Thursday, June 23, 2011

उम्मीद...!!! अब, भी बाकी है..??

मैं नही जानता ,गज़ल क्या है,नज्म क्या है ,गीत कैसे
लिखते हैं और कविता कैसे बोली जाती है ...?
जो दिल से निकला वो मैंने लिख दिया ...बस ,और ...?

न मिली बचपन में गोद वो
जिसमें सुख से सो लिये होते,
हँसने  की हसरत तो तब रहती
जो खुल के रो लिये होते ॥
माँ

 ये दुखो से भरी दुनियां ,
 जितनी भी बददुआएं लगाती है
 इक माँ है, जो अपनी दुआओं से
 औलाद को बचाती है || 

 अब सब कहते है, 
बच्चा नही , बुढ़ा हूँ मैं
 रोकते है टोकते है, मुझको 
 अब क्यों बैठा, रूठ के कोने में
 खुल के बोल नही सकता
 खुल के हँस नही सकता
 अब डर भी लगता है, 
 खुल के रोने में | 

 कुछ तो रहें होंगे 
ऐसे कर्म मेरे, 
जो सुख न तेरा मैं 
पा सका,
 काट ली मैंने
 येह जिन्दगी ,
सहारे नाम के तेरे

 तू जहां भी होगी,  मुझे देखती होगी
 मेरे दुःख में दुःख और खुशी में,
 खुशी के आंसू रोती होगी

 इस जिन्दगी में मिले, भले न सही
 उम्मीद अभी,   अब भी बाकी है 
 उम्र का सफर तो कट चुका
 नही जानता ,कब, कहाँ और कैसे
 पर मिलने की आस... 
...अब भी बाकी है |


अशोक'अकेला'


33 comments:

  1. आपने जो लिखा उसे पढ़कर आँखें नम हुईं ......

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  2. भावुक कर गयी आपकी रचना।

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  3. मन को छू गई कविता... बहुत सुन्दर...

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  4. हमें बचपन से माँ की गोद नहीं मिल पाई शायद माँ के प्रति इतनी तड़प उसका ही नतीजा है ....
    मगर उनका अहसास तो रहता ही है कि आसपास हैं !
    हार्दिक शुभकामनायें भाई जी !

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  5. मां पर बहुत भाव भीनी कविता लिखी है अशोक जी ।
    लेकिन आज अचानक मां कैसे याद आ गई ।

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  6. हृदय की अतल गहराइयों से अपने आप पका पकाया सा जो कुछ भाव राग बनके निकलता है वही गीत ग़ज़ल या कविता होती है .माँ को सजीव करती इस कविता से यही भाव पैदा हुआ .पुत्र टा उम्र उसे ही ढूंढता रहता है पत्नी में प्रेयसी में ,इसमें उसमे .

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  7. जो आवाज दिल से निकले, जो विचार पैदा हो, जो भावनायें दिल में उठ रही हों वही गजल है वही कविता है वाकी सब शब्दों का समुच्चय ही है।
    बचपन में जिसे मां का लाड प्यार दुलार , डांट फटकार न मिली हो उस दिल से यही भावना निकलेगी कि काश पुनर्जन्म होता हो तो अगले जन्म में मां मिलेगी। यदि जरा से दुख मे पीडा में मां की गोद में रो लिये होते और उसने आंसू पौछे होते तो शायद यह भावना कम हो जाती जो आज है। बेटे के विरुध्द जो भी बददुआयें है वे सब मां अपने उपर ले लेती है हमारे इधर कहते है बलायें लेना । कर्म या भाग्य को न मानने वाले कुछ भी कहें मगर इससे बडी तसल्ली होती है कि कुछ कर्म ऐसे कभी बन पडे होंगे जो हमें मां की गोद नसीब नहीं हुई। बिल्कुल मां अपने बेटे के दुख से कैसे प्रथक रह सकती है आदि शंकराचार्य ने तक कहा है "कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति" । जो आपकी रचना पडेगा और दुर्भाग्य से उसके साथ ऐसी घटना घटित हुई होगी उसकी आंखों में आंसू न आये इसे पढ कर यह हो नहीं सकता।

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  8. डॉ.दराल जी,
    भगवान,आप के माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा आप के सर पे रखे|

    अपनी तो ये आदत है,कि हम कुछ नही कहते ...
    खुश रहिये !
    आभार !

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  9. अश्कों को रोक न सकी.......दिल छु गयी आपकी कविता!

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  10. जब तक आस है तब तक सांस है अशोक जी...इन बेहतरीन रचनाओं के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  11. पूत कपूत सुने हैं लेकिन माता हुईं सुमाता !ब्रज भूषन जी सही कह रहें हैं .और यह भी सही है आनुवंशिकी के हिसाब से -माँ पर पूत पिता पर घोड़ा ,बहुत नहीं तो थोडं थोड़ा ।
    और आखिर में अशोक अकेला जी के लिए एक व्यक्तिगत हिदायत -
    मोहब्बत की राहों में चलना संभल के ,
    यहाँ जो भी आया गया हाथ मलके .

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  12. दादा भाई,
    बहुत भावभीनी कविता लिखी है ये आपने. आभार...
    नजरिया ब्लाग पर आपके द्वारा मांगा गया मेरा ई-मेल आई डी देरी से दे पा रहा हूँ । उम्मीद है क्षमा करेंगे । आपकी एक मेल शुरु में मेरे पास आने के कारण दरअसल मैं समझ रहा था कि आपके पास वो आई डी सुरक्षित रहा होगा । लीजिये फिर से लिख रहा हूँ...
    sushil28bakliwal@gmail.com

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  13. आपके आशीर्वाद के लिए आपको आभार व्यक्त करती हूँ:)

    आपके प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.

