसे चिराग बुझा हो अभी अभी॥
कैसे भूल जाऊं तेरी यादो को
जिन्हे याद करने से तु याद आये॥
यूं ही बहला रहे हैं वौ
मैं जान जाता हूं,
न जाने क्यों, फिर भी
मैं उनका कहा मान जाता हूं॥
बहुत बोलने से, इक चुप भली
कुछ देर के लिये, कुछ सजा तो टली||
जुल्म नही तो रहम की कौन फरयाद करें,
रेहमत नही तो खुदा को कौन याद करें ॥
अशोक"अकेला
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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........