'दो'
निर्मला कपिला : इनके प्यार में ममता बरसे ,सब इनके आशीर्वाद को तरसें ||
हरकीरत "हीर" : तू क्या जाने पीढ़ पराई ,कितनी चोट 'हीर' ने खाई ||
दानिश जी : चेहरा नही दिखाते हैं ,पर्दे में रेह जाते हैं ,
पर शायरी... गजब कर जाते हैं ||
राजिन्द्र स्वर्णकार : दिल से कोमल येह स्वर्णकार हैं
सब को पहनाते येह फूलो की टिप्पणी का हार हैं ||
इन्दु गोस्वामी जी : सब को डांटती है... बस प्यार ऐसे ही बांटती है ||
डॉ.वर्षा जी : इनका स्नेह सब पे बरसा जी ||
कविता रावत : प्रकृति की गोद में ,मासूम कविता !
वीना : तू मेरी भी बेटी है वीना
मुझ को भी ,इक दिन जाना
तू अब सीख ले बिन पापा के जीना ||
श्री ब्रज मोहन श्रीवास्तव: इसी बहाने मिल गई ,बिछडो. से अपनी वालदा
नाम उसने अपना रख लिया... भले ही 'शारदा' |
डॉ.टी.एस. दराल : इनके लेख ललचाते हैं ,कभी-कभी; बहस में उलझाते हैं ||
प्रवीण पाण्डेय: अपनी एक लाइन की टिप्पणी में सब को बांधे ||
अजय कुमार झा: झा जी, आप रहेंगे सब पे; अब भी भारी
न माने जो बात, तारीख लगा दो तीस हजारी ||
यार चाचू, तेरी तो अब मौज ही मौज है.
ReplyDeleteतेरे चाहने वालो की तो बड़ी मस्त फ़ौज है.
डान्टती हूँ???? क्या करूं ऐसिच हूँ मैं.
ReplyDeleteजो हूँ जैसी हूँ आप सबकी हूँ.
बाँधे रहने के लिये प्यार की पतली डोर ही पर्याप्त है।
ReplyDeleteआप सब का आभार ! आप सब को शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteजो अभी तक नही आये ...उनकी राह देख रहा हूँ ,अपने एहसास
जताने के लिये और उनका प्यार पाने के लिये !
परम आदरणीय प्रिय चाचाश्री
प्रणाम !
नेट और अन्य परेशानियों के कारण मैं यहां आ'कर भी उपस्थिति दर्ज़ नहीं करा पाया … इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं ।
…और मेरे प्यारे चाचा मुझे माफ़ करेंगे , इसका विश्वास है ।
आपका प्यार और आशीर्वाद मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक है …
इसमें कभी कमी न करें ।
बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
आयें हैं हम भी टिपण्णी की मार खाने ,खुद को हड़काने .,हड़क -वाने .
ReplyDeleteइतना प्यार देंगे तो कैसे भूलूंगी आपको
ReplyDeleteपापा नहीं तो उनके रूप में दैखूंगी आपको
जी तो रही हूं पर उनकी बहुत याद आती है...
आपने जो प्यार-स्नेह दिया है उसका कोई मोल नहीं और किसी के भी प्यार का कोई मोल नहीं होता पर हौसला जरूर बढ़ा है...