Monday, June 13, 2011

मेरी यादों के... गुलदस्ते से एक सदाबहार महकता फूल ...


मस्ती भरा है समां...हम तुम हैं दोनों यहाँ ...

आज मैं आपको एक राज़ की बात बताता हूँ ...पर बता दिया 
तो राज़ काहे का ...? पर नही आज मैं बता के ही  रहूँगा कि मैं अनपढ़ 
क्यों रह गया,,?  मेरे पास शब्दों की  कमी क्यों है..? 
अब जो बच्चा... नही; किशोर जब १६ साल कि उम्र में और 
दसवीं क्लास में पढाई के बदले ऐसी-ऐसी तुकबन्दी करेगा 
तो वो दसवीं क्लास से आगे कैसे बड़  सकता है...???

अशोक सलूजा 
सुस्ती भरा हैं समां..ssss
पढ़ने का मूड नही यहाँ..sss
हम तो चले बाहर,
तुम भी आ जाओ, 
जलवे दिखाऊँ वहाँ..sss
सुस्ती भरा है समां ..sss 

इस लिये मेरे साथ तो, ये होना ही था और हुआ |
और शब्दों की कमी भी होनी थी...तो इसमें हैरान या 
परेशान होने की तो कोई बात ही नही रही न... ? 
पर एक बात तो आप सब को माननी ही पड़ेगी कि
मेरे तुकबन्दी के एहसास तो तब भी थे और आज भी 
हैं |
आज मैं आपको १९५८ का वो गीत सुनवाता हूँ जिसकी 
मैंने पैरोडी का सैम्पल उपर दिया है| पैरोडी तो पुरे गाने 
की बनाई थी और सारी क्लास बड़े शौक से सुनाने की
फरमाइश भी करती थी | पर अब ये सब गुज़रे ज़माने 
की बात है...

आज! मुझे पता है ,इस पर व्यंग भी कसे जायेंगें ,टीका-टिप्पणी 
भी होगी ...पर तो क्या ...? झूठ से तो सच्चाई बेहतर है ,कई 
झूठ बोलने से तो बच जाऊंगा |अब बुद्धिजीवियों से खुल कर कुछ 
सीखने को भी मिल जायेगा | जो कहा सच कहा ,सच के 
सिवा कुछ नही |

बात १९५८ ,जून महीने की है ,गर्मियों के छुट्टी में मैं कश्मीर, 
श्रीनगर में था| वहाँ मैने ये फिल्म परवरिश देखी थी |
यानि आज से ठीक ५३ साल पहले ...१६ साल की उम्र में,
और आज मैं ७० वें साल में हूँ | उस उम्र में ऐसा ही होता 
है ,मेरे आभासी रिश्तों के  भाई.बहनों और बच्चों ...थोड़ी मस्ती, 
थोडा प्यार और थोडा रोमांस ...बस फिर जिन्दगी भर दुनियादारी 
और काम ही काम, जो आज तक जारी है ...
तो सुनिये ये सदाबहार मस्ती भरा गीत ...
वर्ष : १९५८ 
फिल्म : परवरिश 
पर्दे पर: राज कपूर ,माला सिन्हा 
गायक/गायका: मन्ना डे और लता जी  
संगीतकार: दत्ता राम 
गीतकार : हसरत जयपुरी

24 comments:

  1. न पढ़ने का मन तो बहुत किया पर उसे शब्द नहीं दे पाये।

    ReplyDelete
  2. प्रणाम
    गीत और आपकी पैरोडी दोनों ही अच्छी लगी

    ReplyDelete
  3. सुन्दर संस्मरण के साथ गीत भी लाजवाब है। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  4. वाह...आपने हमारी भी यादें ताज़ा कर दीं...पुराने गानों का मुझे अभी भी बेहद शौक है और उन्हें सुने बिना मेरी सुबह नहीं होती...हम भी आपकी तरह गानों पर तुकबन्दियाँ किया करते थे...पढ़ लिख तो शायद पूर्व जन्मों में किये पता नहीं कौनसे पुण्यों के कारण गए...वर्ना इस जनम के कामों के कारण तो ये संभव नहीं था.
    बेहतरीन पोस्ट है आपकी.


    नीरज

    ReplyDelete
  5. पुराने गीत और यादें दोनों ही सुकून देने वाले होते हैं, शुक्रिया अपने विचारों से अवगत करने के लिए...

    ReplyDelete
  6. जहाँ तक मुझे याद आता है इस गीत में प्रयुक्त ताल -" दत्ता राम का ठेका " के नाम से बेहद मशहूर हुआ . दत्ता राम के ठेका का प्रयोग कर बाद में बहुत से बनाये गए. आपने किशोरावस्था का स्मरण कर सुन्दर गीत सुनवाया/ दिखाया.आभार.

    ReplyDelete
  7. बहुत बढ़िया गीत साझा किया आपने...... संस्मरण भी अच्छा लगा ....

    ReplyDelete
  8. .

    पढने का शौक हमेशा से था । थोड़ी दीवानगी जैसा। किताबी कीड़ा कहलाती थी ...शायद इसीलिए थोडा अंतर्मुखी बन गयी। पुराने हिंदी गानों के लिए भी दीवानगी है।

    And yes !...You are looking gorgeous in your teens.

    .

    ReplyDelete
  9. गीत और पेरोडी ... दोनो सुन के मज़ा आ गया ... बीती यादों से महकता लेख भी लाजवाब है आपका ...

