हम झूठ को बेनकाब करना चाहते हैं
" उस पार "
आप ने नजर उठा कर भी,
देखा नही मेरी तरफ
मेरी मजाल , नजर मेरी
उठ जाती आप की तरफ
इसी कश्मकश में, खड़ा रह गया,
मैं इस पार की तरफ
आप यू ही दूर होते गए,
मुझ से उस पार की तरफ
बहुत घबरा,थोड़ी हिम्मत जुटा
आँख उठाई आप की तरफ
दूर जाते दिखाई दिए मुझे,
आप उस पार की तरफ
सब कुछ लुटा जाता देखता रहा,
मैं अपना उस पार की तरफ
क्यों खड़ा था मैं यहाँ,क्या था
मेरा इस पार की तरफ
मंजिल कभी चल के आती नही ,
इस पार की तरफ
चल मंजिल को चले ,
चल के उस पार की तरफ|| अशोक "अकेला"
मंजिल कभी चल के आती नही '
ReplyDeleteवाह! क्या खूब कहा है!
Who remember so passionately the bygon era
ReplyDeleteGreat hindi poem on time memory
बहुत ही अच्छी अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDelete"हम झूठ को बेनकाब करना चाहते हैं
ReplyDeleteहम क्या हैं येह सच्चाई छुपा जाते हैं"
दो पंक्तियों में सिमटे चंद शब्द बहुत कुछ बयां करते हैं - साधुवाद
और "उस पार" तो उस पार की तरह है - बधाई
मंजिल कभी चल के आती नही ,
ReplyDeleteइस पार की तरफ
चल मंजिल को चले ,
चल के उस पार की तरफ|
... bohot hi pyari kavita :)
बहुत सही कहा है कि मंजिल चल कर नहीं आती....मंजि्ल तक चलना पड़ता है...
ReplyDeleteईश्वर आपको खूब प्यार दे जिसे आप दूर-दूर तक बांट सके
ये बात इतनी अच्छी लगी कि आपका ब्लॉग फॉलो कर रही हूं...
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ReplyDelete------ हरेक हिंदी ब्लागर इसका सदस्य बन सकता है और भारतीय संविधान के खिलाफ न जाने वाली हर बात लिख सकता है । --------- किसी भी विचारधारा के प्रति प्रश्न कर सकता है बिना उसका और उसके अनुयायियों का मज़ाक़ उड़ाये । ------- मूर्खादि कहकर किसी को अपमानित करने का कोई औचित्य नहीं है । -------- जो कोई करना चाहे केवल विचारधारा की समीक्षा करे कि वह मानव जाति के लिए वर्तमान में कितनी लाभकारी है ? ----- हरेक आदमी अपने मत को सामने ला सकता है ताकि विश्व भर के लोग जान सकें कि वह मत उनके लिए कितना हितकर है ? ------- इसी के साथ यह भी एक स्थापित सत्य है कि विश्व भर में औरत आज भी तरह तरह के जुल्म का शिकार है । अपने अधिकार के लिए वह आवाज़ उठा भी रही है लेकिन उसके अधिकार जो दबाए बैठा है वह पुरुष वर्ग है । औरत मर्द की माँ भी है और बहन और बेटी भी । इस फ़ोरम के सदस्य उनके साथ विशेष शालीनता बरतें , यहाँ पर भी और यहाँ से हटकर भी । औरत का सम्मान करना उसका अधिकार भी है और हमारी परंपरा भी । जैसे आप अपने परिवार में रहते हैं ऐसे ही आप यहाँ रहें और कहें हर वह बात जिसे आप सत्य और कल्याणकारी समझते हैं सबके लिए ।
आइये हम सब मिलकर हिंदी का सम्मान बढ़ाएं.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है इस कविता की इन पंक्तियों में।
ReplyDeletebahut sundar ashok ji
ReplyDeleteachhi prastuti hai
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इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteमैं आप सब का अपने सचे दिल से बहुत बहुत
ReplyDeleteधन्यवाद करता हूँ |और आप सब की खुशी,सेहतमंद रेहने की दुआ करता हूँ |
मैं एक बहुत साधरण सा अनपड़ इन्सान हूँ |
कुछ भी लिखना नही जानता ,आप सब से
बहुत कुछ सीखने की कोशिश करूँगा |
मेरे पास सिर्फ मेरे ऐहसास हैं|
पुन:धन्यवाद !
अशोक सलूजा