Wednesday, July 13, 2011

सावन के महीने में...इक आग सी सीने में ...

फिर से लौट आया .ये सावन का महीना 
भूली-बिसरी यादों में,पडेगा फिर  अब जीना 
कैसा है ,ये सावन का महीना ,
ये आये ,मन को भिगोये,
  जाये, तन को भिगोये पसीना||

"सावन का महीना "
गूगल साभार

फिर से आ गई याद, वो सावन की फुआर  सुहानी 
वो शरारते बचपन की, वो मद-मस्त अपनी जवानी|

सदा कोशिश करता रहा,  जिनको भूल जाने की 
आज पडेगी कहानी वो,याद कर के फिर दोहरानी| 

क्या अजब है मेरी ये जिंदगी भी ए दोस्तों 
कभी याद ,कभी भुलाने में बिताई जिंदगानी|
  
क्यों याद आती हैं ,सावन के महीने में , सब यादें पुरानी 
 इक  ठंडक सी दिल में, पड़ता है जब सावन-महीने का पानी| 

सोचता हूँ , खो जाऊँ खट्टी-मीठी यादों में आज
कैसे बिताई ,कैसे गुजारी मैंने अपनी जवानी || 

चलिए! आप को सुनाता हूँ :
रफ़ी साहिब की थोड़ी सी पुकार 
सावन के महीने में ...

अशोक'अकेला'


17 comments:

  1. सावन की यादे, अगर हो सके, तो एक बार फ़िर दोहरा दो

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  2. सावन के झुलो ने मुझको बुलाया मै परदेशी वापस आया सावन का महिना होता ही शानदार है खुबसुरत लेख आभारसावन के झुलो ने मुझको बुलाया मै परदेशी वापस आया सावन का महिना होता ही शानदार है खुबसुरत लेख आभार

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  3. वाकई यह महीना यादों का महीना है .....
    शुभकामनायें आपको !

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  4. सब खुश्कियाँ घुल जाने का नाम सावन है।

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  5. सुंदर कविता के साथ प्यारा सा गीत
    आभार

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  6. क्यों याद आती हैं ,सावन के महीने में , सब यादें पुरानी
    इक ठंडक सी दिल में, पड़ता है जब सावन-महीने का पानी|

    यादों में भीगी खूबसूरत रचना....

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  7. Shravan month is mine. I feel possessive about it.thanks for the melodious song.

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  8. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  9. सावन के महीने में ...
    बहुत दिनों के बाद सुना ये रफ़ी साहब का गीत ... मज़ा आ गया ... वैसे बचपन की जितनी यादें सावन के साथ जुडी होती हैं वो दुसरे मौसम के साथ नहीं ... कविता भी लाजवाब है ...

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  10. ये रोज़ रोज़ का किस्सा है ,कल तेरी मेरी बारी है ,
    खामोश अदालत ज़ारी है .
    यही हकीकत है अशोक साहब .मुंबई ब्लास्ट की .

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  11. ये आये तो मन को भिगोये और जाए तो तन को पसीना भिगोये .ये गीत उन भीगे भीगे दिनों में हमने भी गया हाई जिसेकहती है किशोरावस्था "हसीना ".शुक्रिया अशोक भाई .रोज़ रोज़ के इस किस्से से मन भी दुखी है मुंबई के .हमें तो लौट के भी वहीँ जाना है नेवी नगर ,कोलाबा ,कुछ दिन दिल्ली में खपाने बिताने के बाद .

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  12. लगे है सब मन भावन,
    झूले पड़े डाली चहु और,
    क्या गोकुल, क्या वृन्दावन,
    हिलोरे मारे मन में यादें,
    झूम-झूम जब आया सावन !!

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  13. इसी कश -म -कश में जिए जा रहा हूँ ,किसी याद रख्खूँ किसे भूल जाऊं .कविता और उसके ऊपर रुबाई और फिर रफ़ी साहब का गीत -सावन के महीने में,इक आग सी सीने में लगती है तो पीले लेता हूँ दो चार घड़ी जी लेता हूँ .समा बाँध देते हो हुज़ूर -ए -आला .

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  14. वाह, भिगो गयी आपकी प्रस्तुति,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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