मैं नही जानता ,गज़ल क्या है,नज्म क्या है ,गीत कैसे
लिखते हैं और कविता कैसे बोली जाती है ...?
जो दिल से निकला वो मैंने लिख दिया ...बस ,और ...?
न मिली बचपन में गोद वो
जिसमें सुख से सो लिये होते,
हँसने की हसरत तो तब रहती
जो खुल के रो लिये होते ॥
माँ
ये दुखो से भरी दुनियां ,
जितनी भी बददुआएं लगाती है
इक माँ है, जो अपनी दुआओं
से
औलाद को बचाती है ||
अब सब कहते है,
बच्चा नही ,
बुढ़ा हूँ मैं
रोकते है
टोकते है, मुझको
अब क्यों बैठा, रूठ के कोने में
खुल के बोल नही सकता
खुल के हँस नही सकता
अब डर भी लगता है,
खुल के रोने में |
कुछ तो रहें होंगे
ऐसे कर्म मेरे,
जो सुख न तेरा मैं
पा सका,
काट ली मैंने
येह जिन्दगी ,
सहारे नाम के तेरे
तू जहां भी होगी, मुझे देखती होगी
मेरे दुःख में दुःख और
खुशी में,
खुशी के
आंसू रोती होगी
इस जिन्दगी में मिले,
भले न सही
उम्मीद अभी, अब भी बाकी है
उम्र का सफर
तो कट चुका
नही जानता ,कब, कहाँ और कैसे
पर मिलने की आस...
...अब भी बाकी है |
|
अशोक'अकेला' |
|
आपने जो लिखा उसे पढ़कर आँखें नम हुईं ......
ReplyDeleteभावुक कर गयी आपकी रचना।
ReplyDeleteमन को छू गई कविता... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteहमें बचपन से माँ की गोद नहीं मिल पाई शायद माँ के प्रति इतनी तड़प उसका ही नतीजा है ....
ReplyDeleteमगर उनका अहसास तो रहता ही है कि आसपास हैं !
हार्दिक शुभकामनायें भाई जी !
मां पर बहुत भाव भीनी कविता लिखी है अशोक जी ।
ReplyDeleteलेकिन आज अचानक मां कैसे याद आ गई ।
हृदय की अतल गहराइयों से अपने आप पका पकाया सा जो कुछ भाव राग बनके निकलता है वही गीत ग़ज़ल या कविता होती है .माँ को सजीव करती इस कविता से यही भाव पैदा हुआ .पुत्र टा उम्र उसे ही ढूंढता रहता है पत्नी में प्रेयसी में ,इसमें उसमे .
ReplyDeleteजो आवाज दिल से निकले, जो विचार पैदा हो, जो भावनायें दिल में उठ रही हों वही गजल है वही कविता है वाकी सब शब्दों का समुच्चय ही है।
ReplyDeleteबचपन में जिसे मां का लाड प्यार दुलार , डांट फटकार न मिली हो उस दिल से यही भावना निकलेगी कि काश पुनर्जन्म होता हो तो अगले जन्म में मां मिलेगी। यदि जरा से दुख मे पीडा में मां की गोद में रो लिये होते और उसने आंसू पौछे होते तो शायद यह भावना कम हो जाती जो आज है। बेटे के विरुध्द जो भी बददुआयें है वे सब मां अपने उपर ले लेती है हमारे इधर कहते है बलायें लेना । कर्म या भाग्य को न मानने वाले कुछ भी कहें मगर इससे बडी तसल्ली होती है कि कुछ कर्म ऐसे कभी बन पडे होंगे जो हमें मां की गोद नसीब नहीं हुई। बिल्कुल मां अपने बेटे के दुख से कैसे प्रथक रह सकती है आदि शंकराचार्य ने तक कहा है "कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति" । जो आपकी रचना पडेगा और दुर्भाग्य से उसके साथ ऐसी घटना घटित हुई होगी उसकी आंखों में आंसू न आये इसे पढ कर यह हो नहीं सकता।
डॉ.दराल जी,
ReplyDeleteभगवान,आप के माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा आप के सर पे रखे|
अपनी तो ये आदत है,कि हम कुछ नही कहते ...
खुश रहिये !
आभार !
अश्कों को रोक न सकी.......दिल छु गयी आपकी कविता!
ReplyDeleteजब तक आस है तब तक सांस है अशोक जी...इन बेहतरीन रचनाओं के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
पूत कपूत सुने हैं लेकिन माता हुईं सुमाता !ब्रज भूषन जी सही कह रहें हैं .और यह भी सही है आनुवंशिकी के हिसाब से -माँ पर पूत पिता पर घोड़ा ,बहुत नहीं तो थोडं थोड़ा ।
ReplyDeleteऔर आखिर में अशोक अकेला जी के लिए एक व्यक्तिगत हिदायत -
मोहब्बत की राहों में चलना संभल के ,
यहाँ जो भी आया गया हाथ मलके .
दादा भाई,
ReplyDeleteबहुत भावभीनी कविता लिखी है ये आपने. आभार...
नजरिया ब्लाग पर आपके द्वारा मांगा गया मेरा ई-मेल आई डी देरी से दे पा रहा हूँ । उम्मीद है क्षमा करेंगे । आपकी एक मेल शुरु में मेरे पास आने के कारण दरअसल मैं समझ रहा था कि आपके पास वो आई डी सुरक्षित रहा होगा । लीजिये फिर से लिख रहा हूँ...
sushil28bakliwal@gmail.com
आपके आशीर्वाद के लिए आपको आभार व्यक्त करती हूँ:)
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.
