नानी जी |
अपनी माँ के लिए और नानी जी के लिए ....
जिन्होंने पाल-पोस कर बड़ा किया |
उनको याद करके जो भी मेरे दिल से निकला ...
जब से मैने माँ को खोया
तब से ही मै हर पल रोया
किन जुर्मो की मिली सज़ा
तब से न मै चैन से सौया।।
न मिली बचपन में गोद वो
जिसमें कुछ सुख से सो लिये होते
हँसने की हसरत तो तब रहती
जो खुल के रो लिये होते ॥
मैने माँ को नही,माँ की माँ को देखा है
वो मेरे लिये सब सहती थी
उसकी एक आखँ मे मैं,
दुसरी में मेरी माँ जो रहती थी॥
पैदा किया माँ बाप ने
अकेला था,वारिस हो गया,
माँ जग से गयी,बाप ने छौड दिया
और मैं, लावारिस हो गया॥
अशोक 'अकेला'
माँ को याद करके जब भी रोने का मन करता है ,तो
परवेज़ मेहदी साहेब की गाई ये गज़ल सुनता हूँ |
अपने साये से भी अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना ,चिरागों को बुझा कर रोना ...
मेरे साथ आप भी सुनिए ...पर आप गज़ल का लुत्फ़ उठाइए |
तब तक अलविदा ...खुश और सेहतमंद रहें |
Very touching post !
ReplyDeleteएक सीधा-साधा, साधारण इन्सान,जिसे तलाश है सिर्फ अपनेपन की... प्यार की, उसे अपने चारो तरफ से बटोरने की और फिर चारो तरफ बाँट देने की ... बस और क्या?...' क्या संबोधन दूँ आपको सर? सब छोटे और झूठे लगने लगते हैं और ऐसे शख्स के सामने तो और भी बौने हो जाते हैं जो उपर लिखे-सा है. बेटा कह नही सकती ,बड़े हो.भाई ???? रिश्तों की पवित्रा जताने,बताने के लिए सबसे पहले हम इस पवित्र संबोधन का प्रयोग करते हैं .आपके लिए सब संबोधन .....एकदम छोटे हैं सखे!
ReplyDelete'सखे' कृष्ण ने कहा था द्रौपदी को 'सखे' उस पावनता को कायम रख सको तो ये संबोधन आपके लिए. कितना दर्द है इस रचना में.बिना जुबान खोले जीवन-गाथा सुना दी.हा हा हा मुझे देखो वो भी नही कर सकी.हा हा हा सखे! मेरी हँसी में जो छुपा है उसे महसूस कर सकते हो..फिर भी खूब प्यार करती हूँ सबसे.मेरे लिए ये शब्द ईश्वर है.
अरे ! यहाँ तो ज़ख्म को सहलाती भी नही कि कोई ये न देख ले कि जख्म भी है...आत्मा,मन,दिल,पीठ पर.हा हा हा किसी से कोई शिकायत नही.क्या करूं ऐसिच हूँ मैं. माँ को याद न करो दोस्त वो नही आएगी....मैं हूँ न !माँ भी,दी भी,नानी और सखे भी यदि देख सको तो......