    ReplyDelete
  10. अनुभव और गीत.....को प्रस्तुत करने के लिये.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।

    ReplyDelete
  11. ह्म्म्म तो कच्ची उम्र में कविताओ के चस्के ने आगे नही पढ़ने नही दिया.कोई बात नही.पेट भरने के लिए जॉब और उसके लिए डिग्रियां होनी जरूरी है.जीवन जीना नही सिखाती ये डिग्रियां.कोलेज से निकलने के बाद मैंने तो खुद को ठगा सा पाया.डिग्रियां थी.जीने की कला व्यवहारिक,सांसारिक ज्ञान नही था उनमे.............
    पेरोडी भी अच्छी है सुनने पर शायद और भी मजा देगी.किसी दिन पकड़ में तो आइये.खूब सुनेंगे.
    यादे....इतनी छोटी...जरा और लिखते न. आपके पास जो याडों के,अनुभवों के खजाने है उन्हें दे दीजिए हम सभी को.हा हा हा
    और ये क्या नै पीढ़ी से दूरी............क्यों भाई? वीरे नै पीढ़ी में ऐसी कई विशेषताए है जो हम में नही थी.मैं तो जबर्दस्त फेन हूँ नै पीढ़ी की यही कारन है मेरी खूब पटती है इनसे.
    समय का बदलाव है वीरा! ये शिकायते हमारे बुजुर्गो को हमसे भी रही होगी न्? ईमानदारी से लिखते हो न् वही सबसे अच्छा लगता है एक निश्छल मन झांकता है आपके आर्टिकल्स से.

    ReplyDelete
  12. sundar yaadon se bhara post..sadar aabhar...

    ReplyDelete
  13. Sundar yadon se bhara post...saadar abhar.....

    ReplyDelete
  14. तुकबन्दी के अहसास खत्म नहीं होते बल्कि और निखर जाते है। पुराने गानों की बहुत पैरौडी बनी उन पर भजन बने आज के गाने की कोई पैरौडी बना कर दिखादे । आपने जो गाना सुनवाया उसका तो कहना ही क्या है।

    ReplyDelete
  15. आप तो हमारे संत -ब्लोगिये हैं सरकार ,संतों को डिग्री की कहाँ दरकार .कबीरा कुछ न बन जाना तजके मान गुमान .

    ReplyDelete
  16. @ प्रवीण जी, दीपक जी ,मनप्रीत जी,
    आप सब का प्यार और इज्ज़त बाँटने के लिये! आभार !

    ReplyDelete
  17. @ निर्मला जी,
    @ नीरज जी,
    @ कविता जी,
    @ निगम जी,
    @ डॉ मोनोका जी,
    @ डॉ.वर्षा जी,
    @ डॉ. दिव्या जी,

    आप सब के स्नेह के लिये दिल से आभार|

    ReplyDelete
  18. @ दिगम्बर नासवा जी,
    @ महेन्द्र श्रीवास्तवा जी,
    @ ब्रज मोहन जी,
    @ तन्मय जी,
    आप सब को गीत सुन सकूं हासिल हुआ ,मैं अपने मकसद में कामयाब हुआ| शुक्रिया |

    ReplyDelete
  19. @ वीरू भाई ,

    आपने प्यार भरी डिग्री से नवाजा ! कबूल है ...शुक्रिया |

    ReplyDelete
  20. @ टीचर दीदी इंदु जी,
    मैं जितना कम बोलूं उतना अच्छा ... शिष्य गल्ती करेगा !टीचर गल्ती सुधारेगा...कम बोलूं ...कम गल्ती ...एक दम चुप :-)
    खुश रहो और स्वस्थ रहो !
    स्नेह !

    ReplyDelete
  21. जो बच्चे बोलते नही उन पर मुझे बहुत गुस्सा आता है.मैं उन्हें बोलने के लिए उकसाती हूँ कि गलत बोलो पर बोलो.जितनी गलतियाँ होनी है हो जाये,सुधर ही तो निखार लाएगा किन्तु कुछ बच्चे......मेरे धैर्य की परीक्षा लेते हैं.हा हा हा ऐसा नही चलेगा.बोलना तो पड़ेगा.'सकूं' या सुकूं(सुकून)?????बोलो....बोलो ..बताओ.
    आपके विचार इतने सुन्दर हैं जो आपके मन को दर्शाते हैं.व्याकरण की अशुद्धियाँ फिर ज्यादा मायने नही रखती किन्तु हम कोशिश करेंगे कि वो भी कम से कम हो.

    ReplyDelete
  22. टीचर दीदी,
    गल्ती सुधार ली गयी है ...
    इस शब्द में आगे गल्ती नही होगी ! शुक्रिया |

    कभी ड ढ ड़ ढ़ में भी कोई आसान फार्मूला दो .जिस से इनमें अन्तर समझ कर प्रयोग कर सकूं | इसमें हमेशा ही दुविधा में रहा ,जो आज तक है |
    आभार और स्नेह !

    ReplyDelete
  23. वाह! यार चाचू जैसा अनुभवी विद्यार्थी और 'टीचर दीदी'.क्या कहने.
    जवानी में पैरोडी और मस्ती,बुढ़ापें में रंग बिखेर रही है.
    आपके गाने ने समां में मस्ती भर दी है

    ReplyDelete

मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...