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  14. बीज का अंकुरित होना, हवा का बहना, बारिश का होना , फूलों का खिलना ,नदी का उद्गम , नक्षत्रों की गतिशीलता भला किसके प्रयास से संभव है. इन्ही की तरह कविता ,गीत ,ग़ज़ल बन जाते हैं , बनाये नहीं जाते. ये सब नैसर्गिक हैं.
    गुलाब की पंखुरियों को बंद पलकों से छुआ कर देखिये.महक , नमी , कोमलता का अहसास होगा. नकली फूलों में यह जीवन सत्व कहाँ से आएगा.मन से निकली कविता और कागज पर लिखी कविता में यह अंतर सहज ही पता चल जाता है.

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  15. @ डॉ. मोनिका जी ,
    @ गुरु भाई सतीश जी ,
    @ प्रवीण पांडेय जी,
    @ अरुण चन्द्र राय जी,

    जिनको कभी देखा नही, पहचाना नही,अपने होशो-हवास में|
    यहाँ तककि, किसी फोटो में भी नही ,क्योंकि फोटो है ही नही
    उस माँ के प्रति ,आप सब नें मेरे एहसासों को महसूस किया
    उसके लिए धन्यावाद! शब्द बहुत छोटा लगता है !!!
    मैं आप सब के लिए ,खुश रहने और स्वस्थ रहने की कामना
    करता हूँ | आप सब के सर पर माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे|
    स्नेह के साथ !
    अशोक सलूजा !

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  16. @ वीरू भाई जी,
    @ ब्रिज मोहन श्रीवास्तवा जी,
    @ नेहा जी, (नश्तरे-एहसास)
    @ नीरज भाई,

    जिनको कभी देखा नही, पहचाना नही,अपने होशो-हवास में|
    यहाँ तककि, किसी फोटो में भी नही ,क्योंकि फोटो है ही नही
    उस माँ के प्रति ,आप सब नें मेरे एहसासों को महसूस किया
    उसके लिए धन्यावाद! शब्द बहुत छोटा लगता है !!!
    मैं आप सब के लिए ,खुश रहने और स्वस्थ रहने की कामना
    करता हूँ | आप सब के सर पर माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे|
    स्नेह के साथ !
    अशोक सलूजा !

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  17. @ सुशील बाकलीवाल जी,
    @ अरुण कुमार निगम जी,

    मेरी माँ के प्रति ,आप ने मेरे एहसास महसूस किये |
    उसके लिए मैं आप का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ |
    आप के आगे नतमस्तक हूँ |
    खुश रहें ,स्वस्थ रहें !

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  18. @ योगेन्द्र मौदगिल जी ,
    आप जैसे महान कहानीकार ,व्यंगकार और लेखक ने ...मेरी माँ के प्रति ,मेरे एहसास महसूस किये
    इसके लिए ...
    आभार !
    खुश रहे और स्वस्थ रहें !

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  19. आप 'अकेले' सब को भाव विभोर कर रहें है यार चाचू.
    आखिर दिल से निकली बातें दिल तक तो पहुंचेंगीं हीं.

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  20. सुभानाल्लाह ......!!

    ये क्षणिकाएं मुझे भेज दीजिये ....
    अपने परिचय और तस्वीर के साथ .....
    सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए ....

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  21. मार्मिक अभिव्यक्ति.
    अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
    सादर
    मधुरेश

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  22. जीवन में कई रिश्ते छूटते हैं...फिर नए बन जाते हैं ..दोस्त हमदर्द सब मिल जाते हैं ...बस नहीं मिलती तो माँ नहीं मिलती .....वह जगह फिर कभी नहीं भरती ....!!!!

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  23. भावमय करते शब्‍दों का संगम है यह अभिव्‍यक्ति ...
    सादर

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  24. koi rishta sdaev hi sath nahin hota par mamta ka naata sdaev hi sajadon men saath hota hae .mere blog ki nai post par svagat hae .aapki bhavbhini post mejhe bhibhavuk kar gai .

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  25. आज की हलचल से आपकी यह भावुक रचना पढ़ने का मौका मिला.दिल से निकले शब्द से ही सबसे अच्छी कविता होती है.

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  26. माँ को याद करके जितना लिखा जाए ...उसे जितना याद किया जाए वो कम हैं ...


    रातों को तारों से ,दिन को धूल कणों से
    कौन हैं जिससे नहीं सुनते माँ ,तेरे अफसाने हम|....अनु

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  27. आह ! अति सुन्दर रचना..

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  28. पर मिलने की आस...
    ...अब भी बाकी है |
    यह आस ही तो है जो विश्वास को बरकरार रखती है ..
    बहुत सुन्दर

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  29. आपकी कविता पढ कर मराठी के प्रसिध्द कवि यशवंत जी की आई कविता की याद आ रही है ।
    अंत में वे कहते हैं कि तुम भी फिर से जनम लो और मै तुम्हारे कोख से जन्मूं यही है मेरी आस ।

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  30. एक दिन ईश्वर से छुट्टी ले
    कुछ साथ बिताने आ जाओ
    एक दिन बेटे की चोटों को
    खुद अपने आप देख जाओ
    कैसे लोगों संग दिन बीते ? कुछ दर्द बताने बैठे हैं !
    हम आँख में आंसू भरे, तुझे कुछ याद दिलाने बैठे हैं !

    Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1turng2rK

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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