(मेरी नानी जी )
....? to... 27Th Feb,1989
माँ
माँ को कभी देखा नही,
जब होश में आया, अपने को नानी की, गोद में पाया |
जिसको देखा नही ,जाना नही , पहचाना नही
सलाम है ! उन अपने एहसासों को, जज्बातों को
जिन्होंने ये भाव मेरे अंदर जगाया है ओर
माँ कैसी होती है... मुझे महसूस कराया है |
अपने मुहँ से निकाल निवाला
अपने बेटे के मुहँ में देती है
क्या माँ ऐसी ही होती है ...?
सुला सूखे बिस्तर पे बेटे को
खुद गीले पे सोती है ...
क्या माँ ऐसी ही होती है...?
ओढ के दुःख औलाद के, सर अपने
उस के सर की बलेंयाँ लेती है |
क्या माँ ऐसी ही होती है ...?
भरे गी पेट पहले औलाद का
चाहे खुद भूखे पेट सोती है
क्या माँ ऐसी ही होती है ...?
ये जख्म हैं मेरे, इन्हें मेरे पास ही रहने दो
मिलता है मुझे, इनसे सकूं ,मुझे खुद ही इनको सहने दो
दिल भी हो गया कमजोर ,न रहा अब ये किसी
हाल का ,उम्र सारी कट गयी हो गया मैं भी
अब सत्तर साल का...
माँ...इन दो शब्दों में कितना दम... है
एहसास है मेरे बहुत ,बस शब्द
बहुत ही कम है ...
ReplyDeleteलगा कि मैं अपनी कहानी पढ़ रहा हूँ भाई जी .....लगा कि गुरुभाई ने मेरे विचार चुरा लिए ....
सोंचता हूँ कि इस पर कोई नयी रचना लिखूं और मैं आपके भाव चुरा कर लिखूं ....
हर्ज़ ही क्या है जब वेदना एक सी हो !
और हाँ हम सत्तर के हों या अंतिम वर्ष के , माँ की गोद से अच्छी जगह छिपने की कहाँ मिलेगी मगर हम ऐसे खुशकिस्मत कहाँ ??
आभार एवं शुभकामनायें
और हाँ हम सत्तर के हों या अंतिम वर्ष के , माँ की गोद से अच्छी जगह छिपने की कहाँ मिलेगी मगर हम ऐसे खुशकिस्मत कहाँ ??
ReplyDeleteसतीश जी इस पंक्ति ने मेरे मन की बात कह दी
आभार
हाँ जी माँ से अच्छा कोई नहीं.... नानीजी को नमन
ReplyDeleteसच में .... नमन
ReplyDeleteआदरणीय अशोक जी
ReplyDeleteप्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !
मां संबंधी बहुत भावपूर्ण रचना का सृजन किया है आपने
मां मात्र एक शब्द है , लेकिन हज़ारों हज़ार विराट अर्थ हैं ।
बहुत मर्मस्पशी रचना है …आभार !
मैंने भी कई रचनाएं मां संबंधी लिखी हैं , एक गीत की कुछ पंक्तियां आपके लिए प्रस्तुत हैं -
'मां'
हृदय में पीड़ा छुपी तुम्हारे , मुखमंडल पर मृदु - मुसकान !
पलकों पर आंसू की लड़ियां , अधरों पर मधु - लोरी - गान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! तुम पर तन मन धन बलिदान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
कष्ट मौत का सह' जीवन देती कि नियम सृष्टि का पले !
मात्र यही अभिलाषा और आशीष कि बच्चे फूले - फले !
तेरी गोद मिली, वे धन्य है मां ! …क्या इससे बड़ा वरदान ?
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तू सर्दी - गर्मी , भूख - प्यास सह' हमें बड़ा करती है मां !
तेरी देह त्याग तप ममता स्नेह की मर्म कथा कहती है मां !
ॠषि मुनि गण क्या , देव दनुज सब करते हैं तेरा यशगान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
पुनः अच्छी भावप्रधान रचना हेतु आभार !
मां को शत शत नमन !
इस लिंक के जरिये पूरा गीत समय मिले तो पढ़ लीजिएगा कभी …
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत मर्मस्पशी रचना-माँ के विषय में जब भी कहीं पढ़ता हूँ..भावुक हो जाता हूँ.
ReplyDeleteमाँ के लिए एहसास अनगिनत होते हैं लेकिन शब्द ही नहीं मिलते... भावभीनी रचना..
ReplyDeleteमाँ... माँ की गोद का अहसास ही हर चिंता हर फिक्र हर लेता है... उसके जैसा सुख कहीं नहीं मिल सकता.. निश्छल, निस्स्वार्थ प्रेम की मूरत माँ.......आभार
ReplyDeleteमार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteनानीजी को नमन ....
आप हमेशा अच्छा लिखते हैं.
बहुत अच्छी कामना - अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
माँ की ममता
ReplyDeleteऔर इस भाव की महानता के लिए
हर बार , बार-बार
कुछ भी कहना चाहें,, लफ्ज़ कम पड़ जाते हैं..
आपके पुण्य विचार मननीय हैं .
dkmuflis@gmail.com
माँ...इन दो शब्दों में कितना दम... है
ReplyDeleteएहसास है मेरे बहुत ,बस शब्द
बहुत ही कम है ...
यह सत्य है ... बेहद संवेदनशील रचना ... बहुत अच्छा लगा
क्या कहूँ.. 'माँ' शब्द ही आँखों में प्यार, सम्मान और कृतज्ञता के आंसू ला देता है...
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