..."क्या आप मेरी पसंद की 'ग़ज़ल ' सुनना पसंद करेंगें"..??
जब दिल बहुत कुछ कहने को करें और आप से थोडा सा भी न
कहा जाये | शब्दों की कमी आप को खलने लगे| उस समय अपनी
पसंद की ग़ज़ल या गीत को अपनी जुबाँ बना कर, कहना, सुनना
और सुनाना सबसे बेहतर महसूस होता है|
ऐसा लगता है ,जैसे आप के अपने एहसासों को कोई अपनी दर्द
भरी आवाज से आप को वोही सब महसूस करा रहा है ,जिसे आप कहना
चाह कर भी कह नही पा रहे थे |
...मेरा ,ऐसा मानना है कि ग़ज़ल , देखने से ज्यादा सुनने से संबन्ध रखती है |
उसको सुनने से आप उस के भावोँ को अच्छी तरह महसूस करते हैं |
देखने से ध्यान बंट जाता है ,और शायर का पैगाम आप तक वैसा नही
पहुंचता ,जैसा वो चाहता है | हाँ....शायर या ग़ज़ल गाने वाले के रूबरू बैठ कर
उसको सुनना अलग बात है...और वीडियो की रूकावट भी सुनने में ख़लल
पैदा करती है ...
पैदा करती है ...
...बस इसी लिये मैं आप को वीडियो न दिखाकर,सिर्फ ग़ज़ल सुनवा रहा हूँ |
आप से वादा है ,कि आप मायूस नही होंगे ... हल्के से आँखे बंद करके ,सुकून
से लेट कर ,इस ग़ज़ल को सुनिये ,ये आप के कानों से होकर सीधी आप के
दिल के अन्दर उतर जायेगी ...पेश है ,आप के लिये ...
सुन्दर कर्णप्रिय गजल जो,दिल की आँखों से दिखलाई भी देती है.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार,यार चाचू.
एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह जी वाह...क्या ग़ज़ल सुनवाई है...
ReplyDeleteवाह ... बहुत जानदार गज़ल है ... मज़ा आ गया ..
ReplyDeleteगर दर्द किसी गीत के कुछ शब्दों में होता है तो भी आँखों को नाम कर जाता है,
ReplyDeleteआप की इस पेशकश में तो दर्द की बहार आई, पर इसका मज़ा भी कुछ और ही है........बहुत सुंदर!!
अँधेरी रात में तारों की झिलमिलाहट है ,
ReplyDeleteखुदाई सो गई आंसू बहा रहा है कोई .बचपन में इस ग़ज़ल का मतला पढ़ा करते थे ८-९ वीं कक्षा में.तब शब्दों के माने नहीं पता थे .
शानदार ग़ज़ल....
ReplyDeleteहम सुनकर मुग्ध हो गये।
ReplyDeleteवाह अशोक जी । बहुत सुन्दर ग़ज़ल सुनवाई । आभार ।
ReplyDeleteग़ज़ल सीधे दिल में उतर गई .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल सुनवाई आभार
ReplyDeleteहो सकता है भाई साहब वर्ज्य हो वह ई -मेल ,फ़ीमेल की तरह .एक बार फिर तलाशता हूँ यादें ......
ReplyDeleteफना के बाद भी मुझको सता रहा है कोई ,
जीते जी मुझे क्यों सता रहा है कोई ...
..."क्या आप मेरी पसंद की 'ग़ज़ल ' सुनना पसंद करेंगें"..??
ReplyDeleteji nahi, bilkul nahi, pasand to karenge hi nahi.....
haan, lekin baar baar sunenge aur padhenge....:)
'ऐसा लगता है ,जैसे आप के अपने एहसासों को कोई अपनी दर्द
ReplyDeleteभरी आवाज से आप को वोही सब महसूस करा रहा है ,जिसे आप कहना
चाह कर भी कह नही पा रहे थे |'
हाँ वीर जी !तभी तो हर कोई गीतों ,गज़लों का शौक़ीन होता है.जब गज़ल और श्रोता भाव-भूमि पर एक हो जाते हैं तभी तो उसे हम बार बार सुनते हैं. इन्हें सुन कर रो पडना भी शायद इसी कारन होता है.
मुझे भी वीडियो से ऑडियो सुनना ज्यादा पसंद है.कहीं कोई डिस्टर्बेंस नही.गीत गज़ल सीधे दिल में उतर जाती है.
ये गज़ल सुन रही हूँ.अच्छी लगी.
आप सबने ग़ज़ल सुन कर,उसका भरपूर मज़ा लिया,में अपने मक्सद में कामयाब रहा| इसकी मुझे भी उतनी ही खुशी है जितनी आप को
ReplyDeleteग़ज़ल सुन कर मिली ....
आभार|
इस ग़ज़ल को पेश करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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