बीज का अंकुरित होना, हवा का बहना, बारिश का होना , फूलों का खिलना ,नदी का उद्गम , नक्षत्रों की गतिशीलता भला किसके प्रयास से संभव है. इन्ही की तरह कविता ,गीत ,ग़ज़ल बन जाते हैं , बनाये नहीं जाते. ये सब नैसर्गिक हैं.
ReplyDeleteगुलाब की पंखुरियों को बंद पलकों से छुआ कर देखिये.महक , नमी , कोमलता का अहसास होगा. नकली फूलों में यह जीवन सत्व कहाँ से आएगा.मन से निकली कविता और कागज पर लिखी कविता में यह अंतर सहज ही पता चल जाता है.
@ डॉ. मोनिका जी ,
ReplyDelete@ गुरु भाई सतीश जी ,
@ प्रवीण पांडेय जी,
@ अरुण चन्द्र राय जी,
जिनको कभी देखा नही, पहचाना नही,अपने होशो-हवास में|
यहाँ तककि, किसी फोटो में भी नही ,क्योंकि फोटो है ही नही
उस माँ के प्रति ,आप सब नें मेरे एहसासों को महसूस किया
उसके लिए धन्यावाद! शब्द बहुत छोटा लगता है !!!
मैं आप सब के लिए ,खुश रहने और स्वस्थ रहने की कामना
करता हूँ | आप सब के सर पर माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे|
स्नेह के साथ !
अशोक सलूजा !
@ वीरू भाई जी,
ReplyDelete@ ब्रिज मोहन श्रीवास्तवा जी,
@ नेहा जी, (नश्तरे-एहसास)
@ नीरज भाई,
जिनको कभी देखा नही, पहचाना नही,अपने होशो-हवास में|
यहाँ तककि, किसी फोटो में भी नही ,क्योंकि फोटो है ही नही
उस माँ के प्रति ,आप सब नें मेरे एहसासों को महसूस किया
उसके लिए धन्यावाद! शब्द बहुत छोटा लगता है !!!
मैं आप सब के लिए ,खुश रहने और स्वस्थ रहने की कामना
करता हूँ | आप सब के सर पर माँ-बाप का आशीर्वाद हमेशा बना रहे|
स्नेह के साथ !
अशोक सलूजा !
@ सुशील बाकलीवाल जी,
ReplyDelete@ अरुण कुमार निगम जी,
मेरी माँ के प्रति ,आप ने मेरे एहसास महसूस किये |
उसके लिए मैं आप का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ |
आप के आगे नतमस्तक हूँ |
खुश रहें ,स्वस्थ रहें !
wah akela ji, bhav-vibhore kar diya aapne...saadhuwaad....
ReplyDelete@ योगेन्द्र मौदगिल जी ,
ReplyDeleteआप जैसे महान कहानीकार ,व्यंगकार और लेखक ने ...मेरी माँ के प्रति ,मेरे एहसास महसूस किये
इसके लिए ...
आभार !
खुश रहे और स्वस्थ रहें !
आप 'अकेले' सब को भाव विभोर कर रहें है यार चाचू.
ReplyDeleteआखिर दिल से निकली बातें दिल तक तो पहुंचेंगीं हीं.
सुभानाल्लाह ......!!
ReplyDeleteये क्षणिकाएं मुझे भेज दीजिये ....
अपने परिचय और तस्वीर के साथ .....
सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए ....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 03 -05-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....कल्पशून्य से अर्थवान हों शब्द हमारे .
मार्मिक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
सादर
मधुरेश
जीवन में कई रिश्ते छूटते हैं...फिर नए बन जाते हैं ..दोस्त हमदर्द सब मिल जाते हैं ...बस नहीं मिलती तो माँ नहीं मिलती .....वह जगह फिर कभी नहीं भरती ....!!!!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम है यह अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसादर
mann bhar aaya aapki kavita padh kar...saadar
ReplyDeletekoi rishta sdaev hi sath nahin hota par mamta ka naata sdaev hi sajadon men saath hota hae .mere blog ki nai post par svagat hae .aapki bhavbhini post mejhe bhibhavuk kar gai .
ReplyDeleteआज की हलचल से आपकी यह भावुक रचना पढ़ने का मौका मिला.दिल से निकले शब्द से ही सबसे अच्छी कविता होती है.
ReplyDeleteमाँ को याद करके जितना लिखा जाए ...उसे जितना याद किया जाए वो कम हैं ...
ReplyDeleteरातों को तारों से ,दिन को धूल कणों से
कौन हैं जिससे नहीं सुनते माँ ,तेरे अफसाने हम|....अनु
आह ! अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteपर मिलने की आस...
ReplyDelete...अब भी बाकी है |
यह आस ही तो है जो विश्वास को बरकरार रखती है ..
बहुत सुन्दर
आपकी कविता पढ कर मराठी के प्रसिध्द कवि यशवंत जी की आई कविता की याद आ रही है ।
ReplyDeleteअंत में वे कहते हैं कि तुम भी फिर से जनम लो और मै तुम्हारे कोख से जन्मूं यही है मेरी आस ।
एक दिन ईश्वर से छुट्टी ले
ReplyDeleteकुछ साथ बिताने आ जाओ
एक दिन बेटे की चोटों को
खुद अपने आप देख जाओ
कैसे लोगों संग दिन बीते ? कुछ दर्द बताने बैठे हैं !
हम आँख में आंसू भरे, तुझे कुछ याद दिलाने बैठे हैं !
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